श्री कुर्मनाथ स्वामी मंदिर कछुए के रूप में होती है भगवान विष्णु की पूजा, पितरों के तर्पण के लिए आते हैं श्रद्धालु

श्री कुर्मनाथ स्वामी मंदिर कछुए के रूप में होती है भगवान विष्णु की पूजा, पितरों के तर्पण के लिए आते हैं श्रद्धालु
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को संसार का पालनकर्ता माना गया है और जब-जब मानव कल्याण या सृष्टि के उद्धार की बात आई है, तब-तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग अवतार लिए हैं।

नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को संसार का पालनकर्ता माना गया है और जब-जब मानव कल्याण या सृष्टि के उद्धार की बात आई है, तब-तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग अवतार लिए हैं।

उन्हें मत्स्य और नरसिंह अवतार में पूजा गया, लेकिन आंध्र प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान विष्णु को कछुए के रूप में पूजा जाता है और दूर-दूर से भक्त भगवान विष्णु के इस अनोखे अवतार के दर्शन करने आते हैं।

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के पास समंदर से 2 किलोमीटर की दूरी पर श्री कुर्मनाथ स्वामी मंदिर है। यह देश का पहला मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के कछुए के अवतार की पूजा होती है। ये भगवान का दूसरा अद्भुत रूप है। पहले भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के साथ बड़े से कछुए की प्रतिमा भी है, जिसकी पूजा-अर्चना रोजाना मंदिर के पुजारियों द्वारा की जाती है।

भक्तों की मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां दर्शन करने से बड़ा से बड़ा कार्य पूरा हो जाता है। हिंदू धर्म और फेंगशुई दोनों में भी कछुए को सुख-समृद्धि और भाग्य का प्रतीक माना जाता है।

मंदिर के अंदर एक सुरंग भी है। रहस्यमयी सुरंग को लेकर कहा जाता है कि ये सीधा काशी और गया जाती है। इसी वजह से पितरों के तर्पण के लिए भी श्री कुर्मनाथ स्वामी मंदिर को महत्वपूर्ण माना गया है। माना जाता है कि जो बिहार के गया या काशी जाकर पिंड दान नहीं कर सकते हैं, वे इस मंदिर में आकर तर्पण कर सकते हैं। इसे मोक्ष धाम भी माना जाता है। श्री कुर्मनाथ स्वामी की जमीन पर संत रामानुज, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, और चैतन्य महाप्रभु जैसे महासंतों के पैर पड़े हैं।

मंदिर की बनावट की बात करें तो मंदिर में 201 स्तंभ मौजूद हैं। इस पर कई भाषाओं में शिलालेख लिखे हैं। मंदिर की दीवारों पर मुगल शासन और अजंता एलोरा की झलक भी दिखती है। खास बात ये है कि मंदिर के भीतर एक बाड़ा बनाया गया है, जहां आज भी 100 अलग-अलग प्रजातियों के कछुओं को पाला जाता है। पर्यटक दूर-दूर से छोटे-छोटे कछुओं के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो भगवान विष्णु ने समंदर मंथन के समय विशाल कछुए का रूप लिया था, क्योंकि मंदारांचल पर्वत समंदर में डूब रहा था और पर्वत को स्थिरता देने के लिए भगवान विष्णु कूर्म (कछुआ) रूप में प्रकट हुए।

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Created On :   18 Nov 2025 10:32 PM IST

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