आयुर्वेद औषधि से कोरोना के इलाज का दावा, कालमेघ है नाम , भोपाल मेें हो रही तैयार

Ayurveda medicine claims treatment of corona, name is Kalmegh, getting ready in Bhopal
आयुर्वेद औषधि से कोरोना के इलाज का दावा, कालमेघ है नाम , भोपाल मेें हो रही तैयार
आयुर्वेद औषधि से कोरोना के इलाज का दावा, कालमेघ है नाम , भोपाल मेें हो रही तैयार

डिजिटल डेस्क बालाघाट । इस समय पूरा विश्व कोरोना से जंग लड़ रहा है। इसकी वैक्सीन विकसित करने के लिए वैज्ञानिक तरह-तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इस बीच आयुर्वेद सैक्टर से जुड़े लोगों ने दावा किया है कि उन्हें कोरोना वायरस से फाइट करने वाला अनूठा पौधा मिल गया है। यह बालाघाट के जंगलों में बड़ी मात्रा में मौजूद है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान, चरक व सुश्रुत संहिता में इसे कालमेघ के नाम से जाना जाता है। प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के जानकारों की मानें तो कालमेघ यानी चिरायता का पौधा कोरोना के लिए काल से कम नहीं है। इस पौधे से बनी दवा के उपयोग से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि बॉडी खुद ही कोरोना जैसे वायरस व अन्य संक्रमण को ध्वस्त करने में सक्षम हो जाती है। कालमेघ की खासियत को देखते हुए भोपाल में इससे बड़ी मात्रा में औषधियों और काढ़े आदि का निर्माण भी प्रारंभ हो गया है। कोरोना के संक्रमण के चलते आयुष विभाग के माध्यम से इसका काढ़ा पूरे प्रदेश में वितरित भी किया जा रहा है। 
क्या है कालमेघ 
आयुर्वेदाचार्य के डॉ. आरके व्यास अनुसार कालमेघ एक छोटा सा पौधा होता है। यह औषधीय गुणों से लबरेज है। इसका उपयोग मुख्य रूप से मधुमेह और डेंगू बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। यह बूटी तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है, जिसे वहां नीलवेंबू काषायम कहते हैं। इसका उपयोग डेंगू और चिकनगुनिया बुखार के इलाज के लिए किया जाता है। यह कोरोना जैसे वायरस से भी लडऩे में सक्षम हैं। कालमेघ में एंटीप्रेट्रिक (बुखार कम करने वाले), जलन-सूजन कम करने वाले, एंटीबैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट, लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाले गुण होते हैं। इसका उपयोग लिवर और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं से पीडि़त बच्चों के इलाज के लिए भी किया जा सकता है। आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी में इसका उपयोग अपच, कब्ज, एनोरेक्सिया, पेट में गैस समेत और भी अन्य कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इस पौधे के सभी हिस्से बेहद कड़वे होते हैं जिसके कारण इस पौधे कड़वाहट का राजा भी कहा जाता है।
इन क्षेत्रों में बहुतायत है यह पौधा 
कालमेघ या कडू चिरायता बालाघाट के जंगलों में बहुतायत मात्रा में मौजूद है। इसके अलावा सिवनी, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद समेत अन्य जिलों में वनों में भी यह खूब पाया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से वनांचलों में ऊगता है। औषधियों के जानकार लोग ग्रामीण और वनांचलों में रहने वाले लोगों के माध्यम से इन पौधों का संग्रहण करता हैं। कालमेघ के पत्तों, तनों व जड़ का पाउडर बनाकर उपयोग में लाया जाता है। 
इस तरह बनाते हैं काढ़ा
आयुर्वेद के जानकार डॉ. अश्वनी शुक्ला ने बताया कि कालमेघ काढ़ा बनाने के लिए कालमेघ के पूरे पौधे को (करीब 50 ग्राम) एक लीटर पानी में डालकर उबालना चाहिए। जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर ठंडा करके कांच के बर्तन में भर लें। काढ़ा तैयार है। इसमें कई बीमारियों को खत्म करने के गुण हैं, लेकिन इसे किसी डॉक्टर या वैद्य की सलाह पर तासीर के अनुरूप लेना चाहिए। आदिवासियों को मिलेगा रोजगार 
जानकारों का कहना है कि यदि सरकार बैगा व अन्य आदिवासियों के माध्यम से कालमेघ या इस तरह की अन्य औषधियों का संग्रह कराया जाए। इसे उपयुक्त बाजार उपलब्ध कराया जाए तो यह न केवल उनके रोजगार का बेहतर जरिया बन सकता है, बल्कि उन्हें स्वावलम्बी भी बना सकता है। 
भोपाल में तैयार हो रही दवा
मध्यप्रदेश राज्य लघु उपज संघ भोपाल द्वारा बरखेड़ी पठार क्षेत्र में कालमेघ की दवा एवं काढ़ा तैयार किया जा रहा है। इसे वन विभाग द्वारा बनाएं संजीवनी सेंटरों में भेजा जाता है। बालाघाट में वनसंरक्षक रहे सेवानिवृत्त आईएफएस रामगोपाल सोनी का मानना है कि कालमेघ से बनी आयुर्वेदिक दवा इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाती है। कोरोना महामारी के लिए भी यह दवा फायदेमंद है। अगर संक्रमण की संभावना हैं तो बचाव के लिए सुबह आधा कप एक बार कालमेघ का काढ़ा प्रतिदिन 15 दिन तक पीना चाहिए। कोरोना वायरस संक्रमण होने पर काल मेघ का काढ़ा 20 एमएल या आधा कप दिन में तीन बार लगातार सात दिन तक पिया जाए तो असरकारी लाभ होता है। 
इनका कहना है
 संजीवनी में सभी आयुर्वेदिक दवाएं मप्र लघु उपज संघ बरखेड़ी पठार में तैयार की जा रही हैं। कालमेघ से भी यहां आयुर्वेदिक दवाएं बनाई जा रही हैं, बुखार समेत कई रोगों के अलावा कोरोना जैसे वायरस के असर को कम करने में भी लाभदायक हैं।
शंकुनकला टेकाम, संजीवनी प्रभारी
 

Created On :   8 Jun 2020 1:40 PM GMT

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