पैगंबर को भी मंजूर नहीं था ट्रिपल तलाक : सुप्रीम कोर्ट

पैगंबर को भी मंजूर नहीं था ट्रिपल तलाक : सुप्रीम कोर्ट

Bhaskar Hindi
Update: 2017-08-22 18:03 GMT
पैगंबर को भी मंजूर नहीं था ट्रिपल तलाक : सुप्रीम कोर्ट

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मंगलवार को तीन तलाक को असवैंधानिक करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दलील रखी कि 3 तलाक को तो पैगंबर ने भी गलत माना है। जस्टिस नरीमन का कहना है कि इस्लाम में विवाह को एक समझौता माना जाता है। अन्य समझौतों की तरह से यह भी विशेष परिस्थितियों में तोड़ा जा सकता है।

पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से पहले अरब में इस बात की आजादी थी कि छोटी सी बात पर पत्नी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। जब इस्लाम बना तो उसमें तलाक को उस स्थिति में मान्यता दी गई, जिसमें पत्नी के गलत चरित्र की वजह से वैवाहिक संबंध निभाना असंभव हो जाए। लेकिन ऐसे ज्यादातर मामलों में व्यक्ति तलाक के लिए सही कारण को बता ही नहीं पाता है।

खुदा की नजर में सबसे बुरी चीज

जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि तलाक न केवल विवाह को तोड़ता है, बल्कि इससे मानसिक व अन्य कई तरह की व्याधियां पैदा होती हैं, जो इस रिश्ते से जन्मे बच्चों पर गलत असर डालती हैं। कुरान में कहीं भी एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था कायम नहीं की गई है। इस्लाम जुल्म, नाइंसाफी और शोषण के खिलाफ है। मोहम्मद पैगंबर साहब ने एक साथ तीन तलाक को अबगजुल हलाल यानी खुदा की नजर में सबसे बुरी चीज कहा था।

इस्लाम कभी महिलाओं के खिलाफ नहीं रहा

पैगंबर साहब ने कहा था कि यदि व्यक्ति गुस्से में भी 3 बार तलाक-तलाक बोल दे तो भी उसे एक ही बार समझा जाना चाहिए। कुरान में तलाक की जो व्यवस्था है, उसमें तीन बार तलाक कहे जाने के बीच एक-एक महीने का अंतराल दिया गया है, ताकि अगर तलाक देने वाला पुरुष अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहे, तो ऐसा कर सके। तुरंत तलाक की बात करें तो यह क़ुरान में या पैगंबर-ए-इस्लाम के समय में था ही नहीं। आज जो फैसला हुआ है, असल में वो इस्लाम के हक में ही हुआ है, क्योंकि इस्लाम कभी महिलाओं के खिलाफ नहीं रहा।

Similar News