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मेयर ने 76 लाख की प्रॉपर्टी को खरीदा कौड़ियों के दाम, लोकायुक्त करेगी पूछताछ
डिजिटल डेस्क, सिंगरौली(वैढ़न)। आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त की टीम द्वारा जांच प्रकरण कायम किये जाने के बाद महापौर की अकूत संपत्ति की असलियत सामने आने लगी है। लोकायुक्त के हाथ लगे रिकार्ड बताते हैं कि मेयर ने महज दो साल के अंदर 76 लाख की प्रॉपर्टी को कौड़ियो के दाम में खरीदा है। हैरत की बात तो यह है कि दो साल के दौरान महापौर को सिर्फ 2 लाख 45 हजार का मानदेय और सत्कार भत्ता मिला है। इसके बाद भी मेयर द्वारा पौने एक करोड़ की प्रॉपटी खरीदने की बात किसी के गले नहीं उतर पा रही है। ऐसे सवाल यह उठता है कि मेयर ने शहर की प्राइम लोकेशन की प्रॉपर्टी को सिर्फ दो लाख में कैसे खरीदा है।
जानकारों का कहना है कि प्रॉपर्टी की खरीदी में मेयर द्वारा न सिर्फ पद का दुरूपयोग किया गया है, बल्कि इसके रास्ते अनुपातहीन संपत्ति को सफेद करने की कोशिश की है। पंजीयन विभाग कि गाइड लाइन पर गौर करें तो मेयर ने जिस लोकेशन में प्रॉपर्टी खरीदी है वहां दो लाख में 10 फुट जमीन मिलना नामुमकिन है। सूत्रों का कहना है कि आय से अधिक संपत्ति पर पर्दा डालने के लिये मेयर ने ऑफ द रिकार्ड विक्रेता को मोटी रकम का भुगतान किया है।
स्टाम्प ड्यूटी चुकाई पर लाखों के लेनदेन को छिपाया
महापौर श्रीमती खैरवार ने खुद के नाम पर खरीदी 76 लाख की प्रॉपर्टी में स्टाम्प ड्यूटी तो इसी दर पर चुकाई है, लेकिन विक्रेता को सिर्फ 2 लाख का भुगतान हर किसी के समझ से परे है। रिकार्ड खुद यह बताते हैं कि मेयर ने खुद के नाम पर कलेक्ट्रेट के पीछे सरदार वल्लभ भाई पटेल वार्ड 42 की पॉश कॉलोनी में प्रॉपर्टी को खरीदा है, उसकी आज कीमत करोड़ों में है। प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री पर गौर करें तो मेयर ने पंजीयन से पूर्व ही विक्रेता हरषूराम केशरवानी, रमेश कुमार, अरविंद शाह, धनेश कुमार शाह और जवाहरलाल शाह को दो लाख का भुगतान किया है। पंजीयन कार्यालय में 19 सितंबर 2016 को प्रस्तुत दस्तावेज में मेयर द्वारा 2 लाख की कथित प्रॉपर्टी की कीमत से अधिक पंजीयन शुल्क चुकाया है।
महापौर के पास कहां से आये 9 लाख
आय से अधिक के आरोप में घिरी महापौर कागजों में हेराफेरी के बाद भी अपने ही बिछायें जाल में बुरी तरह से फंस गई हैं। पंजीयन के दस्तावेजों पर गौर करें तो 76 लाख की प्रॉपर्टी को 2 लाख में खरीदने का दावा करने वाली मेयर खुद अपने ही रजिस्ट्री में उलझ गई हैं। मजे की बात तो यह है कि जनवरी 2015 में मेयर को प्रभार ग्रहण करने के बाद 2 साल के अंदर उन्होंने प्रॉपर्टी को खरीदने में पंजीयन शुल्क और स्टाम्प ड्यूटी के एवज में 7 लाख 8 हजार 600 का भुगतान पंजीयन विभाग को किया है। जबकि मेयर के दो साल के कार्यकाल के दौरान नगर निगम से 2 लाख 45 हजार का मानदेय मिला है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि विक्रेता ओं को 2 लाख का नगद और 7 लाख पंजीयन शुल्क के भुगतान के लिये मेयर के पास कहां से पैसा आया। ऐसे में लोकायुक्त की पूछताछ में मेयर के आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसने के तेजी से आसार बन गये हैं। बहरहाल इन बिन्दुओं पर लोकायुक्त की जांच को लेकर आम लोगों की निगाहें टिकी हुई है। चर्चा है कि लोकायुक्त की जांच में मेयर से पूछताछ के बाद ही यह पता चल पायेगा कि 76 लाख की प्रॉपर्टी के खरीद-फरोख्त में मेयर के पास पैसों का स्त्रोत क्या है।
मकान बना नहीं प्लाट में लग गया सरकारी हैंडपंप
लोकायुक्त की जांच से विवादों में घिरी मेयर और उनकी प्रॉपर्टी में भले ही मकान नहीं बन पाया है, लेकिन महापौर के पद के दुरूपयोग की असलियत सामने आ गई है। भास्कर टीम की पड़ताल में यह बात सामने आई है मेयर ने जिस प्रॉपर्टी को खुद के नाम पर खरीदा है उसमें बांउड्री के अलावा कुछ नहीं है फिर उसमें सरकारी हैंडपंप स्थापित कर दिया गया है। मेयर की निजी प्रॉपर्टी में सरकारी हैंडपंप कैसे स्थापित किया गया है, नगर निगम के अफसर जवाब देने से बच रहे हैं। निजी प्रॉपर्टी में मेयर द्वारा सरकारी नलकूप स्थापित कराये जाने को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। इन्हीं चर्चाओं के मुताबिक मेयर के लिये नगर निगम के अफसरों ने नियमों को कैसे शिथिल किया है, जांच के बाद ही इसका पता चल पायेगा। सूत्रों का कहना है कि प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से लेकर मेयर के अन्य निवेश में उनके एक करीबी मास्टरमांइड ने अहम भूमिका निभाई है। लोकायुक्त की टीम इस मास्टर माइंड पर नजर बनाये हुए है।
Created On :   20 Dec 2018 1:28 PM IST