महाराष्ट्र: किन परिस्थितियों में राज्य में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन

महाराष्ट्र: किन परिस्थितियों में राज्य में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन

Bhaskar Hindi
Update: 2019-11-12 13:47 GMT
महाराष्ट्र: किन परिस्थितियों में राज्य में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है। इसके साथ ही राज्य में कुछ दिनों से चल रहा सत्ता का संघर्ष थम गया है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार नहीं बना सके। सीएम पद को लेकर दोनों पार्टियों में ठन गई और दोनों अलग हो गए। इसके बाद राज्यपाल ने पहले भाजपा फिर शिवसेना को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया, लेकिन भाजपा ने सरकार के गठन में असमर्थता दिखाई। इसके बाद शिवसेना भी दिए गए समय में सरकार के गठन के लिए राज्यपाल के सामने बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई।

मंगलवार को एनसीपी की बारी थी, लेकिन इससे पहले ही मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन पर फैसला ले लिया है और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज दी। इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी। भास्कर हिंदी आपको बता रहा है कि किसी राज्य में किन परिस्थितयों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है...

महाराष्ट्र राष्ट्रपति शासन इसलिए लगाया गया, क्योंकि विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद कोई भी दल या गठबंधन विधानसभा सदस्यों की संख्या (288) के हिसाब से तय बहुमत (145 सीटें) सिद्ध नहीं कर पाया। 

राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था
संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 365 में राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान हैं। इसके मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है। ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें। यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है।

संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है। यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है।

इन परिस्थितियों में लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन 

  • अगर  चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत न मिला हो। 
  • जिस पार्टी को बहुमत मिला हो वह सरकार बनाने से इनकार कर दे और राज्यपाल को दूसरा कोई ऐसा दल नहीं मिले जो सरकार बनाने की स्थिति में हो।
  • राज्य सरकार विधानसभा में हार के बाद इस्तीफा दे दे और दूसरे दल सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हो। 
  • राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन ना किया हो।
  • कोई राज्य सरकार जान-बूझकर आंतरिक अशांति को बढ़ावा या जन्म दे रही हो।
  • राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्यों का निर्वाह नहीं कर रही हो।

राष्ट्रपति शासन के लागू होने के दो महीनों के भीतर संसद के दोनों सदनों के द्वारा अनुमोदन हो जाना चाहिए। दोनों सदनों में इसका अनुमोदन होने के बाद राष्ट्रपति शासन छह महीने तक चल सकता है। भारत में अब तक करीब 125 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। भारत में राष्ट्रपति शासन सबसे पहले पंजाब में साल 1951 में लगाया गया था। 

क्या होते हैं बदलाव

  • राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देते हैं।
  • राष्ट्रपति, राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेते हैं और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं।
  • राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है। यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गई घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी।
  • संसद ही राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है।
  • संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है।
  • जब संसद नहीं चल रही हो तो राष्ट्रपति, "अनुच्छेद 356 शासित राज्य" के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है।
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