पेशावर हाईकोर्ट ने सैन्य अदालत के फैसले को बदला

पेशावर हाईकोर्ट ने सैन्य अदालत के फैसले को बदला

IANS News
Update: 2020-06-18 13:31 GMT
पेशावर हाईकोर्ट ने सैन्य अदालत के फैसले को बदला

इस्लामाबाद, 18 जून (आईएएनएस)। पाकिस्तान में कानूनी न्याय प्रणाली द्वारा सैन्य अदालतों में मुकदमों के निष्पक्ष परीक्षण और सजाओं के फैसलों पर चिंता जताते हुए सवाल उठाया जाता रहा है।

सैन्य अदालतों द्वारा आतंकवादियों को सुनाई गई मौत की सजाओं के बीच यह बहस दब जाती है लेकिन सिविल अदालतों में निष्पक्ष सुनवाई का मामला हमेशा सामने आता रहता है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा पाकिस्तान में कुलभूषण जाधव को दी गई मौत की सजा को रोकने के भारत के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद यह बहस और भी तेज हो गई। सैन्य अदालत ने जाधव को जासूसी और आतंकवाद के मामले में मौत की सजा सुनाई थी।

ताजा मामले में, पेशावर उच्च न्यायालय (पीएचसी) ने सैन्य अदालतों द्वारा दोषी ठहराए गए कम से कम 200 लोगों की सजा को रद्द करते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा करने का आदेश दिया है।

पीएचसी द्वारा रिहा किए गए 200 लोगों में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें मौत की सजा सैन्य अदालत ने सुनाई थी। उम्र कैद और 10 साल तक जेल की सजा काट रहे लोग भी इनमें शामिल हैं।

पीएचसी की दो सदस्यीय पीठ ने संक्षिप्त आदेश जारी करते हुए कहा कि अभियुक्तों का मुकदमा निष्पक्ष तरीके से नहीं चलाया गया और इनके स्वीकारोक्ति बयानों के आधार पर इन्हें सजा सुना दी गई।

इस आदेश के अलावा, पीएचसी ने रिकॉर्ड उपलब्ध न होने के कारण कम से कम 100 और व्यक्तियों की ऐसी ही याचिकाओं को भी स्थगित कर दिया।

अदालत के इन आदेशों का बेहद महत्व इसलिए भी है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने 13 मई को पीएचसी को सैन्य अदालत से दोषी करार दिए गए कम से कम 290 दोषियों की रिहाई या जमानत पर किसी अंतरिम आदेश को पारित करने से रोक दिया था। लेकिन पीएचसी ने संघीय सरकार की याचिका पर सुनवाई की और आतंकवाद के आरोपी 290 लोगों के पक्ष में आदेश दिया।

16 दिसंबर 2014 को पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए वहशियाना आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में सैन्य अदालतें स्थापित की गई थीं। इस हमले में आतंकवादियों ने कम से कम 144 स्कूली बच्चों और शिक्षकों की हत्या कर दी थी।

इसके बाद, कई आतंकवादियों को सैन्य अदालतों द्वारा मृत्युदंड दिया गया।

लेकिन, वैश्विक निकायों द्वारा सैन्य अदालतों की वैधता पर हमेशा सवाल उठाया गया और इसकी आलोचना की गई।

200 दोषी ठहराए गए लोगों को रिहा करने के पीएचसी के ताजा फैसले से सैन्य अदालतों द्वारा दिए जाने वाले मृत्युदंड और आरोपियों की निष्पक्ष सुनवाई तक पहुंच पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठे हैं।

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