इतिहास की पुस्तकों में करने होंगे बदलाव : डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

इतिहास की पुस्तकों में करने होंगे बदलाव : डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

Anita Peddulwar
Update: 2018-03-30 07:01 GMT
इतिहास की पुस्तकों में करने होंगे बदलाव : डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्यसभा सदस्य डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है कि देश की अस्मिता की पहचान कायम रखने के लिए इतिहास की पुस्तकों को बदलना होगा। स्कूलों में इतिहास की पुस्तकों में बाबर, अकबर, औरंगजेब को जितना स्थान मिला है, उतना स्थान शिवाजी महाराज या अन्य भारतीय शासकों को नहीं मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत को राजभाषा बनाया जाना चाहिए। अहिंसा तो श्रेष्ठ है पर, हिंसा का जवाब देने की शक्ति भी होनी चाहिए। करण कोठारी ज्वेलर्स की ओर से महावीर नगर में आयोजित अहिंसा अवार्ड वितरण समारोह में वे बोल रहे थे। 

भौतिक विकास ही पर्याप्त नहीं
डॉ.स्वामी के अनुसार देश में अनेक भाषाओं में संस्कृत का उपयोग अधिक है। तमिल व कन्नड़ में भी 40 प्रतिशत तक संस्कृत शामिल है। नासा के शोध जर्नल में लिखा है कि कंप्यूटर के लिए संस्कृत ही सबसे अनुकूल भाषा है। संस्कृत को महत्व मिलना चाहिए, लेकिन देश में संस्कृत की बात को कुछ लोग असहिष्णु कहने लगते हैं। विकास का महत्व भी समझना होगा। केवल भौतिक विकास पर्याप्त नहीं है। आध्यात्मिक विकास भी आवश्यक है। 

सामाजिक संदेश का पालन जरूरी
आर्थिक मामले पर उन्होंने कहा कि विदेशों की केवल मुनाफा कमाने की नीति अपनाना ठीक नहीं है। भारतीय समाजविदों व ऋषियों ने आर्थिक विकास के साथ सामाजिक कार्य का संदेश दिया है। उसका पालन होना चाहिए। भारतीय संस्कृति को हिंदू संस्कृति मानते हुए उन्होंने कहा कि देश में 82 प्रतिशत लोग इस संस्कृति का पालन कर रहे हैं। दुनिया में 46 में से 45 संस्कृतियों का पतन हो गया, केवल भारतीय संस्कृति कायम है। यहां जाति व लिंगभेद को स्थान नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्म के आधार पर जाति का जन्म हुआ था, लेकिन ऐतिहासिक पुरुषों ने कर्म के माध्यम से ही जाति से ऊपर उठकर कार्य किया। अच्छे कर्म करनेवालों की कोई जाति नहीं होती है। भारतीय समाज में महिलाओं को पूजा गया है।

भारतीय संस्कृति का विदेशों में भी परचम 
भारतीय संस्कृति विदेशों में भी पूजी जा रही है। इंडोनेशिया में नोट पर गणेशजी का चित्र है। विमानतल पर गरुड़ निशान है। बैंकाक में विष्णु की प्रतिमा है। भारतीयों की पूजा पद्धति अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सभी का डीएनए समान है। कार्यक्रम की प्रस्तावना जैन सेवा मंडल के अध्यक्ष सतीश पेंढारी ने रखी। निखिल कुसुमगार ने सत्कारमूर्तियों का परिचय कराया। नगरसेविका आभा पांडे, मुन्नाभाई, संतोष पेंढारी व अन्य पदाधिकारी मंच पर थे। 7 श्रेणी में अवार्ड का वितरण किया गया। लिटिल चैंप अवार्ड पियल प्रियेस डोमगांवकर व गुणवंत युवा अवार्ड प्रेम मिलिंद जैन काे प्रदान किया गया। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए महाभारत व रामायण काल में संघर्ष हुआ है। 

Similar News