अब कंपनियों के पैन और ऑडिट रिपोर्ट पर सरकार की नजर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग पर अंकुश लगाने के क्रम में कॉरपोरेट मंत्रालय (एमसीए) और प्रत्यक्ष कर विभाग (सीबीडीटी) ने कंपनियों के पैन और ऑडिट रिपोर्ट्स समेत अन्य आंकड़े लगातार साझा करते रहने संबंधी करार किया है। दोनों के बीच फर्जी कंपनियों और उनके संचालकों की पहचान के अलावा इन कंपनियों द्वारा संचालित फंड पर रोक लगाने के लिए पहले ही करार हो चुका है, ताकि इन फर्जी कंपनियों का सहारा ले मनी लांडरिंग नहीं की जा सके। वित्त मंत्रालय के बयान में बताया गया है कि इस समझौते के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग, ब्लैक मनी और फर्जी कंपनियों द्वारा कॉरपोरेट ढांचे के दुरुपयोग को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।
साझा होगी ऑडिट रिपोर्ट
वित्त मंत्रालय ने अपने एक बयान में बताया कि इस करार के बाद सीबीडीटी और एमसीए के बीच फर्जी कंपनियों और उनके डायरेक्टरों से जुड़ी जानकारी स्वत: और नियमित रूप से साझा की जा सकेगी। इसके बाद परमानेंट एकाउन्ट नंबर (पैन) से जुड़ा डाटा, इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर), फाइनेंशियल रिटर्न्स, शेयर अलाटमेंट, ऑडिट रिपोर्ट और वित्तीय लेनदेन संबंधी जानकारियां आसानी से साझा की जा सकेंगी। अब तक इन सूचनाओं के अभाव में फर्जी कंपनियों पर प्रभावी रूप से अंकुश लगाना संभव नहीं होता था। इन सूचनाओं का उपयोग गलत तरीके से व्यापारिक गतिविधियां चला रही कंपनियों के निरीक्षण, जांच और उन्हें दंडित करने में किया जा सकेगा।
डाटा एक्सचेंज परिचालक समूह का गठन
एमसीए और सीबीडीटी के बीच रेगुलेटरी परपज के लिए निर्बाध पैन-सिन (कारपोरेट आइडेंटिटी नंबर) और पैन-डिन (डायरेक्टर आइडेंटिटी नंबर) लिंकेज है। इसके दायरे में देश में कार्यरत देशी और विदेशी सभी कंपनियां आएंगी। नियमित आधार पर सूचनाओं के अदान प्रदान के अलावा दोनों विभाग आग्रह किए जाने पर जांच, निरीक्षण और दंडित करने के लिहाज से डाटाबेस में मौजूद सभी जानकारियां एक दूसरे को उपलब्ध कराएंगे। बयान में बताया गया है कि काले धन और फर्जी कंपनियों के माध्यम से मनी लांडरिंग पर अंकुश लगाने की इस पहल को अमली जामा पहनाने के लिए डाटा एक्सचेंज परिचालक समूह का गठन किया गया है, जो एक तय समय में बैठकें कर डाटा एक्सचेंज की स्थिति जांचने के अलावा दोनों एजेंसियों के कामकाज को और प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाएगा।
एक लाख से ज्यादा संचालकों की हुई पहचान
कॉरपोरेट मिनिस्ट्री ने 1,06,578 डायरेक्टर्स की पहचान की है, जो फर्जी कंपनियों से जुड़े हुए थे। सरकार कंपनीज एक्ट, 2013 के सेक्शन 164 (2)(ए) के तहत इन डायरेक्टर्स को डिसक्वालिफाई कर सकती है। मिनिस्ट्री के मुताबिक, इन कंपनियों के डायरेक्टर्स और उनके इंटरेस्ट्स की पहचान करने के लिए रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में मौजूद इन कंपनियों के डाटा का विश्लेषण किया जा रहा है। एन्फोर्समेंट एजेंसियों की मदद से उनका बैकग्राउंड, कार्यकाल और कंपनियों की गतिविधि में उनकी भूमिका जैसे डाटा एकत्र किए जा रहे हैं। कंपनियों द्वारा की गई मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों को भी जांचा जाएगा।
प्रोफेशनल्स भी हैं निशाने पर
मिनिस्ट्री के मुताबिक, कुछ मामलों में ऐसी डिफॉल्टर कंपनियों और अवैध एक्टिविटीज में शामिल प्रोफेशनल्स, चार्टर्ड अकाउंटैंट, कंपनी सेक्रेटरी या कॉस्ट अकाउंटैंट्स की पहचान भी की गई है। ऐसे प्रोफेशनल्स के कामकाज की आईसीएआई, आईसीएसआई और आईसीओएआई जैसे इंस्टीट्यूट्स मॉनिटरिंग कर रहे हैं। फर्जी कंपनियों के एकाउन्ट्स में हेरफेर करने पर उन पर भी शिकंजा कसा जाएगा।
दो लाख से ज्यादा कंपनियों के पंजीकरण कैंसिल
करीब एक हफ्ते पहले सरकार ने ब्लैकमनी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए दो लाख से ज्यादा कंपनियों के बैंक अकाउंट पर रोक लगा दी। इनके रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिए गए। फाइनेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक रूल्स वॉयलेशन की वजह से यह कदम उठाया गया। कॉर्पोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री के मुताबिक 2,09,032 कंपनियों के रजिस्ट्रेशन रद्द किए गए। इस कार्रवाई के बाद कंपनियों के डायरेक्टर और ऑथराइज्ड सिग्नेचरी अब एक्स डायरेक्टर और एक्स अथोराइज्ड सिग्नेचरी हो गए हैं। यानी ये लोग तब तक कंपनियों के बैंक अकाउंट से कोई ट्रांजेक्शन नहीं कर सकेंगे, जब तक कंपनी फिर से कानूनी तौर पर मान्य नहीं हो जाती है।
तीन लाख रजिस्टर्ड कंपनियां रडार पर
फाइनेंस मिनिस्ट्री की ओर से 30 अगस्त को कहा गया था कि तीन लाख रजिस्टर्ड कंपनियां रडार पर हैं, जबकि एक लाख कंपनियों पर कार्रवाई की तैयारी हो रही है। सरकार ने पहले ही 37 हजार से ज्यादा फर्जी कंपनियों की पहचान की थी, जो हवाला कारोबार और ब्लैकमनी को छुपाने में जुटी थीं।
Created On :   14 Sept 2017 10:13 PM IST