श्री-श्री उग्रतारा मंदिर इस शक्तिपीठ में प्रतिमा नहीं, पानी से भरे मटके की होती है पूजा
नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। भगवान शिव और मां पार्वती को संसार में सबसे पूज्यनीय माना गया है। अच्छे दाम्पत्य जीवन के लिए और संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव और मां पार्वती को पूजा जाता है।
माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के बाद जहां-जहां मां सती के अंग गिरे थे, वहां शक्तिपीठ मंदिरों का निर्माण हुआ। श्री-श्री उग्रतारा मंदिर असम के गुवाहाटी में शक्तिपीठ मंदिर है, जहां मां पानी से भरे मटके के रूप में विराजमान हैं।
श्री-श्री उग्रतारा मंदिर गुवाहाटी के पूर्वी भाग में उजान बाजार के पास बना है। ये मंदिर अपनी पौराणिक कथा की वजह से बहुत प्रसिद्ध है। माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के बाद माता सती की नाभि इसी मंदिर में गिरी थी। इस मंदिर की खासियत है कि यहां किसी प्रतिमा नहीं, बल्कि पानी से भरे मटके की पूजा होती है।
यहां माता सती की सुरक्षा के लिए खुद भगवान शिव विराजमान हैं। मां के मंदिर के पास पीछे की तरफ भगवान शिव का मंदिर विराजमान है। भक्तों के बीच मान्यता है कि मां उग्रतारा के दर्शन तभी पूरे माने जाते हैं जब भगवान शिव के दर्शन कर लिए जाएं।
किंवदंतियों में मंदिर को बौद्ध धर्म से भी जोड़ा गया है। माना जाता है बौद्ध धर्म में पूजे जाने वाले देवी-देवता 'एका जटा' और 'तीक्ष्ण-कांता' मां उग्रतारा का ही रूप हैं। 'एका जटा' और 'तीक्ष्ण-कांता' देवियों को बौद्ध धर्म में तंत्र की देवी कहा गया है। इसी वजह से इस मंदिर में तांत्रिक पूजा भी की जाती है। बौद्ध धर्म से जुड़े लोग भी मां उग्रतारा की पूजा करते हैं और अपनी तांत्रिक सिद्धियों को सफल करने के लिए आते हैं।
नवरात्रि के मौके पर भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति पर जंगली जानवरों की बलि देते हैं और मां को तंत्र क्रिया से प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।
इस शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण साल 1725 में अहोम साम्राज्य के राजा शिव सिंह ने कराया था। राजा शिव सिंह ने अपने काल में बहुत सारे हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया था। भूकंप की वजह से मंदिर टूट भी गया था, लेकिन बाद में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया।
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Created On :   9 Nov 2025 6:00 PM IST












