मनमोहन सिंह की सैन्य बलों से अपील- धार्मिक अपीलों से खुद को दूर रखें

मनमोहन सिंह की सैन्य बलों से अपील- धार्मिक अपीलों से खुद को दूर रखें

Bhaskar Hindi
Update: 2018-09-25 19:19 GMT
मनमोहन सिंह की सैन्य बलों से अपील- धार्मिक अपीलों से खुद को दूर रखें
हाईलाइट
  • उन्होंने कहा भारतीय सशस्त्र बल देश के शानदार धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा हैं।
  • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को भारतीय सशस्त्र बलों से आग्रह किया कि वह धर्मिक अपीलों से दूर रहे।
  • मंगलवार को कॉमरेड एबी वर्धन स्मृति व्याखान को संबोधित करते हुए कहा मनमोहन सिंह ने ये बात कही।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को भारतीय सशस्त्र बलों से आग्रह किया कि वह धर्मिक अपीलों से दूर रहे। उन्होंने कहा भारतीय सशस्त्र बल देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा हैं। ऐसे में जरूरी है कि सशस्त्र बल स्वयं को सांप्रदायिक प्रभाव से दूर रखें। मंगलवार को भाकपा के "धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा" विषय पर आयोजित दूसरे एबी बर्धन व्याख्यान में बोलते हुए मनमोहन सिंह ने ये बात कही।

मनमोहन सिंह ने कहा- मौजूदा राजनीतिक विवादों और बढ़ती हुई चुनावी रंजिशों के चलते न्यायपालिका की भूमिका और भी बढ़ गई है। न्यायपालिका को संविधान संरक्षक की भूमिका में खुद की स्थापित परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, "गैर जिम्मेदाराना और स्वार्थी राजनीतिज्ञ जो हमारी राजनीति में सांप्रदायिक रंग घोल रहे हैं, उससे भी बचना होगा। आज राजनीतिक भेदभावों के चलते समाज में धर्मिक तत्वों, प्रतीकों, मिथकों और पूर्वाग्रहों की मौजूदगी भी काफी अधिक बढ़ गई है।"

मनमोहन सिंह ने बाबरी मस्जिद मामले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, 1990 के दशक के शुरुआती दौर में राजनीतिक दलों के बीच बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को लेकर झगड़ा काफी बढ़ गया था। इसका अंत सुप्रीम कोर्ट में हुआ। डॉ. सिंह ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को दर्दनाक घटना बताते हुये कहा ‘‘छह दिसंबर 1992 का दिन हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था। इससे हमारी धर्मनिरपेक्षता को आघात पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने एस आर बोम्मई मामले में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मौलिक स्वरूप का हिस्सा बताया।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश यह संतोषजनक स्थिति कम समय के लिए ही कायम रही, क्योंकि बोम्मई मामले के कुछ समय बाद ही ‘हिंदुत्व को जीवनशैली’ बताने वाला न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का मशहूर लेकिन विवादित फैसला आ गया। इससे गणतांत्रिक व्यवस्था में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के बारे में राजनीतिक दलों के बीच चल रही बहस पर निर्णायक असर हुआ। उन्होंने कहा कि जजों की सजगता और बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद कोई भी संवैधानिक व्यवस्था सिर्फ न्यायपालिका द्वारा संरक्षित नहीं की जा सकती है। अंतिम तौर पर संविधान और इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं के संरक्षण की जिम्मेदारी राजनीतिक नेतृत्व, नागरिक समाज, धार्मिक नेताओं और प्रबुद्ध वर्ग की है।

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