नाकामी को पीछे छोड़ आगे बढ़ा इसरो, 12 अप्रैल को लांच करेगा IRNSS-1I

नाकामी को पीछे छोड़ आगे बढ़ा इसरो, 12 अप्रैल को लांच करेगा IRNSS-1I

Bhaskar Hindi
Update: 2018-04-10 10:41 GMT
नाकामी को पीछे छोड़ आगे बढ़ा इसरो, 12 अप्रैल को लांच करेगा IRNSS-1I
हाईलाइट
  • समुद्री नैविगेशन के अलावा सैन्य क्षेत्र में भी सहायता करेगा।
  • IRNSS-1I का वजन 600 किलो है और इसकी आयु 10 साल होगी।
  • इसरो सेना की मदद करने के लिए अब अपना अगला नेविगेशन सैटलाइट (IRNSS-1I) लांच करने वाला है।
  • यह भारतीय नेविगेशन की आठवीं सैटेलाइट है। IRNSS-1I इसरो की नाविक प्रणाली का हिस्सा होगा।
  • स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस उपग्रह को PSLV-C41 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया जाएगा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पिछले माह 29 मार्च को लांच किए गए भारतीय सैटलाइट GSAT-6A के अंतरिक्ष में गायब होने के बाद इसरो ने इस असफलता को भुलाते हुए आगे कदम बढाने की तैयारी कर ली है। इसरो सेना की मदद करने के लिए अब अपना अगला नेविगेशन सैटलाइट (IRNSS-1I) लांच करने वाला है। 12 अप्रैल को इसरो इस उपग्रह को लांच करेगा।

बता दें भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के सयुंक्त प्रयास से 29 मार्च को लांच किए गए भारतीय सैटलाइट GSAT-6A से लांच के बाद संपर्क टूट गया था। जिसके बाद से उससे लगातार संपर्क साधने का प्रयास किया जा रहा है। इस उपग्रह के गायब होने की घटना को वैज्ञानिकों के साथ-साथ सशस्त्र सेनाओं के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है। लेकिन अब इसरो ने आगे बढ़ते हुए IRNSS-1I सैटलाइट के लॉन्च पर फोकस कर रहा है। स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस उपग्रह को  PSLV-C41 रॉकेट की मदद से लॉन्च किया जाएगा। 

यह भी पढ़ें : जीसैट-6ए से संपर्क नहीं साध सका इसरो, तीन दिनों से जारी है खोजबीन 

10 साल होगी इस उपग्रह की आयु, करेगा मदद 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बयान में कहा, "ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) 12 अप्रैल को सुबह तड़के 4.04 बजे श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केंद्र से IRNSS-1I उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष में जाएगा।" बता दें IRNSS-1I का वजन 600 किलो है और इसकी आयु 10 साल होगी। यह भारतीय नेविगेशन की आठवीं सैटेलाइट है। IRNSS-1I इसरो की नाविक प्रणाली का हिस्सा होगा।

अभी तक इस परियोजना की सभी सैटलाइट का लॉन्च (एक के सिवाय) सफल रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य देश और उसकी सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी के हिस्से में इसकी उपयोगकर्ता को सही जानकारी देना है। यह सैटलाइट मैप तैयार करने, समय का बिल्कुल सही पता लगाने, समुद्री नैविगेशन के अलावा सैन्य क्षेत्र में भी सहायता करेगा।

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