...तो क्या मोदी विरोधी मोर्चे का प्रमुख चेहरा बनकर उभरी हैं मायावती

...तो क्या मोदी विरोधी मोर्चे का प्रमुख चेहरा बनकर उभरी हैं मायावती

Tejinder Singh
Update: 2018-05-28 10:48 GMT
...तो क्या मोदी विरोधी मोर्चे का प्रमुख चेहरा बनकर उभरी हैं मायावती

अजीत कुमार, नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव के पहले मोदी विरोधी मोर्चा बनाने की कवायद जोर पकड़ने लगी है। विपक्षी एकता की इस कवायद में बसपा सुप्रीमो मायावती एक प्रमुख चेहरा बनकर उभरी हैं। दलित मतदाताओं पर गहरा असर रखने वाली मायावती ने न केवल गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में अपनी ताकत दिखाई है, बल्कि कर्नाटक में JDS के साथ चुनाव लड़कर अपनी सियासी परिपक्वता का भी परिचय दिया है। यही वजह रही कि कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह में बसपा सुप्रीमो आकर्षण का केन्द्र रहीं।

मप्र, छग में माया का साथ चाहती है कांग्रेस
शपथ मंच पर माया और कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी के सामने दूसरे नेता लगभग बौने दिखे। बसपा का जनाधार भले ही उत्तरप्रदेश तक सीमित हो, परंतु दूसरे राज्यों में दलित मतदाताओं की ठोस तादाद के मद्देनजर सभी पार्टियां मायावती को दलित आइकॉन के रूप में देख रही हैं। यही वजह रही कि मंच पर न केवल सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी बल्कि सोनिया गांधी भी मायावती पर लोटपोट दिखीं। सोनिया और माया की उस दिन की एक आत्मीय तस्वीर फोटो ऑफ द डे मानी गई। भाजपा विरोधी दलों का आकलन है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती का साथ रहना विपक्षी गठबंधन के लिए बेहद जरूरी है।

लोकसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस वर्ष नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। चूंकि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच लगभग सीधा मुकाबला है। लिहाजा इन राज्यों में दलित वोटबैंक का बंटवारा रोकने और अपनी जीत पक्की करने के लिए कांग्रेस बसपा को अपने साथ लेने की कोशिश में है। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने इस संदर्भ में माया से बात भी की है। लेकिन सियासत की चतुर खिलाड़ी मायावती ने अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है। माया ने कहा है कि इन राज्यों में सम्मानजनक सीटें मिलने के बाद ही गठबंधन किया जाएगा।

प्रधानमंत्री पद पर भी है माया की नजर
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बसपा शून्य (सीट) पर आउट हो गई थी, परंतु इस बार के हालात अलग दिख रहे हैं। मायावती का आकलन है कि सपा और बसपा के साथ आने के बाद 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में बसपा को अच्छी सीटें मिलेंगी। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री पद पर उनकी मजबूत दावेदारी बन सकती है, लेकिन यह तभी होगा जब विपक्षी दलों के कुछ अहम नेताओं का उन्हें साथ मिले। लिहाजा मायावती इस हिसाब से भी अपनी सियासी गोटियां फिट करने में जुटी हैं।

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