भारत के काबू में आतंकवाद, कश्मीर में बचे हैं सिर्फ 250 आतंकी : न्यूयॉर्क टाइम्स

भारत के काबू में आतंकवाद, कश्मीर में बचे हैं सिर्फ 250 आतंकी : न्यूयॉर्क टाइम्स

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-02 09:18 GMT
भारत के काबू में आतंकवाद, कश्मीर में बचे हैं सिर्फ 250 आतंकी : न्यूयॉर्क टाइम्स
हाईलाइट
  • आतंकवाद की जड़ कमजोर पड़ी।
  • कश्मीर में बचे हैं सिर्फ 250 आतंकी-न्यूयॉर्क टाइम्स।
  • पाक नही कर पा रहा आतंकीयों की मदद।

डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। अमेरिका के मुख्य अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा है कि भारतीय सेना की सख्ती के चलते अब कश्मीर में आतंकवाद की जड़ कमजोर पड़ने लगी है। घाटी में  आतंकी गतिविधियों में अब कमी देखी जा रही है। वहीं आतंकी संगठन भी ज्यादा दिन टिक नही पा रहे हैं। कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या तेजी से घटी है अब यहां सिर्फ 250 आतंकी ही बचे हैं। दो दशक पहले इनकी संख्या 1000 से भी ज्यादा थी।

पाक नही कर पा रहा मदद
पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भारत के दबाव के कारण अब आतंकियों की खास मदद नहीं कर पा रहा है। सुरक्षा बलों के द्वारा लगातार किए जा रहे ऑपरेशनों का यह नतीजा है कि अब ज्यादातर आतंकी कश्मीर में दो साल से ज्यादा जिंदा नहीं बच पाते। रफी बट जो कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर थे, उनके आतंकी बनने के 40 घंटे बाद ही मार दिया गया।
 

कश्मीर पर खास रिपोर्ट में सेना की तारीफ
‘‘कश्मीर वॉर गेट्स स्मालर, डर्टियर एंड मोर इंटिमेट’ टाइटल के साथ न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एनालिसिस में कहा गया है कि ‘‘पाकिस्तान में हुए राजनीतिक बदलाव का असर कश्मीर पर जरूर पड़ेगा। यहां लड़ाई छोटी जरूर होगी, लेकिन खून-खराबा बढ़ने की आशंका भी रहेगी। वहीं भारत की तरफ से कश्मीर घाटी की सुरक्षा में  सेना के ढाई लाख से ज्यादा जवान, बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स और पुलिसकर्मी तैनात हैं। सेना ने आतंकवाद पर काफी हद तक काबू कर लिया है
 


सीमा पार करना आसान नहीं 
सैन्य अधिकारियों के हवाले से एनवाईटी ने लिखा कि ज्यादातर आतंकवादियों को ऑटोमैटिक हथियारों की मदद से मारा जा रहे हैं। बचे हुए 250 आतंकियों में से 50 से ज्यादा पाकिस्तान से आए हुए आतंकवादी हैं। बाकी के आतंकी स्थानीय निवासी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने अब तक घाटी नहीं छोड़ी है। पुलिस का कहना है कि 1990 के दौर में कश्मीरी युवक आसानी से सीमा पार कर पाकिस्तान चले जाते थे। अब ऐसा संभव नहीं है। आतंकियों को अब गोलाबारी की ट्रेनिंग लेने की जगह भी नहीं मिल पा रही है।

 
 

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