SC के सवाल: याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए SC ने किए सवाल, कहा- 'अगर यही करना था तो देरी क्यों?'

याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए SC ने किए सवाल, कहा- अगर यही करना था तो देरी क्यों?
  • बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरिक्षण के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हुई याचिका
  • जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉय माल्य बागजी की पीठ ने की याचिका पर सुनवाई
  • सुप्रीम कोर्ट ने उठाया चुनाव आयोग के आधार कार्ड के फैसले पर सवाल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बीच चुनावी राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Voter List Revision) को लेकर गर्मा-गर्मी देखने को मिल रही है। विपक्षी दल इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। मामले की सुनवाई फिलहाल उच्चतम न्यायालय में जारी है। गुरुवार (10 जुलाई) को अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कुछ सवाल भी किए गए हैं। कोर्ट ने पूछा कि अगर इलेक्शन कमीशन सही नहीं है तो इसे साबित करिए।

कोर्ट का कहना है कि, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ याचिकाकर्ताओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरानारायण का कहना है कि, हम वोटर लिस्ट के सभी पुनरीक्षण को चुनौती दे रहे हैं। कोर्ट का कहना है कि, हम सभी याचिकाओं पर नहीं जाएंगे। चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा है कि, नियमों को किनारे कर के विशेष पुनरीक्षण अभियान चलाया है।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट का याचिकाकर्ताओं से कहना है कि, पहले ये साबित कीजिए कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, जो कि बिल्कुल सही नहीं है। गोपाल शंकर नारायण का कहना था कि, अपने दावे के प्रमाण में 11 दस्तावेजों को जरूरी किया गया है। ये पूरी तरफ से पक्षपातपूर्ण है और उन्होंने कहा है कि पहली जुलाई को 18 साल वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। वोटर लिस्ट की समरी हर साल नियमित तौर पर की जाती है। इस बार की हो चुकी है, इसलिए अब करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद उन्होंने कहा कि, चार बार ये एक्सरसाइज करना गलत है। ये नियमों के खिलाफ है और भेदभावपूर्ण है। साथ ही दूसरे कानूनी प्रावधानों का गलत मायना भी निकल रहा है।

जस्टिस धूलिया ने क्या कहा?

वहीं, इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि आपका ये कहना कि ये काल्पनिक है और सही नहीं है। उनका अपना अलग लॉजिक हो सकता है। जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता को कहा कि आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वो नहीं कर सकता है। चुनाव आयोग ने तारीख तय कर दी है। इसमें आपको क्या आपत्ति है? आप तर्कों से ये साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है।

गोपाल शंकर ने दिए तर्क तो क्या कहा कोर्ट?

याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर का कहना है कि, चुनाव आयोग एसआईआर को पूरे देश में लागू करना चाहिए और इसकी शुरुआत बिहार से हो रही है। इस पर जस्टिस धूलिया ने भी कहा है कि, चुनाव आयोग जो कर रहा है उसको नहीं करना चाहिए। ये पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। मैं आपको दिखा दूंगा कि उन्होंने किस तरह के सुरक्षा उपाय दिए हैं। दिशानिर्देशों में कुछ ऐसे वर्गों के बारे में भी लिखा है, जिसमें रिवीजन प्रक्रिया के दायरे में नहीं लाया गया है। सबसे जरूरी बात ये है कि इस पूरी प्रोसेस की कानून में कोई आधार नहीं है।

कोर्ट ने आगे क्या कहा?

कोर्ट ने आगे कहा कि, क्या चुनाव आयोग जो परीक्षण कर रहा है वो नियमों के तहत है या नहीं है? साथ ही ये सघन परीक्षण कब किया जा सकता है, आप ये बताइए कि ये अधिकार क्षेत्र में आयोग के हैं या नहीं हैं? इस पर गोपाल ने कहा है कि, चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है। इस पर कोर्ट ने कहा है कि, इसका मतलब ये है कि आप अधिकार क्षेत्र ही नहीं बल्कि सघन परीक्षण करने के तरीके को भी चुनौती दे रहे हैं। गोपाल ने कहा कि, हां, बिल्कुल। वो जो भी संशोधन करते हैं, उन्हें उसको निर्धारित तरह से ही करना होता है। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि, चुनाव आयोग जो कर रहे हैं वो कानून के हिसाब से है। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि, 2003 से पहले वालों को सिर्फ फॉर्म भरना है और उसके बाद वालों को डॉक्यूमेंट लगाने हैं। ये बिना किसी आधार के भेद पर किया गया है। कानून इसकी अनुमति बिल्कुल नहीं देता है।

चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने दी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के तौर से मान्यता देने को लेकर चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल किया है। आयोग के वकील ने कहा है कि, सिर्फ आधार कार्ड से नागरिकता साबित नहीं हो सकती है। इस पर फिर कोर्ट ने कहा कि, अगर आप वोटर लिस्ट में किसी भी शख्स का नाम सिर्फ देश की नागरिकता साबित होने के आधार पर शामिल कर रहे हैं तो ये एक बड़ी कसौटी होगी। गृह मंत्रालय का काम है, आप उसमें बिल्कुल मत जाइए। उसकी अपनी एक न्यायिक प्रक्रिया है। आपकी इस कवायद का कोई भी मतलब नहीं रह जाएगा। चुनाव आयोग के वकील का कहना है कि, अगर आपको ये ही करना था तो फिर इतनी देर क्यों की है। ये चुनाव से ठीक पहले नहीं होना चाहिए था।

Created On :   10 July 2025 2:01 PM IST

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