मोदी की कविता पर क्या कहते हैं देश के कवि..

मोदी की कविता पर क्या कहते हैं देश के कवि..

IANS News
Update: 2019-09-23 14:30 GMT
मोदी की कविता पर क्या कहते हैं देश के कवि..

नई दिल्ली, 23 सितंबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित कार्यक्रम हाउडी मोदी में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए अपनी कविता की दो पंक्तियां सुनाईं, जो साहित्य प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बनीं। साहित्य जगत से जुड़े कई लोगों ने उनकी काव्य-प्रतिभा की प्रशंसा की।

मेगा शो हाउडी मोदी के दौरान मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि समस्याएं अभी भी बहुत हैं, जिनसे मुकाबला किया जा रहा है। कोशिश यह है कि समस्याओं का जड़ से उन्मूलन कर दिया जाए और इसी क्रम में उन्होंने कहा कि इस मौके पर वह अपनी कविता सुनाना चाहते हैं। यहां समय कम है, इसलिए कविता की दो पंक्तियां ही सुना रहे हैं।

कवि मोदी ने सुनाया, वो जो मुश्किलों का अंबार है

वही तो मेरे हौसलों की मीनार है

प्रधानमंत्री की इन दो पंक्तियों पर हजारों दर्शकों की तालियां ऑडिटोरियम में कई पलों तक गूंजती रहीं। प्रवासी भारतीय मोदी की काव्य-प्रतिभा से अभिभूत हुए। अगले दिन भारत के जनमानस में प्रधानमंत्री की कविता की दो पंक्तियों की खूब चर्चा रही। कई साहित्य प्रेमियों और कवियों ने मोदी की दो पंक्तियों की सराहना की और उनकी तुलना कवि के रूप में भी अपनी पहचान बनाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से की।

जानेमाने कवि हरिओम पंवार ने कहा, मोदीजी की कविता की इन दो पंक्तियों की मैं सराहना करता हूं। इन पंक्तियों से पता चलता है कि उनमें कविता रचने की बेजोड़ प्रतिभा है।

कवि डॉ. रामकृष्ण सिंगी ने मोदी की कविता की काव्यमय सराहना की। उन्होंने कहा, पा न सका अब तक कोई ऊंचाई मोदी की। छू न सका अब तक कोई परछाईं मोदी की। इससे ज्यादा क्या कहूं।

वहीं, डॉ. बलदेव वंशी ने कहा, ये दो पंक्तियां जिंदगी की आंच में तपे हुए मन की अभिव्यक्ति हैं। ये काव्य कला की दृष्टि से अच्छी हैं, प्रशंसनीय हैं।

साहित्य प्रेमी एवं पेशे से अधिवक्ता अखिलेंद्र नाथ ने कहा, मोदीजी की कविता की दो पंक्तियों से पता चलता है कि वे मंजे हुए कवि हैं। उनकी ये पंक्तियां सुनकर मुझे तो पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी की याद आ गई।

कवि नरेंद्र मोदी का गुजराती काव्य संकलन वर्ष 2007 में आंख आ धन्य छे नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसमें कुल 67 कविताएं हैं। इस संकलन का सात साल बाद हिंदी अनुवाद अंजना संधीर ने किया, जो आखं ये धन्य हैं नाम से प्रकाशित हुआ।

इस संकलन की एक कविता तस्वीर के उस पार की कुछ पंक्तियों से कवि नरेंद्र मोदी की काव्य-प्रतिभा का अनुमान लगाया जा सकता है-- तुम मुझे मेरी तस्वीर या पोस्टर में/ढूंढ़ने की कोशिश मत करो/मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूं/अपने आत्मविश्वास में/अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में/तुम मुझे मेरे काम से ही जानो।

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