ऑपरेशन कैक्टस : जब भारतीय सेना ने 2 दिनों में ही निपटा दिया था मालदीव संकट

ऑपरेशन कैक्टस : जब भारतीय सेना ने 2 दिनों में ही निपटा दिया था मालदीव संकट

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-09 06:18 GMT
ऑपरेशन कैक्टस : जब भारतीय सेना ने 2 दिनों में ही निपटा दिया था मालदीव संकट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मालदीव की सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव के कारण वहां एक बार फिर से राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों की इमरजेंसी का एलान कर दिया है। चीफ जस्टिस समेत पूर्व राष्ट्रपति गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से मदद मांगी है। नशीद ने कहा है कि जिस तरह से भारत ने 1988 में मालदीव संकट को सुलझाया था। ठीक उसी तरह से इस बार भी इस समस्या का समाधान निकाले। हालांकि भारत ने अभी इस बारे में साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन 30 साल पहले राजीव गांधी की सरकार ने जिस तरह से मालदीव को संकट से निकाला था, उसे आज भी याद किया जाता है। आज जब एक बार फिर से 30 साल पुरानी बात का जिक्र हो रहा है, तो ऐसे में हम आपको उस ऑपरेशन के बारे में बताने जा रहे हैं जो भारत ने 1988 में मालदीव में चलाया था।


"ऑपरेशन कैक्टस" चलाकर बचाया मालदीव को

आज से 30 साल पहले 1988 में श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन "पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम" (PLOTE) ने मालदीव पर हमला कर दिया। श्रीलंका के सैकड़ों उग्रवादियों ने मालदीव की सरकारी बिल्डिंग्स, एयरपोर्ट्स, टेलीविजन स्टेशन पर कब्जा कर लिया। ये संगठन मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम को सत्ता से हटाना चाहते थे। राष्ट्रपति गयूम ने भारत, चीन, पाकिस्तान, ब्रिटेन समेत कई देशों से मदद मांगी, लेकिन सबने मना कर दिया। उस समय भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, जिन्होंने इस बात को मान लिया और तुरंत भारतीय सेना को मालदीव भेज दिया। मालदीव पहुंचकर भारतीय सेना ने 2 दिन के अंदर ही वहां से श्रीलंकाई उग्रवादियों को खदेड़ दिया। भारतीय सेना की तरफ से चलाए गए इस ऑपरेशन को "कैक्टस" नाम दिया गया। "ऑपरेशन कैक्टस" की तारीफ उस समय पूरी दुनिया ने की थी और यही कारण है कि एक बार फिर से मालदीव भारत की तरह उम्मीद लेकर बैठा है।

 



क्या हुआ था नवंबर 1988 को? 

3 नवंबर 1988 को श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन PLOTE के सैकड़ों आतंकी मालदीव पहुंच गए। ये उग्रवादी मालदीव में पर्यटकों की भेष में पहुंचे थे और इनकी योजना थी तख्तापलट की। इस योजना में श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लथुफी ने उग्रवादियों के साथ मिलकर तैयार किया था। बताया ये भी जाता है कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नसीर भी इस साजिश में शामिल थे। श्रीलंका में तैयार हुई इस पूरी प्लानिंग को मालदीव में अंजाम दिया गया।

राजीव गांधी ने लिया एक्शन

नवंबर 1988 को मालदीव पहुंचे इन उग्रवादियों ने मालदीव की राजधानी माले की ज्यादातर सरकारी बिल्डिंगों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। इसके साथ ही एयरपोर्ट, पोर्ट्स (बंदरगाह) और टेलीविजन स्टेशन को भी अपने कंट्रोल में ले लिया। इन उग्रवादियों का मकसद तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम तक पहुंचना था। राष्ट्रपति गयूम को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत भारत समेत कई देशों को इमरजेंसी मैसेज भेजकर मदद मांगी। भारत ने तुरंत मालदीव सरकार की इस बात को मान लिया और उन्होंने बिना वक्त गंवाए इस पर एक्शन लेने का मूड बना लिया।

 



फिर शुरू हुई भारतीय सेना की कार्रवाई

मालदीव संकट को निपटाने के लिए राजीव गांधी ने तुरंत सेना को अलर्ट भेजा। इसके बाद 3 नवंबर की रात को ही आगरा से भारतीय सेना की पैराशूट बिग्रेड के करीब 300 जवान माले के लिए रवाना हुए। राष्ट्रपति गयूम की अपील के 9 घंटे के अंदर ही भारतीय सेना हुलहुल एयरपोर्ट पहुंच गए। ये एयरपोर्ट माले की सेना के कंट्रोल में था। हुलहुल एयरपोर्ट से लगूनों को पार करते हुए भारतीय सेना राजधानी माले पहुंची। इसी बीच कोच्चि से भारत ने और सेना भेजनी शुरू की। इसके साथ ही माले के ऊपर इंडियन एयरफोर्स के मिराज फाइटर प्लेन उड़ान भर रहे थे। उग्रवादियों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उन्हें इतनी जल्दी जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। भारतीय सेना ने सबसे पहले एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लिया और फिर राष्ट्रपति गयूम को सुरक्षित किया। जमीनी और हवाई कार्रवाई के बाद भारतीय सेना ने अपने वॉरशिप्स भी उतार दिए। भारतीय सेना ने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन को काट दिया।

 



कुछ ही घंटो में खदेड़ दिया

भारतीय सेना ने अपनी कार्रवाई से कुछ ही घंटों में श्रीलंकाई उग्रवादियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। उग्रवादी भारत की कार्रवाई से घबराकर तुरंत श्रीलंका भागने लगे, तभी कुछ उग्रवादियों ने एक जहाज को अगवा कर लिया। ये जहाज अमेरिकी नेवी का था। अमेरिकी नेवी ने इस बात की जानकारी तुरंत इंडियन नेवी को दी। इसके बाद आईएनएस गोदावरी से एक हेलीकॉप्टर उड़ान भरी और अगवा जहाज पर भारत के मरीन कमांडो उतार दिए। कमाडो कार्रवाई में 19 लोग मारे गए थे।

दुनिया ने की भारत की तारीफ

आजादी के बाद पहली बार विदेशी धरती पर भारत का ये पहला मिलिट्री एक्शन था, जिसे "ऑपरेशन कैक्टस" नाम दिया गया। इस ऑपरेशन की अगुवाई पैराशूट बिग्रेड के ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा कर रहे थे। दो दिन के अंदर ही ये पूरा ऑपरेशन खत्म हो गया। भारतीय सेना की इस कार्रवाई की यूनाइटेड नेशंस, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने तारीफ की, लेकिन श्रीलंका ने इसका कड़ा विरोध किया था। माले में "ऑपरेशन कैक्टस" को आज भी दुनिया के सबसे सफल ऑपरेशंस में गिना जाता है।

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