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RNTU National Workshop: रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ शुभारंभ

- चरित्र निर्माण से ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव: डॉ. अतुल कोठारी
- पंचकोशीय शिक्षा से समग्र व्यक्तित्व विकास संभव: संतोष चौबे
भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आज भव्य शुभारंभ हुआ। कार्यशाला का केंद्रीय विषय “चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास” है, जिसका उद्देश्य पंचकोशीय शिक्षा पद्धति के माध्यम से विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं समाज में मूल्यों की पुनर्स्थापना और व्यक्तित्व के समग्र विकास पर मंथन करना है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. अतुल कोठारी, राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे जी ने की। इस अवसर पर डॉ मनोहर भंडारी जी समन्वयक चिकित्सा प्रकोष्ठ डॉ दिनेश देवेश जी मालवा प्रांत संयोजक चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास, आरएनटीयू के कुलगुरु प्रो. रवि प्रकाश दुबे, एजीएसयू के कुलगुरु डॉ. विजय सिंह, सीवी रमन विश्वविद्यालय खंडवा के कुलगुरु डॉ. अरुण जोशी, आरएनटीयू की कुलसचिव डॉ. संगीता जौहरी, कार्यक्रम समन्वयक व उपकुलसचिव डॉ. पूजा चतुर्वेदी विशेष रूप से उपस्थित थीं।
इस अवसर पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. अतुल कोठारी ने कहा कि आज जब संपूर्ण विश्व तकनीकी उन्नति की ओर अग्रसर है, ऐसे समय में चरित्र निर्माण की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि चरित्र निर्माण किसी भी व्यक्ति के जीवन की बुनियाद होता है। यह वह आधार है जिस पर एक सशक्त समाज और मजबूत राष्ट्र की नींव रखी जाती है। यदि विद्यार्थी नैतिक रूप से सशक्त होंगे तो वे जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक भूमिका निभा सकेंगे। आज शिक्षा केवल जानकारी का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कारों का संवाहक भी बननी चाहिए। चरित्रवान नागरिक ही देश को नेतृत्व, नैतिकता और सेवा के मार्ग पर अग्रसर कर सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने पंचकोशीय विकास को शिक्षा में समाहित करके इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। विश्वविद्यालयों का कर्तव्य है कि वे छात्रों को ज्ञान के साथ जीवन-मूल्यों की शिक्षा भी दें। कार्यक्रम में उन्होंने ज्ञान मुद्रा में ओंकार का उच्चारण कर प्रतिभागियों को उसका अनुभव कराया और बताया कि ओंकार केवल आध्यात्मिक ध्वनि नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक अभ्यास है, जो मन की एकाग्रता और मानसिक शांति के लिए अत्यंत उपयोगी है।
उन्होंने पंचकोशीय शिक्षा पद्धति को वर्तमान पीढ़ी के लिए संतुलित, सशक्त और नैतिक दृष्टि से आवश्यक बताया। डॉ. कोठारी ने स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि “उन्होंने कहा था कि यदि अगला जन्म मिला तो ऐसे विश्वविद्यालय में पढ़ना चाहेंगे जहां एकाग्रता सिखाई जाती हो।” उन्होंने रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलंपियाड की भी प्रशंसा की और कहा कि यह हिंदी भाषा एवं भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के वैश्विक प्रचार-प्रसार की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता आरएनटीयू के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की सीमाओं की ओर संकेत करते हुए कहा: "केवल तकनीकी ज्ञान पर्याप्त नहीं है। जब तक युवा आत्मबोध, सहानुभूति, नेतृत्व क्षमता और संस्कारों से युक्त नहीं होंगे, तब तक समाज में सच्चे अर्थों में समरसता और प्रगति संभव नहीं है। पंचकोशीय शिक्षा मॉडल इस दिशा