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273 करोड़ रु. खर्च फिर भी पर्यावरण में नहीं हुआ कोई सुधार: रिपोर्ट ने खुलासा
डिजिटल डेस्क सिंगरौली वैढऩ। डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन यानी डीएमएफ के गठन के साथ ही यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि इस मद में मिलने वाले सैकड़ों करोड़ रूपयों की फाग खेली जाएगी, विकास कुछ नहीं होने वाला, जनता के हाथ कुछ नहीं आने वाला। इस आशंका को सही साबित कर दिया, सीएसई की रिपोर्ट ने। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट ने डीएमफ 2017 की अपनी रिपोर्ट में इस मद में खेली जा रही देशव्यापी फाग को खुलकर रेखांकित किया है। रिपोर्ट में सिंगरौली का मुद्दा प्रमुखता से उठा है क्योंकि इस मद में मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा राशि देने वाला जिला सिंगरौली ही है। वर्ष 16-17 की रिपोर्ट को पेश करते हुए सीएसई ने कहा है कि यहंा 273 करोड़ की राशि का उपयोग आम जनता के हित की बजाए सड़क और भवन बनाने में किया जा रहा है जो बेहद चिंतनीय है। जबकि केन्द्र के स्पष्ट निर्देश थे कि 60 प्रतिशत से ज्यादा राशि स्वास्थ्य, शिक्षा और जलापूर्ति, महिला एवं बालकल्याण मद में खर्च की जाएगी।
नहीं मिल रहा पीने का पानी
सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जनवरी 2010 में केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सिंगरौली को 9 वां मोस्ट क्रिटिकली पॉल्यूटेड एरिया घोषित किया था। जलापूर्ति की यहां सबसे बड़ी समस्या को रेखांकित करते हुए कहा गया था कि एक प्रतिशत ग्रामीणों को भी साफ पीने योग्य पानी की आपूर्ति नही हो पा रही है। 58 फीसदी आबादी के पास अनकवर्ड कुएं हैं तो 31 प्रतिशत आबादी सिर्फ हैंडपंप पर पानी के लिए निर्भर है। सिंगरौली में कई स्थानों पर पानी में प्रदूषण और भारीपन पाया गया जो लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। इस सबकी जानकारी जिला प्रशासन और यहां के पालक मंत्री को है बावजूद इसके इन सबके साथ जनप्रतिनिधियों ने मिलकर पेयजलापूर्ति पर डीएमएफ मद से महज 0.9 प्रतिशत राशि स्वीकृत की। राशि को भी हैंडपंप और टयूब वेल खनन तक सीमित कर दिया गया।
बच्चों के प्रति भी दिखाई निष्ठुरता
डीएमएफ की राशि के उपयोग में बच्चों के हितों को सिरे से नकार दिया गया। चाइल्ड डेवलपमेंट इंडीकेटर्स से साबित हो रहा है कि सिंगरौली में बच्चे न केवल बड़ी संख्या में कुपोषण का शिकार हो रहे हैं बल्कि उनमें प्रदूषण और अन्य कारणों से गंभीर बीमारियों के लक्षण दिख रहे हैं। लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने बच्चों के कल्याण के प्रति उदारता दिखाने के बजाए इस मद में ऊंट के मुंह में जीरा जैसी राशि स्वीकृत कर रस्म अदायगी की।
जन स्वास्थ्य की नहीं चिंता
अधिकारियों और नेताओं ने सिंगरौली के स्वास्थ्य के प्रति भी कोई सहृदय रवैया नहीं दिखाया। यह इस बात से साबित हो जाता है कि डीएमएफ की राशि में से 44.5 करोड़ रूपए का बजट तो दिया गया लेकिन वह भी ट्रामा और हेल्थ सेंटर बनाने, स्वास्थ्य उपकरण बांटने और वेटिंग रूम को सजाने के लिए। जबकि पूरा सिंगरौली जिला स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। सबसे ज्यादा विस्फोटक स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों की है। आरएचएस की 14-15 की रिपोर्ट के अनुसार केवल 15 पीएचसी ही है। एक पीएचसी पर लगभग 64000 जनता का भार है जबकि आईपीएचएस के मानक कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में एक पीएचसी पर तीस हजार से ज्यादा लोगों का दायित्व नहीं होना चाहिए और आदिवासी बाहुल्य इलाके में तो 20 हजार की आबादी पर एक पीएचसी होनी ही चाहिए।
Created On :   28 Oct 2017 1:23 PM IST