#FilmReview_ 'न्यूटन' ने जीता दिल, 'भूमि' की कहानी पड़ी कमजोर और 'हसीना' नहीं दिखा पाई कमाल

#FilmReview_ 'न्यूटन' ने जीता दिल, 'भूमि' की कहानी पड़ी कमजोर और 'हसीना' नहीं दिखा पाई कमाल

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-22 08:26 GMT
#FilmReview_ 'न्यूटन' ने जीता दिल, 'भूमि' की कहानी पड़ी कमजोर और 'हसीना' नहीं दिखा पाई कमाल

डिजिटल डेस्क,मुंबई। शुक्रवार को तीन फिल्में रीलीज हुई। तीनों ही फिल्में एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं, लेकिन फिर भी दर्शकों को तीन-तीन अलग फिल्मों में बस वही रास आई जिसमें वो सब था जो एक अच्छी फिल्म में होना चाहिए। जेल में अपनी सजा पूरी करने के बाद संजय दत्त ने कमबैक किया। आज उनकी फिल्म भूमि रिलीज हुई। इसी के साथ श्रद्धा कपूर की हसीना पारकर और राजकुमार राव की न्यूटन भी रिलीज हुई। आइए जानते की कैसा रहा इन तीन फिल्मों का रिव्यू। 

रिलीज से पहले ही भूमि और हसीना पारकर की खूब चर्चा हो रही थी, लेकिन दोनों ही ज्यादा कमाल नहीं पाई। वहीं राजकुमार राव की फिल्म न्यूटन के ट्रेलर के अलावा शायद ही कभी इसका जिक्र किया गया हो, बावजूद इसके इस फिल्म ने सबका दिल जीत लिया है। इसलिए सबसे पहले हम बात करेंगे पहले दिन अच्छा प्रदर्शन करने वाली फिल्म न्यूटन की।

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न्यूटन Review

हर पांच साल में भारत के नागरिक अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए चुनाव में अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट देते हैं, लेकिन इसकी प्रकिया कभी आसान और ईमानदार नहीं रही है। फिल्म में आपको उस एक दिन की कहानी दिखाने की कोशिश की है, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रित देश भारत में वोट डाले जाते हैं। 
फिल्म वोटिंग के कई किस्से बताए गए। जैसे किसी को वोटिंग मशीन इस्तेमाल करना नहीं आता, तो किसी को वोट ही डालना होता है।
 फिल्म की कहानी आपको छत्तीसगढ़ के एक जंगल दण्डकारण्य में ले जाएगी। जहां लोगों ने कभी वोटिंग मशीन नहीं देखी है। इसी वजह से उन्हें समझाया जाता है कि वोटिंग मशीन एक खिलौना है जिसमें जो बटन अच्छा लगे उसे दबा दो। 

इसी लत जानकारी का न्यूटन (राजकुमार राव) विरेध करते हैं, क्योंकि वो चाहते हैं कि लोगों को चुनाव का मतलब समझें। वो उन्हें जागरुक बनाने की कोशिश करते हैं।वहीं नक्सल प्रभावित इलाके में चुनाव करवाना आसान नहीं होता क्योंकि हर समय गोली चलने का और मौत का डर लगा रहता है। यह सब जानने के बावजूद राव उस इलाके में मतदान कराने की जिद ठान लेते हैं।

न्यूटन को इस इलाके में चुनाव सही ढंग से करवाने में कितनी मुश्किलें आती हैं फिल्म की पुरी कहानी को इसी के इर्द-गिर्द बुना गया है। फिल्म में हल्की कॉमेडी को शामिल किया गया है, जिससे ये फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है। चुनाव जैसे गंभीर विषय पर लोगों को जागरुक करने की कोशिश भी बहुत अच्छे से की की गई है क्योंकि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। कहानी आपसे कई सवाल पूछने की कोशिश करती है जिसके जवाब हमारे पास नहीं होते हैं। न्यूटन एक ऐसी फिल्म है जो आपको चुनाव की सच्चाई के करीब ले जाने की कोशिश करती है। पुरी फिल्म में राजकुमार की जबर्दस्त एक्टिंग मस्ट वॉच बनाती है।

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भूमि Review

मैरी कॉम और सरबजीत जैसी फिल्में बनाने वाले ओमंग कुमार अब संजय दत्त के साथ "भूमि" फिल्म लेकर आए हैं। इस फिल्म से संजय दत्त के फैंस और मेकर्स को काफी उम्मीद थीं, जोकि कुछ हद तक ही पुरी हुई है।

फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के आगरा की है। अरुण सचदेव (संजय दत्त) एक जूते की दुकान के मालिक हैं। वो अपनी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) के साथ रहते हैं। अरुण का दोस्त और पड़ोसी ताज (शेखर सुमन) है। भूमि, नीरज (सिद्धांत) से प्यार करती है। दोनों की शादी तय हो जाती है, लेकिन कॉलोनी का एक और लड़का (विशाल) भूमि से एकतरफा मोहब्बत करता है। वो अपने दबंग चचेरे भाई धौली (शरद केलकर) के साथ मिलकर भूमि को शादी से ठीक एक रात पहले अगवा कर उसके साथ दुष्कर्म करता है। फिल्म अरुण और उसकी बेटी को न्याय दिलाने की कहानी है।

फिल्म का डायरेक्शन, आर्ट वर्क, सिनेमेटोग्राफी और लोकेशंस बेहतरीन हैं। संजय दत्त का एक अरसे के बाद पर्दे पर आना और उसी गर्मजोशी के साथ उम्दा प्रदर्शन देना काबिल- ए तारीफ है। वहीं विलेन का रोल शरद केलकर ने जबरदस्त किया है। बावजूद इसके फिल्म की कहीं ना कहीं फिल्म कुछ कमाल नहीं दिखा पाई है।इसका कारण फिल्म की कहानी काफी कमजोर होना है।

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हसीना पारकर Review

पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में बायोपिक की बाढ़ आई हुई है। इसी भेड़चाल को कायम रखते हुए निर्देशक अपूर्व लखिया की फ़िल्म "हसीना पारकर" बॉक्स ऑफिस पर आज दस्तक दे दी।

हसीना पारकर कुख्यात डॉन दाऊद इब्राहिम की बहन हैं। वो मुंबई के गोवंडी इलाके में अपना दरबार लगाती रहीं। जब गैंगवार अपने चरम पर था तो वो लोगों के झगड़े सुलझाती रहीं, कंस्ट्रक्शन बिजनेस में लगी रहीं और बिल्डरों को प्रोटेक्शन देती रहीं। कमाल कि बात यह भी कि लगभग 20 साल में उनपर 84 मामले दर्ज हुए लेकिन वो केवल एक बार कोर्ट गईं और उसमें भी वो बरी हो गईं। फिल्म एक डॉन की बहन होना और उसके कारण उनके परिवार ने क्या झेला ये सब दिखाया गया है। अगर केवल यही जानना हो तो आप यह फ़िल्म देख सकते हैं।

अगर अभिनय की बात की जाए तो श्रद्धा कपूर ने अपनी पूरी जान लगाकर इस किरदार को बनाने की कोशिश की है। मगर जो प्रभाव पहले लुक का पोस्टर आने के समय हुआ था वह पूरी फ़िल्म में नहीं हो पाया। कभी-कभी यूं लगा शायद श्रद्धा की कास्टिंग इस फ़िल्म के लिए ठीक नहीं रही।

श्रद्धा के भाई सिद्धांत कपूर दाऊद इब्राहिम के किरदार में एकदम सटीक नजर आए। कुल मिलाकर "हसीना पारकर" कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। 
 

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