टेंडर मैनेजमेंट रोका तो हर साल बचेंगे 16 करोड़!

16 million will save every year after stopping tender management
टेंडर मैनेजमेंट रोका तो हर साल बचेंगे 16 करोड़!
टेंडर मैनेजमेंट रोका तो हर साल बचेंगे 16 करोड़!

डिजिटल डेस्क सिंगरौली (वैढऩ)। निगमायुक्त शिवेन्द्र सिंह के द्वारा उठाये गये कदमों का फायदा अब दिखने लगा है। निगम द्वारा हर साल कम से कम 25 से 30 करोड़ के बीच में निर्माण कार्य, विद्युतीकरण कार्य और स्टोर के सामानों की खरीदी की जाती है। पता नहीं कब से टेंडर मैनेजमेंट चला आ रहा था। निगमायुक्त ने पहले तो इस व्यवस्था को समझा, जब उन्हें इसके नुकसान का पता चला तो उन्होंने इस पर रोक लगा दी। जिसका फायदा यह हुआ कि ठेकेदारों के बीच अब खुली प्रतिस्पर्धा होने लगी है। नतीजतन जो 1 लाख रूपये का कार्य पहले 1 लाख 20 या 30 हजार में होता था, वही कार्य अब 80 से 90 हजार के बीच हो जाता है। इससे नगर निगम को करोड़ों रूपये का फायदा हर साल हो रहा है। मान लीजिये कि नगर निगम प्रतिवर्ष 30 करोड़ रूपये के कार्य या सामान की खरीदी टेंडर के माध्यम से करता है। तो पहले यही 30 करोड़ के कार्य करीब 40 करोड़ में होते थे, जबकि अब 30 करोड़ के यह कार्य मात्र 24 करोड़ में हो जा रहे हैं। यानी प्रतिवर्ष नगर निगम के शुद्ध 16 करोड़ की बचत हो रही है। कई बार लोग निगमायुक्त की साफ-सफाई, कार्यालय और शहर को लकदक रखने की मंशा पर सवाल उठाते हैं। हालांकि वह भी जरूरी है और उन पर कितना खर्च होगा 10, 20 या 50 लाख। लेकिन उनके प्रयासों से नगर निगम की बचत कितनी हो रही है, जो ठेकेदारों के बीच बंट जाती थी। हालांकि पिछले सालों में कई निगमायुक्त आये लेकिन किसी ने भी इस पद्धति पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की। जिसका नुकसान नगर निगम को हुआ। जैसे ही निगमायुक्त ने टेंडर मैनेजमेंट पर लगाम लगाई तो तमाम तरह से उन पर दबाव पड़ा, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जानबूझकर वह कोई गलत काम नहीं होने देंगे और न ही करेंगे।
कैसे होता था टेंडर मैनेज?
मान लीजिये किसी टेंडर को चार ठेकेदारों ने भरा, किसी ने 5 फीसदी एबब भरा तो किसी ने 7 फीसदी, किसी ने 10 फीसदी तो किसी ने 14 फीसदी रेट भरा। अब 10 फीसदी एबब वाले ठेकेदार ने टेंडर मैनेज करना शुरू किया तो उससे नीचे रेट वाले दो ठेकेदारों ने लिखकर दे दिया किया उसका टेंडर न खोला जाये। ज्यादा रेट वाला सपोर्ट में आ गया। अब एबब वाली 10 फीसदी राशि इन ठेकेदारों में बंट जाती थी। यानी 10 लाख रूपये का काम है तो 10 एबब यानी 11 लाख रूपये लागत हो गयी। अब ऊपर वाली यही एक लाख रूपये की राशि दो ठेकेदारों में बांट दी जाती थी। यानी बिना काम किये 50-50 हजार कमा लेते थे। जो टेंडर पाता था वह अपना मुनाफा काम से निकालता था।
निगमायुक्त ने क्या उठाये कदम?
निगमायुक्त ने ठेकेदारों के टेंडर मैनेजमेंट के इस वर्षों पुराने तिलस्म को तोडऩे के लिये मात्र दो लाइन का आदेश निकाला था। यह आदेश था कि टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाले सभी ठेकेदारों के टेंडर खोले जायेंगे। जो भी सबसे कम रेट डालेगा, उसे ही काम दिया जायेगा। उन्होंने टेंडर खोलने के लिये एक समिति बना दी, जिससे कोई घालमेल न हो सके। हालांकि इस तरह का घालमेल होता भी नहीं था। लेकिन उसका नतीजा यह हुआ कि ठेकेदारों में प्रतिस्पर्धा होने लगी और रेट एबब की जगह 10 से 20 फीसदी तक बिलो जाने लगे। जो पैसा नगर निगम के खजाने से ठेकेदारों की जेब में जाता था, वह बचने लगा और इस तरह से हर साल नगर निगम को करोड़ों रूपये का फायदा होने लगा।
उदाहरण स्वरूप कुछ कार्य
नाली निर्माण-14 जनवरी 16 को वार्ड-40 स्थित राजेन्द्र पथ में आरसीसी नाली निर्माण लागत 17.10 लाख का 10.10 फीसदी एबब रेट पर वर्कआर्डर किया गया। वहीं 1 मई 17 को वार्ड-25 के भरूहां में आरसीसी नाली निर्माण लागत 17.19 लाख का वर्कआर्डर 26.75 बिलो में किया गया। यानी 2016 में 17.10 लाख की नाली का निर्माण करीब 19 लाख में कराया गया, वहीं 2017 में वैसी ही नाली का निर्माण 13 लाख से भी कम में हो रहा है।
इंटरलॉकिंग-28 अप्रैल 2016 को वार्ड-20 में रामभजन वैश्य के घर से गयादीन के घर तक 8.99 लाख की लागत से 14.99 फीसदी एबब रेट पर इंटरलॉकिंग कार्य का वर्कआर्डर जारी किया गया। वहीं 14 मई 2017 को वार्ड-14 के प्रायमरी स्कूल परिसर में 9.02 लाख की लागत से 21.77 फीसदी बिलो में वर्कआर्डर जारी हुआ। यानी एक साल पहले 14.99 लाख का काम 16.33 लाख में कराया गया, वहीं एक वर्ष बाद 9.02 लाख का काम करीब 7 लाख में हो रहा है।

 

Created On :   15 Dec 2017 1:43 PM IST

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