टैक्स जमा करना है असली देशभक्ति : अरुण जेटली

टैक्स जमा करना है असली देशभक्ति : अरुण जेटली

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-28 18:09 GMT
टैक्स जमा करना है असली देशभक्ति : अरुण जेटली

डिजिटल डेस्क, मुंबई। फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कहा है कि टैक्स जमा करना ही असली देशभक्ति का काम है। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत यदि विश्व मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका हासिल करना चाहता है, तो उसे ब्लैक मनी की इकोनॉमी को वास्तविक इकोनॉमी से बड़ी नहीं होने देना चाहिए। ब्लैक मनी की इकोनॉमी वास्तविक इकोनॉमी से अधिक बड़ी होने की स्थिति में इकोनॉमी का विकास संभव नहीं है। जेटली ने कहा, "आप ऐसी इकोनॉमी के साथ नहीं चल सकते, जहां ब्लैक मनी की इकोनॉमी वास्तविक इकोनॉमी से कहीं ज्यादा बड़ी हो।" उन्होंने कहा,"अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने की प्रक्रिया चालू हो गई है, ताकि हम तेज गति से विकास करते हुए दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतों में शामिल हो सकें।

 

बढ़ा देश का टैक्स आधार 
फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कहा, इकोनॉमी को साफ-सुथरा बनाने के लिए सरकार क्रमश: आगे बढ़ रही है। अब इसके नतीजे सामने आने लगे हैं। जीएसटी लागू होने के बाद से हमारा टैक्स बेस तेजी से आगे बढ़ रहा है। डिजिटल भुगतान में उछाल आया है। इकोनॉमी में नकदी का चलन सीमित हो रहा है। जीएसटी लागू करने में कुछ असुविधाएं हो सकती हैं, जिन्हें जल्दी ही दूर कर लिया जाएगा। टैक्स का भुगतान करना हर नागरिक का कर्तव्य है। कर व्यवस्था से बचने की जगह इसका हिस्सा बनने की कोशिश करनी चाहिए। यही सच्ची देशभक्ति है। जब लोग अपनी जिम्मेदारी समझेंगे तभी इसके वास्तविक नतीजे सामने आएंगे। बुनियादी सुधारों की राह लंबी है। सरकार ने अभी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने जैसे कुछ कदम उठाए हैं। 


हटाना होगा बैंकों से पर्दा
अरुण जेटली ने इनसॉल्वेंसी कानून को देरी से उठाया गया कदम बताते हुए कहा कि अब इसके परिणाम सामने आएंगे। जेटली ने कहा, उनकी सरकार बैंकों के मामले में बहुत पारदर्शी है। वह चाहती है कि ऐसी प्रणाली विकसित की जाए, जिससे बैंकिंग व्यवस्था की सच्ची तस्वीर सामने आ सके। जब तक बैंकों की सच्ची तस्वीर सामने नहीं होगी, इकोनामिक डेवलपमेंट की कोई सटीक योजना नहीं बनाई जा सकती। पहले हमारे बैंकों ने खूब कर्ज दिए। जब इस तरह कर्ज दिए जा रहे थे तो हम पुराने कर्जों को नया कर्ज बनाने के लिए पुनर्गठन करते जा रहे थे। सन 2015 तक किसी को नहीं पता था कि बैंकों में क्या हो रहा है। वास्तविकता पर पर्दा पड़ा हुआ था। जेटली ने कहा ऋण के मुख्य स्रोत बैंकों में यदि ऐसे दबे-छुपे काम होगा तो कोई अर्थव्यवस्था आगे नहीं बढ़ सकती है। हमें इस परंपरा को पूरी तरह बदलना होगा। 
 

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