बिना सीएम चेहरे के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी कांग्रेस

उत्तराखंड बिना सीएम चेहरे के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी कांग्रेस

Anupam Tiwari
Update: 2021-11-15 15:21 GMT
बिना सीएम चेहरे के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में उतरेगी कांग्रेस

डिजिटल डेस्क, देहरादून। उत्तराखंड में 2022 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह बिना किसी सीएम चेहरे के चुनाव में उतरेगी। जिसको लेकर उत्तराखंड की राजनीति में गरमी बढ़ गई है। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को बड़ा झटका लगना माना जा रहा है क्योंकि हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था और वो अक्सर मीडिया के सामने कहते थे कि पंजाब प्रभारी होने के नाते आगामी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव पर ध्यान नहीं दे पार रहे हैं। हालांकि हाई कमान ने उनकी अर्जी सुन ली और हाल में ही उनके हाथ से कांग्रेस प्रभारी का पद लेकर कांग्रेस ने राजस्थान के कैबिनेट मंत्री हरीश चौधरी को पंजाब कांग्रेस प्रभारी का जिम्मा सौपा था। हरीश रावत अब जब उत्तराखंड की राजनीति में अपना सक्रिय योगदान दे रहे है कि अचानक ये खबर हैरान करने वाली आ गई है। हालांकि हरीश रावत की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया है कि वो कांग्रेस के इस फैसले को किस तरह से देखते हैं।  

क्या कांग्रेस उत्तराखंड में भी कलह जारी है?

आपको बता दें कि कांग्रेस ने जो फैसला लिया है। उसको देखते हुए इंकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तराखंड कांग्रेस में भी अंदरूनी कलह जारी है। गौरतलब है कि इस समय हरीश रावत चुनाव अभियान समिति के प्रमुख की भूमिका में हैं। ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा न बनाना कांग्रेस की अदरूनी लड़ाई को दिखाता है। इसे मुख्यमंत्री रहते हुए पिछले विधानसभा चुनाव में रावत को दो सीटों पर मिली हार और पंजाब में कांग्रेस की बगावत से भी जोड़कर देखा जा रहा है। उत्तराखंड में सरकार चला रही बीजेपी ने पंजाब कांग्रेस में हुई बगावत के लिए हरीश रावत को जिम्मेदार ठहराया था। क्योंकि उस समय हरीश रावत ही पंजाब के प्रभारी थे।   

बीजेपी हो सकती है हमलावर 

बता दें कि कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने रविवार को कहा था कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बिना चेहरे के चुनाव लडेगी। विधानसभा चुनाव में जीत होने के बाद ही विचार विमर्श करके मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा। देवेंद्र ने कहा था कि बीजेपी के पास एक ही चेहरा है, लेकिन हमारे पास 10 चेहरे हैं। लेकिन उन्होंने किसी चेहरे का नाम नहीं बताया, यह इन दिनों कांग्रेस में चली रही लड़ाई का एक नमूना भर है। 

हरीश रावत का अतीत उन पर पड़ रहा भारी

दरअसल, हरीश रावत का अतीत ही उन पर भारी पड़ रहा है। रावत ने पिछला विधानसभा चुनाव दो सीटों लड़ा था। उन्हें दोनों सीटों पर हार सामना करना पड़ा था। आपको बता दें कि हरीश रावत उस समय यह चुनाव हारे थे जब वह मुख्यमंत्री थे। इससे पहले वो साल 2019 का लोकसभा चुनाव भी हार गए थे। इन सभी को लेकर अब रावत को पार्टी के अंदर की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अब उनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगा है। 

बीजेपी आगे बना सकती है राजनीतिक मुद्दा!

बता दें कि हाल ही में पंजाब कांग्रेस में हुए घमासान को लेकर बीजेपी ने रावत को ही जिम्मेदार ठहराया था। क्योंकि उस समय पंजाब कांग्रेस के प्रभारी क्योंकि उस समय पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ही थे. बीजेपी ने आरोप लगाया था कि जो व्यक्ति पंजाब नहीं संभाल पाया, वो उत्तराखंड क्या संभालेगा? वहीं रावत की इस बात के लिए भी आलोचना होती है कि पहाड़ी होते हुए भी वो मैदान या तराई से चुनाव लड़ते हैं। परिसीमन के बाद 2009 में उनकी अल्मोड़ा सीट आरक्षित हो गई थी। इसके बाद रावत ने लोकसभा चुनाव के लिए हरिद्वार का रुख किया था। हालांकि 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पिथौरागढ़ की धारचुला सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन 2017 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने तराई को ही चुना। उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट से लड़ा था, लेकिन हार गए थे, इतनी हार भी रावत के खिलाफ है।

सीएम पद की दावेदारी हुई तेज

बता दें कि कभी उत्तराखंड के कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे यशपाल आर्य ने अपने विधायक बेटे के साथ हाल ही में कांग्रेस में वापसी की है। वो 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने बीजेपी में शामिल हो गए थे। कांग्रेस ने बीजेपी गए कांग्रेस ने बीजेपी गए अन्य नेताओं के लिए भी अपने दरवाजे खोल रखे हैं। इससे आने वाले समय में पार्टी में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी तेज हो सकती है। इससे बचने के लिए भी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा न घोषित करने की बात कही है। बीजेपी ने जिस तरह से दो राज्यों में पहली बार विधायक बने लोगों को मुख्यमंत्री बनाया है, इसने महत्वाकांक्षी नेताओं की संख्या बढ़ा दी है।   


 

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