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रेलवे के कोलयार्ड में लगी आग से टनों कोयला खाक
डिजिटल डेस्क सिंगरौली (मोरवा) । सिंगरौली रेलवे स्टेशन के कोल साइडिंग 3 के कोल स्टॉक में कई दिनों से आग लगी हुई है। 24 घंटे भारी प्रदूषण हो रहा है। आग को बुझाने के इंतजाम नहीं किए गये हैं बल्कि वहां पर दर्जनों श्रमिकों को लगाकर जला अधजला कोयला आनन-फानन रैक में लोड करने की कोशिश की जा रही है। एक तरफ श्रमिकों को जलते हुए कोयले के बीच खतनाक ढंग से काम कराया जा रहा है तो दूसरी तरफ भारी प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। कोलडस्ट के प्रदूषण से कांटा मोड़ शुक्ला मोड़ से लेकर मोरवा तक सांस लेना दुश्वार है तो उसे जहरीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। जिस पर न तो जिला प्रशासन की नजर है और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की। रेलवे का सुरक्षा विभाग भी रेल साइडिंग में चल रही मनमानी को लेकर आंखें बंद किये हुए है। रेलवे के द्वारा कोल साइडिंग नम्बर-3 को निजी कोल ट्रांसपोर्टर्स को दिया गया है। इस कोल साइडिंग से रैक बुक कराने के बाद अपने अपने ग्राहकों को कोयला भेजने के लिए अफरा तफरी की जाती है। स्टॉक में पहले से जमा कोयले को रैक पर लादने के लिए अंधाधुंध पेलोडर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसकी लोङ्क्षडग से उडऩे वाली कोल डस्ट सीधे मोरवा शहर की ओर रूख करती है और लाखों की आबादी को प्रभावित कर रहा है। बीते दिनों इस प्रकार की बेपरवाही से हो रही कोल ट्रांसपोर्टिंग और लोडिंग पर जिला प्रशासन व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा कार्रवाई की गई थी। जिसके उपरांत कार्रवाई कर प्रदूषण विभाग से परमिशन लेने के लिए भोपाल कार्यालय तलब किया गया था। लेकिन उसके बाद काफी दिनों से बंद कोल साइडिंग में फिर से भारी प्रदूषण किया जा रहा है। इस कोलयार्ड से मोरवा का शुक्ला मोड़ ही नहीं मोरवा वैढऩ मुख्य मार्ग प्रभावित हो रहा है। कोलयार्ड की लापरवाही का खमियाजा रेलवे को भी भुगतना पड़ सकता है। जिस प्रकार जलते हुए कोयले के ढेर से कोयले का लदान किया जा रहा है। वह लदी हुई रैक पर भी भड़क सकता है। जिससे रेल की सुरक्षा व संरक्षा भी प्रभावित हो सकती है। समय के रहते यदि कोल साइडिंग में कोयले की आग को बुझाने के इंतजाम नहीं हुए तो यह बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है।
पानी के छिड़काव का कोई इंतजाम नहीं
सबसे खतरनाक यह है कि सड़क पर उडऩे वाली धूल हो या फिर कोलयार्ड मेें कोल क्रशिंग- लोडिंग दोनों की प्रक्रियाओं के दौरान पानी के छिड़काव के इंतजाम कोल ट्रांसपोटर्स के द्वारा किए जाने हैं। बल्कि एनसीएल के द्वारा इन कोयला परिवहनकर्ताओं को निर्धारित रूट पर एक वॉटर टैंकर चलाकर सड़क में उड़ती धूल को रोकने की प्रतिबद्धता है। लेकिन जब टनों कोयला हर दिन जलने के बाद कोयले को नही बुझाया जा रहा है तो कोल यार्ड में कोलडस्ट को रोकने अथवा सड़क के कोलडस्ट को रोकने के लिए पानी का कितना छिड़काव किया जा रहा होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
रेलवे को अपने भाड़े से काम
रेलवे के कोल यार्ड से हो रहे प्रदूषण को लेकर संबंधित जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी भी अंजान बने हुए हैं। निजी साइडिंग में इंडेंट मिलते ही रैक उपलब्ध करा दी जाती है फिर ट्रांसपोर्टर्स उसकी लोडिंग कै से कर रहे हैं। कोयले के साथ पत्थर जा रहा है या कोयले की राख इससे रेलवे को कोई लेना देना नहीं है। सिर्फ उन्हें एडवांस भाड़े से मतलब है। बीते वर्ष हुए इसी प्रकार के एक मामले में दिल्ली से आयी निरीक्षण टीम ने घटिया कोयला भेजे जाने को लेकर कार्रवाई की थी।
सैकड़ों श्रमिक रहे जूझ
जलते हुए कोयले के स्टॉक यार्ड में सैकड़ों श्रमिक बड़े कोयले को तोडऩें, पेलोडर को सुगमता से कोयला उपलब्ध कराने के लिए सुबह से देर रात तक लगे हुए न तो उन्हें सुरक्षा के लिए किसी प्रकार के उपकरण उपलब्ध कराये गये है और न ही कोई सुरक्षा प्रदान की जा रही है। वे स्वयं अपने गमछे से नाक मुंह बंद कर कोलडस्ट के दमघोटू माहौल में काम करने को मजबूर हैं। संबंधित कोल परिवहनकर्ता अपने निजी स्वार्थ के लिए उनकी सेहत से सीधे तौर पर वहां से उड़कर आबादी क्षेत्र में आने वाले कोयले की धूल से आम जनजीवन को तबाह करने में लगे हुए हैं।
डस्ट रोकने किये जाय इंतजाम
रेलवे को आम लोगों की समस्या और भारी प्रदूषण से बचाव के लिए डस्ट रोकने के इंतजाम करने चाहिए। वायुमंडल में सीधे तौर से घुल रहे कोयले, कोयले का धूल, धुंआ लोगों में तरह तरह की बीमारियां फैला रहा है। सिंगरौली के प्रमुख नगर मोरवा में एक तरफ रेलवे के कोल यार्ड तो दूसरी तरफ से जयंत और दुधिचुआ खदान की ओबी व कोयला उड़कर आने से दिन तो दिन रात के दौरान भी मकान की छतों पर मोटी काली परत जमा हो रही है तो घर के अंदर कोयले की मौजूदगी साफ तौर पर देखी जा सकती है।
Created On :   5 Nov 2020 6:24 PM IST