देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने जनरल बिपिन रावत की कहानी

सीडीएस बिपिन रावत के जीवन पर एक नजर देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने जनरल बिपिन रावत की कहानी

Neha Kumari
Update: 2021-12-08 09:56 GMT
देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने जनरल बिपिन रावत की कहानी
हाईलाइट
  • सोर्ड ऑफ ऑनर से नवाजा गया था
  • गोरखा राइफल्स से की शुरुआत
  • भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सीडीएस बिपिन रावत देश के पहले ऐसे सेना प्रमुख थे जिन्हें रिटायरमेंट के बाद भारत सरकार ने तीनों सेनाओं का प्रमुख बनाया। बिपिन रावत भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बने, उन्होंने 31 दिसंबर, 2019 को सीडीएस के रूप में अपना नया कार्यालय संभाला। बिपिन रावत हमेशा से अपने स्कूल के दिनों में दी गई मानवीय सीखों को महत्व देते हैं। अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले ही जनरल बिपिन रावत ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद स्वीकार किया। उनका कर्तव्य भारतीय सशस्त्र बलों की देख-रेख करना और सरकार के लिए एक सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करना रहा। उन्होंने भारतीय सेना के लिए 27वें सेनाध्यक्ष के रूप में कार्य किया, जो बल में सर्वोच्च रैंकिंग पद है।

गोरखा राइफल्स से की शुरुआत 
16 दिसंबर 1978 में बिपिन रावत ने गोरखा राइफल्स की फिफ्थ बटालियन से अपनी शुरुआत की थी। रावत के पिता भी अपने समय में इसी यूनिट में थे। रावत को 1 सितंबर 2016 को भारतीय थलसेना का वाइस चीफ नियुक्त गया था। 2016 में रावत की काबिलियत को देखते हुए उन्हें भारतीय सेना प्रमुख बना गया था। गोरखा ब्रिगेड से सेना प्रमुख बनने वाले रावत पांचवे अफसर थे। 

क्यों थे खास रावत?
1978 में रवात को सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवी बटालियन में कमीशन दिया गया था। भारतीय सैन्य अकादमी में सोर्ड ऑफ ऑनर से नवाजा गया था। रावत ने 1986 में चीन से सटे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इंफैंट्री बटालियन प्रमुख के रूप में भूमिका निभाई थी। उन्होंने राष्ट्रीय राइफल्स के एक सेक्टर और कश्मीर घाटी में 19 इन्फेन्ट्री डिवीजन की अगुआई भी की थी। वह कॉन्गो में संयुक्तराष्ट्र के शांति मिशन का नेतृत्व भी कर चुकें। 1 सितंबर 2016 को उन्हें सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

चली आ रही थी परंपरा
जनरल रावत का परिवार लगातार कई पीढ़ियों से भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रहा है।  रावत के पिता सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत उप सेना प्रमुख के पद से 1988 में वेसेवानिवृत्त हुए थे। रावत को मिले थे यह खास मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अतिविशिष्ठ सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल, विदेश सेवा मेडल।

रावत के पास था अनुभव

रानत के पास काफी अनुभव था, उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर के जगहों पर लंबे समय तक काम किया था। उनकी इसी काबलियित को देखते हुए  31 दिसंबर 2016 को थलसेना प्रमुख बनाया गया था। अहम इलाकों में काम करने की वजह से उन्हें ज्यादा तरजीह दी जाती थी। आतंकियों को ढेर करने में भी रावत ने खास भूमिका निभाई, उनके नेतृत्व में  भारतीय सेना द्वारा कई आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया गया था। कमांडर की भूमिका में  बिपिन रावत ने  म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक कराई थी, यह 2015 में किया गया था जब मणिपुर में आतंकी हमले की वजह से 18 सैनिक शहीद हुए थे, इसके पलटवार में 21 पैरा के कमांडो ने म्यांमार सीमा पार जाकर एनएससीएन नाम के आतंकी संगठन के कई आतंकियों को मार गिराया था। पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी रावत ने खास भूमिका निभाई थी। रावत ने पढ़ाई में पीएचडी, एमिफल और प्रबंधन व कंप्यूटर शिक्षा में डिप्लोमा किया था।



 

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