तलाक के मामले में SC ने खत्म किया 6 महीनों का इंतजार

तलाक के मामले में SC ने खत्म किया 6 महीनों का इंतजार

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-13 05:12 GMT
तलाक के मामले में SC ने खत्म किया 6 महीनों का इंतजार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर परिस्थितियां खास हों तो तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य मानने से इंकार कर दिया है। इस सेक्शन के तहत तलाक में आपसी सहमति होने के भी 6 महीने बाद ही तलाक दिया जाता है। दरअसल सेक्शन 13B(2) में कहा गया है कि पहले मोशन यानी तलाक की अर्जी फैमिली जज के सामने आने के 6 महीने बाद ही दूसरा मोशन हो सकता है।

6 महीने का इंतजार खत्म

कानून में इस अवधि का प्रावधान इसलिए किया गया है। ताकि उस समय सीमा के दौरान अगर पति-पत्नी में सुलह मुमकिन हो तो इस पर प्रयास कर सकें। गौरतलब है कि ये फैसला दिल्ली के एक दंपत्ति के मामले में आया है। 8 साल से अलग रह रहे पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तीस हजारी कोर्ट में तलाक का आवेदन दिया। इससे पहले दोनों ने गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी जैसी तमाम बातें भी आपस में तय कर लीं। इसके बावजूद जज ने उन्हें 6 महीने इंतजार करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 महीने के इंतजार को खत्म कर दिया है। साथ ही, देश की तमाम फैमिली अदालतों को ये निर्देश दिया है कि अब से वो हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य न मानें। अगर जरूरी लगे तो फौरन तलाक का आदेश दे सकते हैं। 

फैमिली जज के विवेक से होगा फैसला

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कोर्ट ने कहा कि अंतिम आदेश के लिए 6 महीने का वक्त लेना सिविल जज के विवेक पर निर्भर होगा। अगर जज चाहे तो खास परिस्थितियों में तुरंत तलाक का आदेश दे सकते हैं। फैसले में कहा गया है कि तलाक की अर्जी लगाने के 1 सप्ताह बाद पति-पत्नी ऊपर बताई गई परिस्थितियों का हवाला देते हुए तुरंत आदेश की मांग कर सकते हैं। अगर फैमिली जज को उचित लगे तो वो तलाक का आदेश जल्दी दे सकते हैं।

इन खास परिस्थितियों में ही फौरन मिलेगा तलाक
1.अगर 13B(2) में कहा गया 6 महीने का वक़्त और 13B(1) में कहा गया 1 साल का वक्त पहले ही बीत चुका हो। यानी तलाक की अर्जी लगाने से डेढ़ साल से ज्यादा समय से पति-पत्नी अलग रह रहे हों।
2.दोनों में सुलह-सफाई के सारे विकल्प असफल हो चुके हों। आगे भी सुलह की कोई गुंजाईश न हो।
3.अगर दोनों पक्ष पत्नी के गुजारे के लिए स्थाई बंदोबस्त,बच्चों की कस्टडी आदि मुद्दों को पुख्ता तौर पर हल कर चुके हों।
4.अगर 6 महीने का इंतजार दोनों की परेशानी को और बढ़ाने वाला नजर आए।

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