Dhamtari News: लंबे आंदोलन के बाद लोहिया के विचारों की हुई जीत, आदिवासियों को मिला जमीन पर खेती करने का मालिकाना हक

लंबे आंदोलन के बाद लोहिया के विचारों की हुई जीत, आदिवासियों को मिला जमीन पर खेती करने का मालिकाना हक
  • डा. राममनोहर लोहिया की प्रतिमा का अनावरण
  • आदिवासी समुदाय ने डॉ. राममनोहर लोहिया की प्रतिमा लगाकर आभार जताया
  • 18 गांव के आदिवासियों को उनकी जमीन में खेती करने का मालिकाना हक मिला

Dhamtari News. आदिवासी समुदाय को लंबे समय बाद छत मिली है। जिसे लेकर आदिवासी समुदाय ने डॉ. राममनोहर लोहिया की प्रतिमा लगाकर आभार जताया। इसकी डॉ. राममनोहर लोहिया ने पहल की थी। यह आदिवासियों के संघर्ष का नतीजा है कि 18 गांव के आदिवासियों को उनके जमीन में खेती करने का मालिकाना हक मिला है। डॉक्टर लोहिया ने आदिवासियों की भूमि के अधिकारों के लिए 1952 में इसी स्थान पर लाल झंडा फहरा कर आंदोलन की शुरुआत की थी। लोहिया के बाद 1977 से नगरी सिहावा के आंदोलन की बागडोर रघु ठाकुर ने संभाली। 18 में कुल 13 गांव के आदिवासियों को 1990 के दशक में भूमि का अधिकार मिल गया था, लेकिन पांच गांवों का प्रकरण उलझ गया था, जिन्हें अब जाकर सफलता मिली है।

जमीन में खेती करने का मालिकाना हक मिला

18 गांव के आदिवासियों को उनकी जमीन में खेती करने का मालिकाना हक मिला है। इस मौके पर सोशलिस्ट चिंतक और जननेता रघु ठाकुर ने कहा कि देश के आदिवासियों को यदि आजीविका के लिए जमीन के पट्टे दे दिए जाएं, तो जंगल भी सुरक्षित होंगे और वन्यजीवों की रक्षा भी होगी। देशभर की बात करें, तो इक्कीस लाख और मध्यप्रदेश में लगभग दो लाख भूमिहीन आदिवासी हैं। ठाकुर ने कहा कि नक्सली हिंसा में दोनों तरफ से आदिवासी ही मर रहे हैं। सरकार को भी समझना होगा कि बंदूक की गोली से हिंसा तो मर सकती है, लेकिन विचार नहीं। उन्होंने कहा कि उमरादेहान तो अहिंसा का तीर्थ है।


सत्तर साल पहले डॉ लोहिया ने यहीं से आदिवासियों को भूमि के अधिकार का आन्दोलन शुरू किया था। वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं देने की मांग यहीं से उठी थी। इस अंचल की चार पीढ़ियों ने अपने अधिकारों के लिए जेल यात्रा कर बता दिया कि दुनिया बदलने का सबसे बड़ा माध्यम जेल है, बंदूक या हिंसा नहीं। नगरी सिहावा अंचल हिंसाग्रस्त वनांचल में अहिंसा के टापू की तरह है। उन्होंने कहा कि नगरी सिहावा अंचल के उमरादेहान जैसे गांवों से देशभर में संदेश जाना चाहिए। अब आदिवासियों के मुद्दों की लड़ाई दिल्ली में लड़ी जाएगी।


डॉ लोहिया ने यहां से जो आंदोलन शुरू किया,उसमें आदिवासी नेता सुखराम नागे की पुलिस हिरासत में मौत हुई थी। आज उनकी याद में एक शैक्षणिक संस्थान है। नगरी सिहावा के आदिवासियों की चार पीढ़ियों ने अनाम रहकर खुद को आंदोलन में झोंका। जेल यात्राओं के दौरान कभी किसी ने माफी नहीं मांगी।

इस मौके पर राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि आदिवासियों की समस्याओं को संसद में निरंतर उठाएंगे। संजय सिंह ने कहा कि समाजवादी आन्दोलन और समाजवाद दोनों ही जंगलों में जीवित हैं। आदिवासियों की आवाज को निरंतर संसद में उठाया जाएगा। जब तक गैर-बराबरी है, तब तक समाजवाद रहेगा। रघु ठाकुर जैसे सोशलिस्ट नायक ने समाजवाद को जमीन पर उतारने के लिए लगातार आंदोलन किए और जेल - लाठी - डंडा- मुकदमे की परवाह तक नहीं की। संजय सिंह ने कहा कि मुझ जैसे अनेक लोगों को राजनीति और समाजवाद का पाठ भी उन्होंने ही सिखाया है।

डॉ. राममनोहर लोहिया की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर संसद सदस्य संजय सिंह समारोह के मुख्य अतिथि थे और पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के बेटे व पूर्व विधायक अरुण वोरा, पत्रकार गोविंद लालावोरा के बेटे अमृत संदेश के प्रधान संपादक राजीव वोरा भी विशेष रूप से मौजूद थे।


रघु ठाकुर ने कहा कि अंचल के आदिवासियों ने एक - एक किलो धान इकठ्ठा कर यह प्रतिमा तैयार कराई है। उन्होंने कहा कि नगरी सिहावा के ऐतिहासिक आंदोलन को स्कूल कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी को अहिंसक आंदोलन की प्रेरणा मिल सके। उन्होंने कहा भारत की राजनीति और समाजवादी आन्दोलन को 1990 के बाद आए एनजीओ ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। जनतंत्र, अहिंसा, सविनय अवज्ञा और आन्दोलन से देश आगे बढ़ रहा है। हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए, जो अमीरी के टापू खड़े करे। आदिवासी समाज में कभी बलात्कार की वारतादें सुनने को नहीं मिलेंगी। इससे बड़ा सभ्यता का पैमाना क्या हो सकता है।






Created On :   25 May 2025 8:15 PM IST

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