इटली की बेटी, कैसे बनी सबसे ताकतवर राजनीतिक घराने की बहू?

इटली की बेटी, कैसे बनी सबसे ताकतवर राजनीतिक घराने की बहू?

Bhaskar Hindi
Update: 2017-12-09 03:24 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तकरीबन 19 सालों से देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की कमान संभाल रही सोनिया गांधी का आज 72वां जन्मदिन है। 9 दिसंबर 1946 को सोनिया का जन्म इटली के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका असली नाम एंटोनिया मायनो था और अपनी तीन बहनों में दूसरे नंबर की थी। यूं तो सोनिया का जन्म इटली के ट्यूरिन शहर के बाहरी इलाके ओरबैसानो में हुआ था, लेकिन उनका रिश्ता भारत से रहा। बताया जाता है कि सोनिया के पिता मॉडर्न खयालात के थे। यही वजह थी कि उन्होंने सोनिया को पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा। बस फिर क्या था, इटली की रहने वाली एंटोनिया यानि सोनिया को भी नहीं पता चला कि इंग्लैंड में आकर उनका रिश्ता भारत से जुड़ जाएगा।

 

 

 


 

 

सोनिया-राजीव की वो पहली मुलाकात

बताया जाता है कि सोनिया गांधी हमेशा से पढ़ने-लिखने में अच्छी रही, लेकिन भारत के बारे में उन्हें कम ही जानकारी थी। सोनिया ने इंग्लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। यहीं पास में एक रेस्टोरेंट था, जिसका नाम वार्सिटी था। इसी रेस्टोरेंट में यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट खाने-पीने के लिए आया करते थे। इस रेस्टोरेंट का मालिक चार्ल्स एंटोनी राजीव गांधी का खास दोस्त था और राजीव भी इस रेस्टोरेंट में अक्सर आया करते थे। कहा जाता है कि सोनिया-राजीव की पहली मुलाकात भी इसी रेस्टोरेंट में हुई। इस रेस्टोरेंट के मालिक चार्ल्स एंटोनी ने एक बार बताया था कि एक दिन सोनिया यहां अकेली आईं थीं। लंच का वक्त चल रहा था, सो सोनिया को बैठाने के लिए उनके पास जगह नहीं थी। उसी दिन राजीव भी इस रेस्टोरेंट में राउंड टेबल पर बैठकर अपने दोस्तों का इंतजार कर रहे थे। तभी एंटोनी ने राजीव से पूछा कि "आपको किसी दूसरी लड़के के साथ बैठने में कोई दिक्कत तो नहीं है।" राजीव ने कहा- "नहीं, बिल्कुल नहीं।" बस फिर क्या था, राजीव और सोनिया एक ही टेबल पर बैठे थे और यहीं से दोनों के प्यार की शुरुआत हुई।



 

प्यार के आगे झुके घरवाले

राजीव गांधी और सोनिया यानी एंटोनिया का प्यार वार्सिटी रेस्टोरेंट से ही शुरू हुआ। रोजाना मुलाकात के कारण दोनों के बीच प्यार गहराता चला गया और फिर एक दिन इन्होंने शादी करने का फैसला लिया। राजीव और सोनिया की प्रेम कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की लव स्टोरी की तरह उतार-चढ़ाव से भरी रही। दोनों इस शादी के लिए राजी थे, लेकिन उनके परिवारों के लिए इस फैसले को मानना उतना आसान नहीं था। एक तरफ राजीव जहां, भारत की प्रधानमंत्री इदिरा गांधी के बड़े बेटे थे, तो वहीं दूसरी तरफ सोनिया इटली के साधारण से परिवार की लड़की थी। बताया जाता है कि सोनिया के पिता को ये रिश्ता मंजूर नहीं था, क्योंकि वो अपनी बेटी को दूसरे देश नहीं भेजना चाहते थे। उनको इस बात का भी डर था कि सोनिया को भारत के लोग अपनाएंगे या नहीं, क्योंकि राजीव, इंदिरा गांधी के बेटे थे। हालांकि बाद में राजीव ने खुद सोनिया के पिता से मुलाकात की और आखिरकार वो उनकी शादी के लिए मान गए।



भारत आने के बाद अमिताभ के घर रुकीं सोनिया

सोनिया गांधी साल 1968 में पहली बार भारत आईं, तब तक उनकी शादी राजीव से नहीं हुई थी। उस वक्त इंदिरा गांधी भी देश की प्रधानमंत्री थीं, लिहाजा वो सोनिया को अपने घर में नहीं रख सकती थी। इसलिए सोनिया को अमिताभ बच्चन के घर रोका गया। अमिताभ और राजीव की दोस्ती भी गहरी थी, तो अमिताभ ने भी इस बात के लिए मना नहीं किया। इसके बाद 13 जनवरी 1968 को सोनिया दिल्ली पहुंची और अमिताभ के घर रहने लगीं। यहीं पर उन्हें भारत के रिति-रिवाजों को जानने का मौका मिला। बताया जाता है कि अमिताभ के घर पर ही मेहंदी की रस्म रखी गई और इसी दौरान पहली बार सोनिया, राजीव के परिवार से मिली।



