पहाड़ी गांवों से पलायन बना बड़ी समस्या, चीन के लिए आसान हो सकता है इस जगह से हमारे देश में घुसपैठ करना!

उत्तराखंड की सीमा से घुसपैठ का डर! पहाड़ी गांवों से पलायन बना बड़ी समस्या, चीन के लिए आसान हो सकता है इस जगह से हमारे देश में घुसपैठ करना!

Anupam Tiwari
Update: 2022-05-04 14:05 GMT
पहाड़ी गांवों से पलायन बना बड़ी समस्या, चीन के लिए आसान हो सकता है इस जगह से हमारे देश में घुसपैठ करना!
हाईलाइट
  • 3
  • 946 गांवों से 11
  • 8981 व्यक्तियों ने स्थायी रूप से पलायन किया
  • गांवों में ही पर्यटन
  • कृषि और उद्योग के क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर बढ़ाया जाए

डिजिटल डेस्क, देहरादून, अनुपम तिवारी। उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों से पलायन का मामला सामने आया है। जिसने न केवल उत्तराखंड बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। उत्तराखंड देश का ऐसा प्रदेश है, जो दो देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को छूता है। पहला नेपाल तथा दूसरा चीन के साथ मिलकर 625 किमी सीमा साझा करता है। चीन के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध न होने के नाते सीमावर्ती गांवों से पलायन की वजह से घुसपैठ का खतरा बढ़ता जा रहा है। बताया जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पास स्थित गांवों के लोग पलायन कर कहीं दूसरी जगह जाकर बस रहे हैं।

इन लोगों के पलायन की असल वजह क्या हो सकती है, अगर सरकार समय रहते इस पर समीक्षा नहीं करती तो आने वाले समय में जम्मू कश्मीर जैसे हालात से इनकार नहीं किया जा सकता है। उत्तराखंड के पहाड़ी गांव जो चीन व नेपाल सीमा से सटे हैं, उनकी वजह से वहां स्थानीय लोगों द्वारा ही निगरानी होती रहती थी। अब जब पलायन नहीं रूकेगा तो घुसपैठ बढ़ना तय माना जा रहा है फिर सरकार के पास एक ही विकल्प बचेगा वो है सेना जिसके कंधे पर पूरी जिम्मेदारी आ जाएगी। जो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की निगरानी करेगी।

पलायन को रोकने लिए बना था आयोग

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से ग्रामीणों के पलायन को रोकने की सरकारों की प्राथमिकता रही है। जिसके लिए साल 2017 में  उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का गठन भी किया जा चुका है। अब आयोग अपनी संस्तुतियों पर संबंधित विभागों से कार्यो की समीक्षा करना शुरू कर चुका है। खबरों के मुताबिक आयोग के उपाध्यक्ष डॉ एसएस नेगी ने संबंधित विभागों से आयोग को प्रगति रिपोर्ट देने को कहा है।

बताया जा रहा है कि सरकार यह जानना चाहती है कि आयोग बनने के बाद सरकारी तंत्र का असर पलायन रोकने में कितना कामयाब रहा। अब सवाल उठ रहे हैं कि जिन उम्मीदों के साथ पलायन आयोग का गठन किया गया, पांच सालों में उसका असर कितना जमीन पर दिखा। राज्य की सीमाओं से सटे ग्रामीण इलाकों से हो रहा पलायन क्षेत्रीय न होकर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है। 

इतने लोगों ने किया पलायन

चीन व नेपाल की सीमाओं से सटे पहाड़ी गावों के निवासियों का पलायन सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़ा दे रहा है। पीएम मोदी भी कई मौकों पर उत्तराखंड के पहाड़ों का पानी एवं युवाओं का पलायन रोकने को बड़ी चुनौती एवं अपनी प्राथमिकता मान चुके हैं। गौरतलब है कि पलायन आयोग ने वर्ष 2018 में राज्य के 16 हजार से ज्यादा गांवों का सर्वेक्षण कर सरकार को अपनी  रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि 3,946 गांवों से 11,8981 व्यक्तियों ने स्थायी रूप से पलायन किया। जबकि 6,338 गांवों से 3,83,626 व्यक्तियों ने अस्थायी रूप से गांवों को छोड़ा दिया है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1702 गांव ऐसे है, जहां पर कोई भी नहीं है। यानी इंसान के दर्शन दुर्लभ है। इनके अलावा सैकड़ों गांव ऐसे भी हैं, जहां पर आबादी नाम मात्र रह गई है। आयोग ने सरकार को सुझाव भी भेजा है, जिनमें कहा गया है कि  गांवों में ही पर्यटन, कृषि और उद्योग के क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसर बढ़ाया जाए। बताया जा रहा है कि सरकार ने अब तीन सौ से ज्यादा गांवों के लिए कार्ययोजना तैयार की, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक पलायन हुआ है। 

पलायन न रूकना चुनौती से कम नहीं

उत्तराखंड के पर्वतीय गांवों से पलायन न रूकना राज्य सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। केंद्र सरकार की चिंता तथा किए जा रहे प्रामाणिक कार्य प्रदेश की सरकारों पर सवालिया निशान भी रखते हैं। भले ही राज्य सरकार पर्वतीय क्षेत्रों के लिए आर्थिक रूप से उतना नहीं कर सकती जितना केंद्र सरकार कर सकती है। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों की जन जागरूकता को बढ़ाना, उचित वातावरण, अच्छी स्वास्थ्य, शुद्ध जल, रोजगार की व्यवस्था करना तो राज्य सरकार का दायित्व बनता है। राज्य सरकार इन जिम्मेदारियों से हट नहीं सकती। हर काम के लिए राज्य सरकार को केंद्र को ताकना उसकी नाकामी ही मानी जाएगी। अब राज्य सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए व पलायन को रोकने के लिए विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

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