14 साल में सिंगरौली में शुरू हुआ महज एक कोल ब्लॉक 

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14 साल में सिंगरौली में शुरू हुआ महज एक कोल ब्लॉक 

डिजिटल डेस्क सिंगरौली वैढऩ। शासकीय नीतियों और लालफीताशाही में कैसे अच्छी भली योजनाओं का बेड़ा गर्क होता है, इसका जीता जागता सबूत है सिंगरौली का कोयला क्षेत्र। यहां पिछले साल में यूं तो 7 कोयला ब्लॉक की नीलामी हुई, लेकिन पिछले 14 सालों में महज एक कोल ब्लॉक ही शुरू हो सका। ऐसे में निवेशकों के मन में 18 जून को कॉमर्शियल माइनिंग के लिए शुरू हो रही नीलामी को लेकर संदेह बरकरार है, इस नीलामी में सिंगरौली के तीन कोल ब्लॉक के नाम संभावितों की सूची में शामिल किए गए हैं। केन्द्र 6 माह में सभी कोल ब्लॉक में काम शुरू कराने का आश्वासन दे रहा है मगर सवाल यह उठ रहा है कि पर्यावरण क्लीयरेंस से लेकर जमीनों का अधिग्रहण कैसे इतनी कम अवधि में होगा। यदि, यह नहीं हुआ तो कोल सेक्टर के जरिए देश में औद्योगिक वातरण को गति देने शुरू हए प्रयास साकार नहीं हो सकेंगे।  काला हीरा यानी कोयला, का बहुत बडा गढ़ यदि पूरे देश में कहीं है तो वो है सिंगरौली। इस क्षेत्र की खासियत कोयले का जमीन की ऊपरी सतह पर मिलना है। ओपन कॉस्ट के लिहाज से यहां कोयला निकालना कम खर्चीला और सुरक्षित है। इसी कारण कोल सेक्टर के देशी-विदेशी दिग्गजों का इस क्षेत्र पर फोकस है। 
महान के कारण रूकी रफ्तार
महान कोल ब्लॉक को जैसे ही एस्सार और हिंडाल्को के ज्वाइंट वेंचर को आवंटित किया गया था, उसी दिन से इसके बुरे दिन चालू हो गए थे। ग्रीनपीस जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने यहां पर्यावरण के मुद्दे को चुनौती देते हुए जमकर विरोध प्रदर्शन किया। ग्रीन पीस के कारण ही केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को इसे नो गो जोन में देने की सिफारिश करनी पड़ी। हालांकि जानकार  कहते हैं कि इस पूरे मामले में जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण अनापत्ति दिलाने में शासकीय अफसरों की जो सक्रिय भूमिका होनी थी, वो नहीं दिखाई पड़ी। इस कोल प्रोजेक्ट के जाने से अकेले कोल ब्लॉक के कारण रोजगार और व्यवसाय ही सिंगरौली का प्रभावित नहीं हुआ बल्कि एस्सार और हिंडाल्को बरगवां जैसे दो बड़े प्रोजेक्ट्स को तगड़ा झटका लगा। इसी के चलते आज एस्सार में भी बंद जैसे हालात काफी लंबे समय से हो गए हैं। 
सिर्फ एमडीओ की प्रक्रिया बचेगी 
जानकारों का कहना है कि कोविड-19 के कारण मोदी सरकार ने कोयला सेक्टर पर जरूर फोकस किया है। वर्तमान नीतियों से कोयला ओपन मार्केट में बेचने की छूट तो मिलेगी और एमडीओ यानी माइंस डेवलपर और ऑपरेटर नियुक्त करने की प्रक्रिया बचेगी। पहले राज्यों के लिए आरक्षित माइंस में राज्य कोल ब्लॉक मिलने के बाद एमडीओ का टेंडर करता था, इसमें काफी वक्त लग रहा था, जैसे सुलियरी माइंस में हुआ। यह प्रोजेक्ट एपीएमडीसी को मिला लेकिन बाद में इसने एमडीओ के रूप में अडानी को चुना। इसमें काफी वक्त लग गया। अब पर्यावरण क्लीयरेंस और भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया में प्रोजेक्ट धक्के खा रहा है। 
तो साकार नहीं होगा प्लान
कॉमर्शियल माइनिंग का उद्देश्य कोयला खनन को जल्द से जल्द बढ़ाने के साथ रोजगार और व्यवसाय के नए द्वार खोलना है। लेकिन, यदि केन्द्र और राज्य सरकारों के साथ संबंध सकारात्मक नहीं हुए या राज्य सरकार अपने मैदानी अधिकारियों पर अंकुश नहीं लगा पायी तो मोदी सरकार का यह प्लान साकार नहीं हो सकेगा। एक्सपर्ट कहते हैं कि 18 को कोल ब्लॉक्स की नीलामी में प्रधानमंत्री मोदी का शामिल होना, कहीं न कहीं निवेशकों का हौसला तो बढ़ा रहा है लेकिन उनके विश्वास को बनाये रखने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को असली हौसलाअफजाई कोल ब्लॉक्स की नीलामी के बाद निवेशकों को देनी होगी। 
 

Created On :   16 Jun 2020 3:37 PM IST

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