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फसलों को रोगों से बचाएगी यह नई तकनीक, खर्च भी हो जाएगा कम
डिजिटल डेस्क सिंगरौली (वैढऩ)। खेती में रोज-रोज नये अविष्कार हो रहे हैं, जिनका उपयोग कर किसान खेती की बढ़ी लागत को कम कर रहे हैं। जिससे उनका मुनाफा बढ़ता जा रहा है इसीलिये किसानों को प्रेरित किया जा रहा है कि वह वैज्ञानिक तरीके से खेती करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमायें। जिले में किसानों को अब नई विधि से परिचित कराया जा रहा है। जिसके तहत फसलों को कीटों और रोगों से बचाने के लिये किसानों को जिन फसलों में रोग लगने की आशंका ज्यादा होती है उनके साथ गेंदे की खेती करने के लिये प्रेरित किया जा रहा है। गेंदा जो एक सामान्य फूल है लेकिन इसमें कीटों की रोकने की अदभुत क्षमता है। इसकी सुगंध से अनचाहे कीट फसलों तक नहीं पहुंच पाते, जिससे फसलें रोगमुक्त हो जाती हैं। आमतौर पर सब्जी और दलहन की फसलों में ज्यादा रोग लगते हैं। इसलिये यदि इनकी खेती के साथ ही गेंदे के भी बीच-बीच में पौधे लगाये जायें तो फसल पूरी तरह से रोग मुक्त रहेगी। जिससे किसानों के दवा और कीटनाशक का खर्च बच जाता है। एक तरह से यह जैविक खेती में मददगार भी है इसलिये कृषि विभाग इस तकनीक को बढ़ावा दे रहा है। कृषि विभाग का मानना है कि जब तक कृषि की लागत को कम नहीं किया जायेगा, तब तक किसानों की आय को दोगुना नहीं किया जा सकता है। इसलिये जरूरी है कि हम फसल की लागत को कम करें।
मेथी में भी हैं बड़े गुण
कृषि विभाग ने बताया कि मेथी भी बड़ी गुणवान और किसानों की मददगार फसल है। मेथी के पौधे की खासियत यह है कि पौधा सूर्य की रोशनी से नाइट्रोजन ग्रहण करता और जड़ों के जरिये जमीन को पोषित करता है। इसलिये मेथी वाले खेत में यूरिया (नाइट्रोजन) की जरूरत नहीं पड़ती। इस तरह बिना खाद की फसल तैयार हो जाती है। फसल की लागत में एक बड़ा हिस्सा खाद और कीटनाशकों के रूप में खर्च होता है। यदि ये दोनों चीजें हटा दी जायें तो फसल की लागत में से कम से कम 35-40 फीसदी की कमी आ जायेगी।
कैसे करें इनकी खेती?
सब्जी की जिन फसलों में कीट ज्यादा लगते हों, उनकी खेती आलू की तरह नाली बनाकर करें। सबसे पहली लाइन यानी मेढ़ के किनारे की ओर में गेंदा के पौधे लगायें। फिर दूसरी लाइन में मेथी बोयें, उसके बाद की 4 लाइन में वह फसल जैसे पालक, गोभी, मटर, टमाटर आदि बोयें। फिर पहले जैसी प्रक्रिया अपनाये और इसी तरह हर चार लाइन के बाद एक लाइन गेंदा और एक लाइन मेथी बोये। इससे किसी भी फसल में कीट नहंीं आयेंगे, कीट नहीं आयेंगे तो रोग नहीं पनपेगा। इसी तरह मेथी के पौधे से खेत में पहुंचने वाली नाइट्रोजन अन्य पौधों तक पहुंचेगी। जिससे खाद की जरूरत खत्म हो जायेगी।
इनका कहना है
अब खेती को वैज्ञानिक और जैविक तरीके से ही करना होगा, क्योंकि लागत घटानी है। बिना लागत घटाये हम खेती को लाभ का धंधा नहीं बना सकते। इसलिये हमने यह प्रयोग जिले में भी शुरू किया है।
आशीष पांडेय, उप संचालक कृषि
Created On :   5 Oct 2017 12:35 PM IST