टॉप कोर्ट में केंद्र की दलील: बिल पर राष्ट्रपति/राज्यपाल के फैसलों के खिलाफ राज्य याचिका दायर नहीं कर सकते

- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर अनुच्छेद 32 का होता है इस्तेमाल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ के सामने कहा, राज्य सरकारें राष्ट्रपति या राज्यपाल के विधेयक पर लिए गए फैसले के खिलाफ टॉप कोर्ट में याचिका नहीं लगा सकते। भले ही विधेयक को लेकर राज्य यह कहे कि इससे लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। सीजेआई अध्यक्षता वाली 5 सदस्यों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रहे है, पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल है।
एसजी ने कहा कि राष्ट्रपति यह भी जानना चाहती हैं कि संविधान के अनुच्छेद 361 का दायरा क्या है। यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल अपने अधिकारों और कर्तव्यों के निर्वहन के लिए किसी भी कोर्ट के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे। मेहता ने बेंच से कहा इन सवालों पर पहले भी चर्चा हुई है, लेकिन राष्ट्रपति का मत है कि कोर्ट की स्पष्ट राय जरूरी है। क्योंकि भविष्य में ऐसा मामला फिर उठ सकता है।
एसजी मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति इस बात पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेना चाहती हैं कि क्या राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाएं दायर कर सकती हैं। मेहता ने कहा संविधान में अनुच्छेद 32 के तहत राज्य सरकार की ओर से राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसलों को चुनौती देने वाली पिटीशन स्वीकार नहीं की जा सकती। ना ही न्यायालय ऐसे केस में कोई निर्देश दे सकता है और ना ही इन फैसलों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
एसजी मेहता ने आगे कहा, अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। लेकिन संवैधानिक ढांचे में राज्य सरकार खुद मौलिक अधिकार नहीं रखती। राज्य सरकार की भूमिका यह है कि वह अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे। सॉलिसिटर जनरल ने 8 अप्रैल के उस फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल समयसीमा के भीतर विधेयकों पर फैसला नहीं करते तो राज्य सीधे सर्वोच्च अदालत का रुख कर सकते हैं।
इस पर सीजेआई गवई ने कहा कि वह 8 अप्रैल के दो जजों के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन यह भी कहा कि राज्यपाल का किसी विधेयक को छह महीने तक लंबित रखना सही नहीं है। मेहता ने जवाब में कहा कि अगर एक सांविधानिक संस्था अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करती, तो इसका मतलब यह नहीं कि कोर्ट दूसरी सांविधानिक संस्था को आदेश दे सकती है। सीजेआई ने कहा अगर अदालत ही किसी केस को 10 साल तक नहीं सुलझाए, तो क्या राष्ट्रपति को कोई आदेश देने का हक होगा? सुनवाई अभी जारी है।
Created On :   28 Aug 2025 3:34 PM IST