सीएम शिवराज के बयान पर कानून विदों ने कहा- केंद्र का कानून नहीं बदल सकते शिवराज

सीएम शिवराज के बयान पर कानून विदों ने कहा- केंद्र का कानून नहीं बदल सकते शिवराज

Anita Peddulwar
Update: 2018-09-22 13:45 GMT
सीएम शिवराज के बयान पर कानून विदों ने कहा- केंद्र का कानून नहीं बदल सकते शिवराज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दलित उत्पीड़न कानून यानि एससी-एसटी एक्ट को लेकर मचे घमासान के बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के बयान से केंद्र के इस कानून पर सवाल खड़े हो गए हैं। कानून के जानकार शिवराज के बयान को सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए कि गई बयानबाजी मानते हैं। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में सवर्णों की नाराजगी को देखते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट मामले में बगैर जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी। जबकि केंद्र के कानून के मुताबिक गिरफ्तारी के लिए जांच की जरूरत नहीं होगी।

जांच के मायने भी बताए सीएम: अणे
महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता व जाने-माने कानूनविद् श्रीहरि अणे के मुताबिक आमतौर पर पुलिस हर मामले को दर्ज करने से पहले जांच करती है। हालांकि जांच का स्तर व स्वरुप अलग होता है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी कानून के तहत मामला दर्ज करने के लिए जिस तरह की जांच को तय किया था वह काफी जटिल व उसकी गुणवत्ता काफी ऊंची थी। केंद्र सरकार ने अपने विधेयक के जरिए एक तरह से जांच के प्रभाव को कम करने का काम किया है। इसलिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जब जांच के बाद मामला दर्ज करने की बात कही है तो उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके लिए जांच शब्द के मायने क्या है? यह स्पष्ट होने के बाद किसी को मुख्यमंत्री के बयान के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए और उनके अधिकार के बारे में विचार किया जाना चाहिए। कानून हर किसी की निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है। इसलिए जब तक जांच का संदर्भ व अर्थ साफ नहीं हो जाता, तब तक मुख्यमंत्री के बयान को केंद्र के कानून के विपरीत कहना उचित नहीं है। 

राजीव गांधी वाली गलती कर चुके हैं मोदी
पूर्व एडिशनल सालिसिटर जनरल राजेंद्र रघुवंशी का मानना है कि केंद्र का कानून मध्य प्रदेश पर भी लागू होगा। वैसे किसी को जांच के बिना सीधे गिरफ्तार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। एससी-एसटी कानून में संसोधन करके केंद्र सरकार ने वहीं गलती दोहराई है जो राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में की थी। 

तो मध्यप्रदेश सरकार को करना होगा संसोधन
बांबे हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राम आप्टे के अनुसार यदि कोई राज्य केंद्र सरकार के कानून पर असहमति व्यक्त करता है तो इसके लिए उसे उस कानून में संसोधन करना पड़ेगा और अपने संसोधन पर राष्ट्रपति से मंजूरी लेनी पड़ेगी। यदि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री एससी-एसटी कानून के तहत पहले जांच फिर मामला दर्ज करने की बात चाहते है तो इसके लिए संशोधन करना पड़ेगा। 

शिवराज सरकार के पास है संशोधन का विकल्प
अधिवक्ता उदय वारुंजेकर के अनुसार यदि राज्य सरकार को केंद्र का कोई कानून अनुकूल नहीं लगता है तो इसके लिए वह संसोधन का प्रस्ताव तैयार कर सकती है। काूनन में संसोधन के बाद मुख्यमंत्री जांच के बाद मामला दर्ज होने का निर्देश दे सकते है। मुख्यमंत्री के बयान के बाद क्या अधिसूचना जारी हुई है इस पर गौर किया जाना जरुरी है। सिर्फ बयान के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं है। 

सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए यह जुमला 
महाराष्ट्र की पूर्व पोस्ट मास्टर जनरल  व जानी-मानी अधिवक्ता अाभा सिंह का मानना है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सिर्फ राजनीतिक व चुनावी लाभ के लिए जांच का मुद्दा उठाया है ताकि   जाति निहाय लोगों के मत हासिल किए जा सके। केंद्र सरकार का कानून राज्य सरकारों पर लागू होगा। यदि वे केंद्र के कानून के खिलाफ कुछ कह रहे हैं तो इससे काफी गंभीर स्थिति पैदा हो जाएगी जिससे केंद्र व राज्यों के बीत झगड़े शुरू हो जाएंगे। कानून में संसोधन के बाद जांच की बात कहना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

Similar News