अमिताभ के घर ही हुई थी शादी

कहा जाता है कि शादी की सारी रस्में अमिताभ बच्चन के घर ही हुई और शादी भी यहीं पर हुईं। अब तक सोनिया गांधी की जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। इसके बारे में उन्होंने भी कभी नहीं सोचा होगा। सोनिया एक छोटे से परिवार से आती थी और राजीव देश की सबसे पुराने और बड़े राजनीतिक घराने से आते थे। लिहाजा सोनिया को अपने अंदर बहुत से बदलाव करने की जरूरत थी।


राजनीति में नहीं आना चाहती थीं सोनिया

यूं तो सोनिया और उनकी सास इंदिरा गांधी के बीच रिश्ता बहुत अच्छा था, लेकिन इसके बावजूद सोनिया ने उनके साथ राजनीतिक साझेदारी नहीं निभाई। सोनिया कभी भी राजनीति में नहीं आई, लेकिन नियती को ये मंजूर नहीं था। सोनिया और राजीव की जिंदगी के शुरुआती 13 साल बहुत उतार-चढ़ाव से होकर गुजरे। इसी दौरान गांधी परिवार ने कई लोगों को खो दिया। पहले एक दुर्घटना में संजय गांधी की मौत, उसके बाद इंदिरा गांधी की मौत। इसके 7 साल बाद सोनिया के पति और प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या। इन सबने सोनिया को हिलाकर रख दिया और वो भी इस बात को अच्छे से समझ चुकी थी कि ये जो कुछ भी हुआ है, इसके पीछे की वजह राजनीति ही है। अपने पति की मौत के 7 साल बाद सोनिया ने राजनीति करने का मन बनाया और उसके बाद उन्होंने कांग्रेस में एक नए युग की शुरुआत की।



2004 में कांग्रेस की वो जीत

1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी राजनीति में सक्रिय हुई। उनका पहला चुनाव 1999 का लोकसभा चुनाव था, जिसमें कांग्रेस हार गई थी। इसके बाद साल 2004 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सोनिया को अनदेखा किया। इसके बावजूद सोनिया ने हार नहीं मानी। सोनिया ने अपने भाषणों से लोगों का दिल जीत लिया और जनता तक पहुंच गई। लिहाजा कांग्रेस ये चुनाव जीत गई। सोनिया का ये पहला लोकसभा चुनाव था, जिसमें उन्हें जीत मिली थी। इस चुनाव में यूपीए ने 275 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। सोनिया ने इस चुनाव में जीत के लिए कई लोगों से हाथ मिलाया और अचानक सोनिया, करुणानिधि, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान जैसे बड़े नेताओं की पसंद भी बन गई।



सोनिया ने छोड़ा पीएम का पद

2004 के चुनाव जीतने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत थी, कि पीएम कौन बनेगा? बीजेपी शुरुआत से ही सोनिया को बाहरी बता रही थी और बताया ये भी जाता है कि जिस पद ने उनसे उनका पति और सास छिन ली, वो उस पद पर कैसे काबिज हो सकती है? 2004 का चुनाव, कांग्रेस के लिए सिर्फ चुनाव ही नहीं था, बल्कि उसकी इज्जत भी इस चुनाव में दांव पर लगी थी। चुनाव जीतने के बाद सबने सोनिया को ही अपना नेता माना, लेकिन सोनिया के दिल में कुछ और ही चल रहा था। लिहाजा उन्होंने एक ऐसे शख्स को चुना, जो इस पद के साथ-साथ वफादारी भी निभा सके। इसके बाद सोनिया ने, मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया। सोनिया के त्याग की कहानी देशभर में चली। इसका फायदा सोनिया को हुआ और वो पहले से ज्यादा ताकतवर बन गई।



2009 में फिर कांग्रेस को मिली जीत

2004 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सोनिया और राहुल गांधी ने देश के बाकी हिस्सों में भी ध्यान देना शुरू कर दिया। दोनों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में दौरा कर पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में जुट गए। इसके साथ-साथ सोनिया आम आदमी का फोकस अपनी सरकार की तरफ मोड़ने में लगी रही। उन्होंने अपनी सरकार के दौरान कई ऐसे कानून लाए, जो आम आदमी से जुड़े हुए थे। इसका नतीजा ये रहा कि सोनिया एक बार फिर से कांग्रेस को जिताने में कामयाब रही। 2009 के चुनावों में एक बार फिर से यूपीए सत्ता में लौटी और मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए।



2014 में नहीं चला जादू

सोनिया गांधी कांग्रेस को भले ही 2004 और 2009 के चुनावों में जीत दिलाने में कामयाब रहीं हों, लेकिन 2014 में उन्हें अपनी सत्ता गंवानी पड़ी। साल 2013 के बाद से पार्टी कई हिस्सों में कमजोर पड़ती गई। इससे पार्टी वर्कर्स का भी कॉन्फिडेंस टूट गया। यूपीए-2 के शासन के दौरान सरकार में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए। इसके साथ-साथ सोनिया पर पीछे से सरकार चलाने के आरोप भी बीजेपी ने लगाए। नतीजा, 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। इस चुनावों में बीजेपी ने जहां 282 सीटें जीती, वहीं कांग्रेस सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद से ही कांग्रेस विधानसभा चुनावों में भी कमजोर होती चली गई और इस वक्त कांग्रेस अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। लेकिन हर बार की तरह सोनिया इस बार भी अपनी पार्टी को बचाने के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई हैं। 

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