कर्नाटक उपराष्ट्रपति ने आचार्य शांतिसागर महाराज की प्रतिमा का किया अनावरण, बोले- उनके उपदेश में शांति का संदेश
श्रवणबेलगोला, 9 नवंबर (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन रविवार को कर्नाटक के श्रवणबेलगोला गोला पहुंचे, जहां उन्होंने परम पूज्य आचार्य श्री 108 शांतिसागर महाराज की स्मृति में आयोजित समारोह में हिस्सा लिया और आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की मूर्ति का अनावरण किया। यह समारोह इसलिए खास था, क्योंकि ठीक 100 साल पहले, यानी 1925 में, आचार्य जी यहां महामस्तकाभिषेक के लिए आए थे।
उपराष्ट्रपति ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य ने दिगंबर जैन परंपरा को नई ताकत दी। उनका पूरा जीवन अहिंसा, संयम और सहिष्णुता का जीता-जागता उदाहरण था। ये जैन सिद्धांत आज भी हमें शांति और सद्भाव का रास्ता दिखाते हैं। आज के समय में जब लोग ज्यादा सामान और सुख के पीछे भाग रहे हैं, तब आचार्य जी का जीवन हमें याद दिलाता है कि असली खुशी ज्यादा पाने में नहीं, बल्कि कम में संतोष करने में है। सच्ची आजादी बाहर की चीजों में नहीं, अपने मन को काबू करने में है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह शताब्दी समारोह न सिर्फ एक महान संत को याद करने का मौका है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आध्यात्मिक प्रकाश जलाने का काम भी कर रहा है। नई मूर्ति हर आने वाले व्यक्ति को सादगी, पवित्रता और दया की याद दिलाएगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि आचार्य का संदेश सभी भारतीयों को नेकी, सहनशीलता और शांति का रास्ता दिखाता रहेगा।
उपराष्ट्रपति ने दो हजार से ज्यादा सालों से जैन धर्म के केंद्र के तौर पर श्रवणबेलगोला के शानदार इतिहास को याद करते हुए गंगा वंश के मंत्री चामुंडराय द्वारा बनवाई गई भगवान बाहुबली की 57 फुट ऊंची एक ही पत्थर की मूर्ति को आध्यात्मिक भक्ति और कलात्मक उत्कृष्टता का एक सदाबहार सबूत बताया। उन्होंने जैन संत आचार्य भद्रबाहु के मार्गदर्शन में श्रवणबेलगोला में सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के संन्यास लेने के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि महान सम्राट का यह काम इस बात का प्रतीक है कि दुनिया की सारी उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी आखिर में इंसान को आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश करनी चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने भारत सरकार द्वारा प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा का दर्जा देने और जैन पांडुलिपियों को डिजिटाइज करने के लिए ज्ञान भरथम मिशन शुरू करने की तारीफ की। उन्होंने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को बचाने के इन प्रयासों की सराहना की। उन्होंने तमिलनाडु और जैन धर्म के बीच मजबूत ऐतिहासिक संबंध पर भी जोर दिया। साथ ही, संगम और संगम के बाद के समय में तमिल साहित्य और संस्कृति में इस धर्म के गहरे योगदान का जिक्र किया, जो सिलाप्पदिकारम जैसी क्लासिकल रचनाओं में दिखता है।
उन्होंने जैन मठ के मौजूदा प्रमुख श्री अभिनव चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी की तारीफ की। उन्होंने कहा कि स्वामीजी आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वे स्वास्थ्य, शिक्षा और शोध के क्षेत्र में संस्थानों के जरिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, जैसे प्राकृत रिसर्च इंस्टीट्यूट। उन्होंने विश्वास जताया कि श्रवणबेलगोला भारत की आध्यात्मिक धरोहर का चमकता रत्न बना रहेगा। यह आने वाली पीढ़ियों को धर्म, सहिष्णुता और शांति के सिद्धांत अपनाने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
कार्यक्रम में कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय भारी उद्योग एवं इस्पात मंत्री एचडी कुमारस्वामी, कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा, योजना एवं सांख्यिकी मंत्री डी. सुधाकर, सांसद श्रेयस एम पटेल, श्रवणबेलगोला दिगंबर जैन मठ के पूज्य संतगण और अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।
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Created On :   9 Nov 2025 5:13 PM IST












