चिकन खाने के शौकीन हैं तो संभल जाइए!, सामने आ रहे घातक परिणाम

चिकन खाने के शौकीन हैं तो संभल जाइए!, सामने आ रहे घातक परिणाम

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-28 06:46 GMT
चिकन खाने के शौकीन हैं तो संभल जाइए!, सामने आ रहे घातक परिणाम

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश भर में मीट का मार्केट बहुत बढ़ गया है। वहीं मांसाहार करने वाले लोगों की संख्या में भी बहुत बड़ा इजाफा हुआ है। ऐसे में डिमांड को पूरा करने के लिए मीट विक्रेता जानवरों और मुर्गियों को बीमारी से बचाने के लिए उनके चारे में एंटीबायोटिक्स मिला देते हैं, जिससे उनका विकास तेजी से हो जाता है। इससे उनके शरीर में भारी मात्रा वसा जमा हो जाती है। बाद में यही एंटीबायोटिक्स इन्हें खाने वाले लोगों के शरीर में पहुंचते हैं। जिनके कुछ घातक परिणाम हो सकते हैं।

 


बता दें कि वर्तमान में भारत का एंटीबायोटिक्स के सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले शीर्ष पांच देशों में पहला स्थान है। बताया जा रहा है कि जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल खतरनाक है। अगर आप सीधे एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं भी कर रहे हैं, तो भी आप इससे होने वाले खतरे से बच नहीं सकते हैं। इसी चिंता के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बैठक की थी, जिसमें चिकन और मीट को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के दायरे में लाने पर विचार किया गया था।

 


बता दें कि यदि सब ठीक रहा तो नए साल तक इस पर रोक संबंधी कानून लागू हो जाएगा। जानकारी के अनुसार, 6 दिसंबर तक विशषज्ञों व आम लोगों से इस विषय पर राय मांगी गयी है। इस ड्राफ्ट में 37 एंटीबायोटिक और 67 अन्य वेटनरी ड्रग्स की अधिकतम मात्रा सुनिश्चित करने की बात कही गई है।

 

 

इन देशों ने कम किया एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल


डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे और नीदरलैंड जैसे देशों ने एंटीबायोटिक्स के खतरे को देखते हुए इसके प्रयोग को कम कर दिया है। भारत में भी अगर यह नियम लागू होता हैतो 2030 तक एंटीबायोटिक्स के प्रयोग में 736 टन तक की कमी आ जाएगी। बता दें कि एंटीबायोटिक्स की कीमतों में 50% की बढ़ोतरी कर देने से कुल एंटीबायोटिक्स की मात्रा में 61% तक कमी की जा सकती है।

 

सामने आ रहे ये घातक परिणाम

जानकारी के अनुसार, भारत में भी एंटीबीयोटिक्स का कुप्रभाव नजर आने लगा है। वर्तमान में हर साल लगभग 57000 नवजात शिशुओं की मौत इन्फेक्शन की वजह से हो जाती है, क्योंकि इससे बचने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक बेअसर हो चुके हैं। टेट्रासाइक्लिन और फ्लूरोक्विनोलोंस ऐसे एंटीबायोटिक्स हैं, जिनका इस्तेमाल कॉलेरा, मलेरिया, रेस्पायरेटरी और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शंस जैसे रोगों के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन इनका मनमाने तरीके से जानवरों पर इस्तेमाल करने से परिणाम ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के रूप में सामने आ रहे हैं। 

    

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