अयोध्या जमीन विवाद: CJI बोले- मस्जिद से पहले ढांचा था तो सबूत दिखाएं

अयोध्या जमीन विवाद: CJI बोले- मस्जिद से पहले ढांचा था तो सबूत दिखाएं

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-06 03:20 GMT
हाईलाइट
  • अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की गोविंदाचार्य की मांग चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खारिज कर दी
  • मध्यस्थता फेल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला लिया 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज (6 अगस्त) से रोजाना सुनवाई की शुरुआत कर दी है। मध्यस्थता के जरिए विवाद का कोई हल निकालने का प्रयास विफल होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला लिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ में जस्टिस एसए. बोबडे, जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए. नजीर शामिल हैं। इसी बीच अयोध्या मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की गोविंदाचार्य की मांग चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खारिज कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट में निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने दलील दी कि, हमारा 100 साल से कब्ज़ा था। यह जगह राम जन्मस्थान के नाम से जानी जाती है। यह पहले निर्मोही अखाड़े के कब्जे में थी। बाद में दूसरे पक्षकार ने बलपूर्वक हमारी जमीन को कब्ज़े में ले लिया। सुशील जैन ने आंतरिक कोर्ट यार्ड पर मालिकाना हक का दावा किया।

निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट को बताया, 1961 में वक्फ बोर्ड ने इस पर दावा ठोका था, लेकिन हम ही वहां पर सदियों से पूजा करते आ रहे हैं, हमारे पुजारी प्रबंधन को संभाल रहे थे। 6 दिसंबर 1992 को कुछ शरारती तत्वों ने रामजन्मभूमि पर बना विवादित ढांचा ढहा दिया था।

  • निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने दलील दी कि, उनकी मांग सिर्फ विवादित जमीन के आंतरिक हिस्से को लेकर है, जिसमे सीता रसोई और भंडार गृह भी शामिल है। ये सभी हमारे कब्जे में रहे हैं। वहां पर उन्होंने हिंदुओं को पूजा पाठ की अनुमति दे रखी है। दिसंबर 1992 के बाद उस जगह पर उत्पातियों ने निर्मोही अखाड़ा का मंदिर भी तोड़ दिया था।
  • निर्मोही अखाड़े की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि निर्मोही अखाड़ा 19 मार्च 1949 से रजिस्टर्ड है। झांसी की लड़ाई के बाद 'झांसी की रानी' की रक्षा ग्वालियर में निर्मोही अखाड़ा ने की थी।
  • सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन को फटकार भी लगाई। वह कोर्ट के बीच में हस्तक्षेप कर रहे थे। चीफ जस्टिस ने कहा, मर्यादा का ख्याल रखें, कोर्ट आपका पक्ष भी सुनेगा।
  • निर्मोही अखाड़े ने कहा, राम जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में 16 दिसंबर 1949 को आखिरी बार नमाज़ पढ़ी गई थी। जिसके बाद 1961 में वक्फ बोर्ड ने अपना दावा दाखिल किया था।
  • चीफ जस्टिस ने कहा, ट्रायल कोर्ट में जज ने कहा है कि मस्जिद से पहले किसी तरह के ढांचे का कोई सबूत नहीं है। इस पर निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा, अगर इसे ढहा दिया गया तो इसका मतलब ये नहीं है कि वहां पर कोई निर्माण नहीं था। चीफ जस्टिस ने कहा, इसी मुद्दे के लिए ट्रायल होता है, आपको हमें सबूत दिखाना पड़ेगा।

गौरतलब है कि, 1 अगस्त को मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में फाइनल रिपोर्ट पेश की थी और फिर सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि, मध्यस्थता समिति के जरिए मामले का कोई हल नहीं निकला है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था, अगर आपसी सहमति से कोई हल नहीं निकलता है तो मामले की रोजाना सुनवाई होगी। कोर्ट ने अयोध्या विवाद मामले में गठित मध्यस्थता कमिटी को भंग करते हुए कहा था कि 6 अगस्त से अब मामले की रोज सुनवाई होगी। यह सुनवाई हफ्ते में तीन दिन मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को होगी।

आपको बता दें कि, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति गठित की थी। कोर्ट का कहना था, समिति आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे। इस समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे। समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की लेकिन हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई। 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा, वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही।

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