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फोटो मीटर रीडिंग पर फूंके डेढ़ करोड़ फिर भी उपभोक्ता परेशान!
डिजिटल डेस्क सिंगरौली (वैढऩ)। जिले में बिजली कंपनी द्वारा हर माह फोटो मीटर रीडिंग पर करीब 9 लाख रूपये फूंके जा रहे हैं। पिछले डेढ़ वर्ष में फोटो मीटर रीडिंग पर डेढ़ करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है। इतने रूपये इसलिये खर्च किये जा रहे हैं ताकि बिजली उपभोक्ताओं को वास्तविक बिल दिया जा सके। लेकिन फोटो मीटर रीडिंग पर खर्च की जा रही यह राशि न केवल बेमतलब साबित हो रही है बल्कि बिजली कंपनी की साख पर भी बट्टा लगा रही है। जैसे ही बिजली के बिल उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं, हाय-तौबा मचने लगती है। कोई अपना बिल देखकर कंपनी पर लूटने का आरोप लगाता है तो कोई मनमानी का। जबकि कंपनी की मंशा लोगों तक वास्तविक बिल पहुंचाने की होती है। जब कंपनी की मंशा पर पानी फिर रहा है तो फिर ऐसी व्यवस्था की जरूरत क्या है? कंपनी को इसके विकल्पों की तलाश करने की जरूरत है अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा कि कंपनी वास्तविक बिल भेजेगी और लोग उस पर भी विश्वास नहीं करेंगे। कंपनी को अपनी साख बचाने के लिये कोई पुख्ता व्यवस्था करनी होगी।
कैसे लग रहा कंपनी की साख पर भी बट्टा?
दरअसल, जिले में मीटर रीडिंग का कांट्रेक्ट करीब 1 साल 6 माह पहले एक प्राइवेट एजेंसी टेकसपोर्ट इंफ्रा स्ट्रक्चर (टीएसआईपीएल) को दिया गया था। प्रतिमाह के औसतन 9 लाख रूपये की दर से बिजली कंपनी ने डेढ़ करोड़ से ज्यादा की राशि प्राइवेट एजेंसी टीएसआईपीएल को दे चुकी है और इसके बाद भी फोटो मीटर रीडिंग में तरह-तरह की गड़बडिय़ों से लेकर आ रहे मनमाफिक बिजली बिलों का क्रम बदस्तूर जारी है। हर माह उपभोक्ताओं पर मनमाफिक बिजली बिल थोप दिया जाता है और मजबूर उपभोक्ता इस बिल का भरने के लिये मजबूर हो जाता है। बिजली उपभोक्ता आरोप लगाते हैं कि बिजली बिलों के नाम पर खुलेआम लूट मची है। हैरानी की बात यह भी है कि इन हालात से कंपनी का स्थानीय महकमा भी वाकिफ है, लेकिन ये सभी भी चुप्पी साधे ऐसे बैठे हैं, जैसे इन्हें कुछ पता ही न हो?
फोटो मीटर रीडिंग से जुड़ी समस्याएं
हर माह उपभोक्ताओं के नाम पर जो बिल जारी किया जाता है, उस बिल की कॉपी तक सभी उपभोक्ताओं के यहां नहीं पहुंचाई जाती है। दूसरी ओर बिल में दर्ज की गई मीटर की रीडिंग की फोटो भी इतनी धुंधली रहती है कि इससे यह क्रास चेक ही नहीं हो पाता है कि वाकई में बिल में जो रीडिंग दर्ज है, बिल उतने का ही आया है या नहीं? ऐसे ही कई बिलों में फोटो मीटर रीडिंग की फोटो की जगह पर ऐसे काले-काले धब्बे भी रहते हैं, जिसे लेकर हमेशा से ये आरोप लगते रहे हैं कि बिल में ऐसे काले-काले धब्बे फोटो मीटर रीडिंग की फोटो के नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई गड़बड़ी के हैं।
ऐसे चल रहा गड़बड़ी का खेल
सूत्र बताते हैं कि फोटो मीटर रीडिंग भले कांट्रेक्ट एजेंसी के द्वारा कराए जाते हैं, लेकिन फोटो रीडिंग के वेरीफिकेशन की जिम्मेदारी बिजली कंपनी के नुमाइंदों की रहती है। इसलिये ऐसे नुमाइंदों को अपने फेवर में लेकर कांट्रेक्ट एजेंसी के लोग नाम के लिये हर माह कुल रीडिंग में 3-4 प्रतिशत रीडिंग में फोटो आदि से संबंधित गड़बड़ी दिखाकर खानापूर्ति कर देते हैं। ताकि, मनमानी के खेल में लोग उलझे रहें।
हर माह धड़ल्ले से टीएसआईपीएल को हो रहा पेमेंट
सूत्र बताते हैं कि फोटो मीटर रीडिंग को लेकर भले कोई भी शिकायत आये, उन शिकायतों की सुनवाई के नाम हमेशा से खानापूर्ति की जाती है। जिससे फोटो मीटर रीडिंग की एजेंसी टीएसआईपीएल के भुगतान में कोई अडंगा न लगने पाए। शायद इसीलिये जिले में शहर और ग्रामीण बिजली के दफ्तरों में टीएसआईपीएल को किये जाने वाले भुगतान पेंडिंग नहीं रहने पाते हैं। जानकारी के अनुसार शहरी दफ्तर में जुलाई और ग्रामीण में जुलाई माह का भुगतान लंबित है।
Created On :   4 Sept 2020 6:15 PM IST