उपराष्ट्रपति चुनाव का घमासान : दोनों उम्मीदवारों ने भरा नामांकन, जानिए उनकी खासियत

उपराष्ट्रपति चुनाव का घमासान : दोनों उम्मीदवारों ने भरा नामांकन, जानिए उनकी खासियत

Bhaskar Hindi
Update: 2017-07-18 03:48 GMT
उपराष्ट्रपति चुनाव का घमासान : दोनों उम्मीदवारों ने भरा नामांकन, जानिए उनकी खासियत

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए वेंकैया नायडू और यूपीए ने गोपालकृष्ण गांधी को चुना है। मंगलवार को तय समय पर नायडू और गांधी ने नामांकन दाखिल कर उपराष्ट्रपति पद के लिए अपनी-अपनी दावेदारी रखी है। दोनों उम्मीदवारों ने संबंधित पार्टियों के प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में चुनावी घमासान का मगलवार को आगाज किया है। 

सोमवार शाम को बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग के बाद अमित शाह ने खुद नायडू के नाम का एलान किया था। उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव 5 अगस्त को होगा सोमवार शाम को बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग के बाद अमित शाह ने खुद नायडू के नाम का एलान किया। उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव 5 अगस्त को होगा और उसी दिन वोटों की गिनती भी की जाएगी। मौजूदा उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यकाल 10 अगस्त को खत्म हो रहा है। कांग्रेस समेत विपक्ष की 18 पार्टियों ने गोपालकृष्ण गांधी को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। गोपालकृष्ण गांधी राज्यपाल भी रह चुके हैं।

ये है जीत का गणित

  • बीजेपी ने उन राज्यों से उम्मीदवार का चयन किया है। जहां पारंपरिक तौर पर उसका वोट बैंक कमजोर है। पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह ने ऐसी संभावनाओं वाले राज्यों के तौर पर आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना और वेस्ट बंगाल की पहचान की थी।
  • इससे पहले बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के लिए दलित कम्युनिटी के रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाकर सभी को चौंका दिया था।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में केवल लोकसभा और राज्यसभा के सांसद वोटिंग करते हैं।
  • उप राष्ट्रपति बनने के लिए 396 वोट चाहिए।
  • वोट देने वाले लोकसभा सांसद राज्यसभा सांसद मिलाकर 790।
  • एनडीए के पास 412 सांसद हैं।
  1. आखिर वेंकैया ही क्यों
    68 साल के वेंकैया का जन्म 1 जुलाई 1949 को नेल्लोर के चावतापालेम में हुआ था। वेंकैया का नाम सबसे पहले 1972 के जय आंध्र आंदोलन से सुर्खियों में आया था। 1974 में वे आंध्रा यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन के नेता चुने गए। इसके बाद वह आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन से जुड़े। आपातकाल के बाद ही उनका जुड़ाव जनता पार्टी से हो गया था। वे 1977 से 1980 तक जनता पार्टी की यूथ विंग के प्रेसिडेंट भी रहे। बाद में वे भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गए। 1978 से 85 तक वे दो बार विधायक भी रहे।
  2.  सितंबर 1993 से 2000 तक वे नेशनल जनरल सेक्रेटरी की पोस्ट पर भी रहे। वे 2002 से 2004 के बीच भारतीय जनता पार्टी के प्रेसिडेंट भी रहे।

सभी दलों से अच्छे संबंध
नायडू अपनी हाजिरजवाबी के लिए मशहूर हैं। नायडू ने संसदीय मामलों के मंत्री के तौर पर कांग्रेस सहित सभी दलों के साथ अच्छे संबंध बनाए थे। वह गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) बिल पर विपक्ष का समर्थन मांगने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर पर भी गए थे। वह राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में भी सोनिया से मिले थे। विपक्षी दलों के साथ उनके अच्छे संबंधों के कारण उन्हें राज्यसभा का कामकाज बेहतर तरीके से चलाने में मदद मिलेगी।


पीएम उम्मीदवारी पर मोदी के समर्थन
टीम आडवाणी में सुषमा, जेटली, अनंत कुमार और प्रमोद महाजन जैसे नेताओं के साथ नायडू का भी कद बढ़ता गया और धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन गए। नायडू ने इस वक्त तक भले ही दो विधानसभा चुनाव जीत लिए थे, मगर उनकी जमीनी स्तर पर पकड़ उतनी मजबूत नहीं थी। एक वक्त तक आडवाणी के विश्वासपात्र रहे नायडू, मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के समय आडवाणी के विरोधी खेमे में भी दिखाई दिए। मोदी की पीएम पद की दावेदारी के वक्त पार्टी के अंदर उनके समर्थकों में से एक प्रमुख चेहरा वह भी थे।

कई बार बने संकटमोचक
नायडू को सरकार के संकटमोचक के तौर पर भी जाना जाता है। कई बड़े मुद्दों पर उन्होंने संसद में विपक्ष पर मजाकिया अंदाज में तंज कसे। जब विपक्ष सरकार पर हमला हुआ, तो कई दफा नायडू ने आगे आकर विपक्ष को अपने तीखे और कभी-कभी मजाकिया लहजे से शांत कराने का काम किया। अगर नायडू उपराष्ट्रपति बनते हैं, तो 10 साल बाद किसी राजनीतिक शख्सियत की इस पद पर वापसी होगी। बतौर उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के तौर पर उनके सामने कई चुनौतियां भी होंगी।

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