विस्थापन दिवस: 29 साल पहले कश्मीर में रहते थे पंडितों के 3 लाख परिवार, आज बचे सिर्फ 808

विस्थापन दिवस: 29 साल पहले कश्मीर में रहते थे पंडितों के 3 लाख परिवार, आज बचे सिर्फ 808

Bhaskar Hindi
Update: 2019-01-19 06:45 GMT
हाईलाइट
  • 17 जनवरी 1990 को भागना पड़ा था कश्मीर छोड़कर
  • अब भी तरस रहे वापस लौटने के लिए
  • रातों रात कश्मीर से भागे थे पंडित

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कश्मीर से भागकर देशभर में विस्थापितों का जीवन जीने को मजबूर कश्मीरी पंडितों का आज विस्थापन दिवस है। आज से ठीक 29 साल पहले 19 जनवरी 1990 के दिन उन्हें अपना सबकुछ छोड़कर रातों-रात भागना पड़ा था। तब से लेकर अब तक कई सरकारें बदल गईं, कई राजनैतिक दलों ने सत्ता का स्वाद चख लिया, कई पार्टियों ने विपक्ष में दमदार भूमिका भी निभाई, लेकिन कश्मीरी पंडितों के दर्द की फिक्र किसी ने नहीं की। कभी कश्मीर में पंडितों के 3 लाख परिवार रहते थे, लेकिन आज सिर्फ 808 बचे हैं।

धरती का स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर के मूल नागरिक कश्मीरी पंडित वहां लौटने के लिए तरस रहे हैं, लेकिन सरकार इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। कश्मीरी पंडितों के लिए काम करने वाले संगठन पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ. अजय चुरंगु कहते हैं कि 1990 में चुन-चुनकर पंडितों को मौत के घाट उतारा गया। पंडित समुदाय की महिलाओं के साथ दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर दी गई। चौराहों पर पोस्टर और मस्जिदों पर लाउड स्पीकर लगाकर कश्मीरी पंडितों से कश्मीर छोड़कर चले जाने को कहा गया, जो नहीं गया उसे मौत के घाट उतार दिया।

जानकार बताते हैं कि 1989 में ही कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करने का काम शुरू हो गया था। चार जनवरी 1990 को स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ, जिसमें कश्मीरी पंडितों से कश्मीर छोड़ने या इस्माल कुबूल करने को कहा गया। इसके तुरंत बाद उनके घर और धार्मिक स्थलों पर हमले शुरू हो गए। मजबूरन पंडितों को औने-पौने दाम में जमीन, खेत और मकान बेचने पड़े, जिसने नहीं बेचा उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया।

 

 

 

 

 

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