AIR INDIA घाटे से उबरने के लिए बेचेगी कबाड़

air india looks to vacate unused space at airports, save on rentals
AIR INDIA घाटे से उबरने के लिए बेचेगी कबाड़
AIR INDIA घाटे से उबरने के लिए बेचेगी कबाड़

डिजिटल डेस्क, नई दिल्‍ली। 52000 करोड़ रुपए के घाटे में चल रही एयर इंडिया ने अपना भारी-भरकम घाटा कम करने के लिए हवाई अड्डों पर इस्‍तेमाल नहीं होने वाला हैंगर स्‍पेस छोड़ने का फैसला किया है। हैंगर में इकट्ठा कबाड़ को भी बेच दिया जाएगा। कंपनी के मुख्य प्रबंध निदेशक (सीएमडी) राजीव बंसल ने बताया हैंगर स्‍पेस छोड़ने से कंपनी पर किराए का बोझ कम होगा और कबाड़ बेचने से कुछ अतिरिक्त पैसा जुटाया जा सकेगा।

एअर इंडिया के विनिवेश के प्रयास सफल नहीं होने के बाद अब कंपनी प्रबंधन ने लागत में कमी लाने और यात्रा सुविधाओं में विस्तार की कोशिशें तेज कर दी हैं। कंपनी प्रबंधन का मानना है कि फ्लाइट में सुविधाएं बढ़ाने से यात्री आकर्षित होंगे। जिससे कंपनी का वित्तीय स्वास्थ्य सुधरेगा। 

इन एयरपोर्टों पर है एक्स्ट्रा स्पेस, गैरजरूरी सामान 
हवाई अड्डों पर हैंगरों में बिना इस्तेमाल किया हुआ बहुत सारा सामान पड़ा है। कंपनी को इसकी कोई जरूरत नहीं है। अब तक इसे बिना वजह ढ़ोया जा रहा था। इस सामान को बेच कर कुछ पैसे जुटाए जाएंगे। साथ ही अतिरिक्त स्थान छोड़ने से कंपनी के ऊपर से किराए का भार घटेगा। दिल्‍ली और मुम्‍बई हवाई अड्डों पर बहुत सारी जगह फालतू पड़ी है। दिल्‍ली में एक विमान हैंगर में खड़ा था, जिसे नीलाम कर दिया गया है। इसी तरह मुंबई एयरपोर्ट पर काफी स्‍क्रैप पड़ा हुआ है। जिसे बेच कर हैंगर स्‍पेस खाली‍ किया जाएगा।   

क्‍या है हैंगर स्‍पेस
हवाई अड्डे पर हैंगर स्‍पेस उस स्थान को कहा जाता है, जहां पर मेंटीनेंस के लिए हवाई जहाजों को खड़ा किया जाता है। एअर इंडिया के पास देश के दस हवाई अड्डों पर हैंगर स्‍पेस मौजूद है। एअर इंडिया के पास इस समय 142 हवाई जहाज हैं, जो 42 विदेशी और 70 घरेलू मार्गों पर उड़ान भरते हैं। एयर इंडिया के अधिकांश मार्ग घाटे में चल रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की इस विमानन कंपनी को काफी समय से घाटे से उबारने की कोशिशे की जा रही हैं, लेकिन इसका घाटा हर साल बढ़ता ही जा रहा है।  

कैसे रसातल में गई कंपनी 
सार्वजनिक क्षेत्र की इस विमानन कंपनी की असफलता कंपनी की प्रबंधकीय अनियमितताओं में है। मामला चाहे 70000 करोड़ रुपए में 111 विमान खरीदने के सौदे का रहा हो, लीज पर विमान देने का रहा हो या फिर लाभदायक वायुमार्गों को कौड़ियों के भाव निजी विमानन कंपनियों को सौंप देने के आत्मघाती निर्णय का रहा हो, एयर इंडिया को रसातल में पहुंचाने वाले ये सभी निर्णय यूपीए शासनकाल में लिए गए हैं। घाटे से उबारने के लिए एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के एकीकरण की योजना भी एक ऐसी ही अतियथार्थवादी योजना थी, जिसने देश के खजाने पर भारी बोझ डाल़ा।

मार्केट शेयर केवल चौदह फीसदी
सार्वजनिक क्षेत्र की इस विमानन कंपनी पर हजारों करोड़ रुपए की देनदारियां बाकी हैं, जबकि इसका मार्केट शेयर घट कर केवल 14 फीसदी ही रह गया है। देशी और विदेशी विमानन कंपनियों की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच सार्वजनिक क्षेत्र की इस विमान कंपनी का संचालन जारी रखना किसी तरह लाभ का सौदा नहीं कहा जा सकता। विनिवेश की कोशिशें भी अब तक सफल नहीं हो सकी हैं, क्योंकि भारी घाटे में चल रही कंपनी की वित्तीय जवाबदेहियों को कौन लेना चाहेगा।  

उतना ही बोझ जितना विजय माल्या लेकर भागा
कभी भारतीय विमानन उद्योग की सिरमौर रही यह कंपनी इस समय देश के खजाने पर हर साल उतना ही बोझ डाल रही है, जितना लेकर शराब कारोबारी विजय माल्या देश से चंपत हो गए हैं। एयर इंडिया को अकेले कर्मचारियों के वेतन पर ही हर साल 3000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा वीवीआईपी मेहमानों की यात्राएं और दिन प्रति दिन के आपरेशनल खर्चे कंपनी पर भारी आर्थिक बोझ डाल रहे हैं। 

Created On :   24 Sep 2017 2:44 PM GMT

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