न गरबा, न ढोल, बेहद सादगी के साथ मनाया जा रहा त्यौहार

No Garba, No Dhol, festival being celebrated with utmost simplicity
न गरबा, न ढोल, बेहद सादगी के साथ मनाया जा रहा त्यौहार
नवरात्रोत्सव न गरबा, न ढोल, बेहद सादगी के साथ मनाया जा रहा त्यौहार

डिजिटल डेस्क,विरूल। गांव के प्रसिद्ध भवानी माता मंदिर में अश्विन नवरात्रि में दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी है। मंदिर समिति की ओर से यहां पारंपारिक पद्धति से घटस्थापना के साथ विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। प्राचीन काल से प्रसिद्ध भवानी माता के मंदिर में माता भवानी की आकर्षिक भव्य व प्राचीन मूर्ति है। बताया जाता है कि इस मंदिर के पास स्थित एक प्राचीन कुएं से भवानी माता की मूर्ति प्रगट हुई थी। मान्यता है कि यह देवी भक्तों की मन्नतों को पूरी करती है। भवानी माता प्रतिदिन भक्तों को बालरूप, युवारूप व वृद्ध रूप ऐसे तीन रूपों में दर्शन देती है। प्राचीन काल में आए अनेक संकटों से भवानी माता ने गांव की रक्षा की। गांव के मध्यभाग में अंबादेवी का देवस्थान है। यह अंबादेवी माता भक्तों की पुकार सुनती है। इस प्राचीन मंदिर के अंदर अंबादेवी माता की मूर्ति विराजमान है। इस परिसर में 200 फीट ऊंचा पीपल का पेड़ है।  मंदिर में पारंपरिक पद्धति से घटस्थापना की गई। इसके अलावा गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर कुर्जई के टेकड़ी पर भवानी माता का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर की भवानी माता परिसर का रक्षा करनेवाली देवी के रूप में प्रसिद्ध है। मंदिर समिति की ओर से पारंपारिक पद्धति से घटस्थापना सहित अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। गांव के मुकुंद सोनटक्के के घर में भवानी माता की भव्य मूर्ति गत अनेक वर्ष से स्थापित है। यहां भी विधिवत घटस्थापना की गई है।

भोंडाई माता मंदिर में नवरात्रोत्सव की धूम 

जंगल के बीचोबीच स्थित भोंडाई माता मंदिर है। बोर अभयारण्य से दो किलोमीटर दूर जंगल में अडेगांव (चौकी) में भोंडाई माता की एक प्राचीन मूर्ति है। भक्तों का मानना है कि यह मूर्ति स्वयंभू है।  मूर्ति बोरी गांव के गोथन के नाम से जाने वाले द्वार पर स्थित थी। मंदिर का निर्माण लोगों ने स्वर्गीय नारायणराव उमाटे की पहल पर करवाया था। धीरे-धीरे नवसा पाने वाली इस देवी की ख्याति फैल गई और वहीं से वह भोंडाई माता के नाम से विख्यात हुई।  इस देवी के मंदिर में पूरनपोली पकाने की परंपरा शुरू हुई।  हालांकि यहां पीने का पानी नहीं होने के कारण बैलगाड़ी से बांध का पानी लाना पड़ता था। उमाते ने घोराड और बोरी के ग्रामीणों से चंदा जमा कर कुआं खोदना शुरू किया।  हालांकि, मां की कृपा से कुएं से पीने के लिए भरपूर पानी मिला। बोरी के शेंडे और शिंगारे ने भी मंदिर के निर्माण में मदद की।   
 

Created On :   12 Oct 2021 1:32 PM GMT

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