में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हो सकता है।" श्री चौबे ने इस बात पर विशेष बल दिया कि शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने का माध्यम नहीं, बल्कि मनुष्य के आत्मबोध को जागृत करने की प्रक्रिया होनी चाहिए। उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि कई बार उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षित होकर भी युवा आपराधिक गतिविधियों की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि चरित्र निर्माण एवं आंतरिक विकास की शिक्षा में कहीं न कहीं कमी रह गई है।
उन्होंने रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय का हिंदी भाषा पर केंद्रित कार्य आज वैश्विक स्तर तक पहुँचा है। "विश्वरंग" और "अंतर्राष्ट्रीय हिंदी केंद्र" के माध्यम से 65 देशों में भारतीय भाषाओं और संस्कृति का प्रसार किया जा रहा है।
प्रथम दिवस के प्रथम सत्र में डॉ. मनोहर भंडारी, समन्वयक, चिकित्सा प्रकोष्ठ ने अन्नमय कोश पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अन्नमय कोश व्यक्ति के शारीरिक शरीर का आधार है। इसका स्वस्थ रहना सम्पूर्ण स्वास्थ्य और ऊर्जा के लिए अनिवार्य है। उन्होंने यह भी बताया कि शारीरिक स्वास्थ्य के बिना मानसिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं हो सकता। इसलिए सही आहार, नियमित व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। उनका मानना है कि अन्नमय कोश की देखभाल से ही जीवन में संतुलन और सशक्तता बनी रहती है। वहीं द्वितीय सत्र में डॉ. दिनेश दवे, मालवा प्रांत संयोजक, ने मनोमय कोश और चरित्र निर्माण पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि मनोमय कोश व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक पक्ष को समझने का महत्वपूर्ण माध्यम है। इसका संतुलन व्यक्ति के व्यवहार और सोच को प्रभावित करता है। डॉ. दवे ने कहा कि चरित्र निर्माण व्यक्ति के समग्र विकास की नींव है। सही मानसिक और भावनात्मक स्थिति से ही एक सशक्त और नैतिक व्यक्तित्व का विकास संभव होता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि चरित्र निर्माण समाज और राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है।
कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो. अभिताभ सक्सेना ने अत्यंत गरिमामयी ढंग से किया। उन्होंने कहा: "यह कार्यशाला केवल प्रशिक्षण का माध्यम नहीं है, यह युवाओं को संस्कारित करने की प्रयोगशाला है, जहाँ शिक्षा के साथ जीवनमूल्य भी हस्तांतरित किए जाते हैं। प्रथम दिवस की समाप्ति पर टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के मुक्त धारा सभागार में जल के गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी गई।
विशेष आकर्षण: पुस्तक विमोचन एवं पोस्टर रिलीज
इस अवसर पर तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन भी किया गया, जो भारतीय भाषा, संस्कृति एवं परंपरा के संवाहक हैं:
1. "विश्व में हिंदी"– लेखक: जवाहर कर्णावत
यह पुस्तक हिंदी भाषा की वैश्विक उपस्थिति, साहित्यिक यात्रा और सांस्कृतिक प्रभावों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
2. "परंपरा और आधुनिकता"*– लेखक: संतोष चौबे
पुस्तक में भारतीय परंपराओं को आधुनिक संदर्भों में समझने और उन्हें पुनर्स्थापित करने के लिए विमर्श प्रस्तुत किया गया है।
3. "सोलह संस्कार और रीतियाँ" – लेखिका: विनीता चौबे
यह पुस्तक भारतीय संस्कृति के मूल स्तंभ – सोलह संस्कार – पर आधारित है, जो जीवन के विभिन्न चरणों में नैतिकता, शुद्धता और उद्देश्यबोध को स्पष्ट करती है।
इसके साथ ही कार्यशाला में "अंतरराष्ट्रीय हिंदी ओलंपियाड" के पोस्टर का विमोचन भी किया गया।
Created On :   10 July 2025 7:49 PM IST