पिता से पैसे लेकर देश के लिए रिसर्च करते थे साराभाई, आईआईएम की स्थापना भी की

पिता से पैसे लेकर देश के लिए रिसर्च करते थे साराभाई, आईआईएम की स्थापना भी की

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-12 09:45 GMT
पिता से पैसे लेकर देश के लिए रिसर्च करते थे साराभाई, आईआईएम की स्थापना भी की
हाईलाइट
  • 12 अगस्त 1919 को साराभाई का जन्म हुआ था।
  • साराभाई की अध्यक्षता में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया गया।
  • स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में साराभाई ने भारत को नई ऊंचाईयां दिलाईं।

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भारत अंतरिक्ष प्रोग्राम के जनक विक्रम अंबालाल साराभाई अपने पिता से पैसे लेकर देश के लिए रिसर्च करते थे। उन्होंने सन 1947 में महज 28 साल की उम्र में अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआर) की स्थापना की। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) की भी स्थापना की थी। कुछ ही सालों में उन्होंने इसे विश्वस्तरीय बना दिया। साराभाई के पिता उद्योगपति थे। 12 अगस्त 1919 को साराभाई का जन्म हुआ था। विक्रम साराभाई की प्रतिभा को मशहूर वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने पहचाना था। बाद में विक्रम साराभाई ने एपीजे अब्दुल कलाम की छुपी प्रतिभा खोजी। 
डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई का एक दूसरे से गहरा मानसिक रिश्ता था। भाभा अणु विज्ञान में दिलचस्पी रखते थे तो साराभाई का अध्ययन क्षेत्र अंतरिक्ष विज्ञान था। इंजीनियरिंग और साइंस के क्षेत्र में खास योगदान के लिए भारत सरकार ने 1966 में साराभाई को पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण पुरस्कार दिया था। स्पेस रिसर्च के क्षेत्र में साराभाई ने भारत को नई ऊंचाईयां दिलाईं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की उपस्थिति दर्ज कराई। साराभाई की अध्यक्षता में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया गया। उन्होंने तिरुअनंतपुरम के पास अरबी तट पर थुंबा नाम मछुवाही गांव में देश के प्रथम राकेट प्रमोचन स्टेशन, थुम्बा भू-मध्य रेखीय राकेट प्रमोचन स्टेशन (TERLS) की स्थापना करने का मन बना लिया था। 1957 में स्पुतनिक-1 के प्रमोशन ने उनको अंतरिक्ष विज्ञान के नए परिदृश्यों से अवगत कराया।

 

संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी साराभाई की मौत
साराभाई की मौत पर आज भी संदेह जाहिर किया जाता है। इसरों के एक पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि साराभाई की मौत संदिग्ध थी। उनका पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि साराभाई का सपना आज पूरा हो चुका है। भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आज विकसित देशों के आसपास ही है। उनकी मृत्यु 30 दिसंबर, 1971 को उस जगह के करीब हुई, जहां उन्होंने भारत के पहले रॉकेट का सफल परीक्षण किया था। दरअसल वे थुंबा में एक रूसी रॉकेट का परीक्षण देखने पहुंचे थे। यहीं कोवलम बीच के एक रिसॉर्ट में रात के समय सोते हुए उनकी मौत हो गई। होमी भाभा की तरह साराभाई की मृत्यु पर भी संदेह जताया जाता है. पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण अपनी आत्मकथा में इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि साराभाई की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी लेकिन फिर भी उनका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया।


साराभाई ने हमेशा मेरा साथ दिया: डॉ. कलाम
पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने अंतरिक्ष विज्ञान में करियर की शुरुआत विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में की थी। कलाम ने भाषण में कहा था कि मैंने ऊंचे दर्जे की शिक्षा हासिल की, लेकिन मैं बहुत मेहनत करता था, इसलिए प्रो. साराभाई ने मुझे पहचाना और मौका दिया। उन्होंने मुझे तब जिम्मेदारी दी, जब मेरा आत्मविश्वास सबसे निचले स्तर पर था। मुझे पता था कि यदि मैं असफल भी हो जाऊं तो प्रोफेसर साराभाई मेरे साथ हैं। इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरी रंगन से लेकर डॉ. कलाम तक वरिष्ठ वैज्ञानिकों की पीढ़ी साराभाई ने ही तैयार की थी।

 

थुंबा से छोड़ा देश का पहला रॉकेट
साराभाई और भाभा ने केरल के थुंबा का चयन पहले रॉकेट परीक्षण के लिए किया था। इनके निर्देशन में ही 1963 में पहला प्रायोगिक रॉकेट यहां से छोड़ा गया।
दुनिया के तमाम देशों की दिलचस्पी स्पूतनिक की लॉन्चिंग के साथ अचानक अंतरिक्ष विज्ञान में होने लगी थी। साराभाई के लिए यह घटना उत्साहित करने वाली थी, इसलिए उन्होंने पंडित नेहरू को चिट्ठी लिखी कि इस दिशा में भारत को काम करना चाहिए। इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (इनकॉस्पर) नाम की संस्था सरकार ने 1962 में साराभाई के कहने पर बनाई थी। साराभाई की मदद से भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर संचार उपग्रह की कार्यप्रणाली से इतना परिचित हो गए थे कि स्वदेशी उपग्रह बना सकते थे और वैज्ञानिकों ने 1982 में इनसेट-1ए अंतरिक्ष में पहुंचाकर दिखाया। संचार उपग्रह के क्षेत्र में भारत को आगे लाने पर साराभाई की दूरदृष्टि थी। हालांकि साइट के परीक्षण के समय साराभाई जीवित नहीं थे। 

 

इसरो के पहले अध्यक्ष थे साराभाई
विमान दुर्घटना में होमी भाभा की मृत्यु के बाद, विक्रम साराभाई ने मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद को संभाला। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की, जो आज पूरे विश्व में विख्यात है। डॉ. भाभा की मृत्यु के बाद साराभाई को भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन या इसरो 1969 में इनकॉस्पर को बना दिया गया। इसके पहले अध्यक्ष साराभाई थे।

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