सीजनल डिप्रेशन 'अंदर से मन अच्छा न लगे' तो ये 'एसएडी' का लक्षण, बदलते मौसम का मूड और नींद पर पड़ता है असर

सीजनल डिप्रेशन अंदर से मन अच्छा न लगे तो ये एसएडी का लक्षण, बदलते मौसम का मूड और नींद पर पड़ता है असर
शरद ऋतु गर्मी से सर्द मौसम की ओर बढ़ने का संकेत है। सितंबर से दिसंबर के बीच पेड़ों से पत्ते भी गिरते हैं और कुछ ऐसा ही हाल लोगों के मूड का होता है। कई शोध और स्टडी बताती है कि इस दौरान मन मस्तिष्क पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। फिलहाल हम इसी ट्रांजिशन पीरियड से गुजर रहे हैं। जैसे ही दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं, कई लोग अचानक थकान, नींद की गड़बड़ी और उदासी महसूस करने लगते हैं। इसे विज्ञान की भाषा में 'सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर' (एसएडी यानि सैड) कहा जाता है।

नई दिल्ली, 24 सितंबर (आईएएनएस)। शरद ऋतु गर्मी से सर्द मौसम की ओर बढ़ने का संकेत है। सितंबर से दिसंबर के बीच पेड़ों से पत्ते भी गिरते हैं और कुछ ऐसा ही हाल लोगों के मूड का होता है। कई शोध और स्टडी बताती है कि इस दौरान मन मस्तिष्क पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। फिलहाल हम इसी ट्रांजिशन पीरियड से गुजर रहे हैं। जैसे ही दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं, कई लोग अचानक थकान, नींद की गड़बड़ी और उदासी महसूस करने लगते हैं। इसे विज्ञान की भाषा में 'सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर' (एसएडी यानि सैड) कहा जाता है।

'सैड' डिप्रेशन का एक प्रकार है, जो खासकर सर्दियों की शुरुआत या दिन के उजाले में कमी के दौरान ज्यादा देखने को मिलता है। 1984 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक नॉर्मन ई. रोसेन्थल ने सबसे पहले इस स्थिति को वैज्ञानिक रूप से पहचाना। सवाल यही उठता है कि आखिर 'सैड' होता क्यों है?

दरअसल, इस मौसम में धूप कम होती है। धूप की कमी से दिमाग में 'सेरोटोनिन' नामक न्यूरोट्रांसमीटर घट जाता है। ये वो सुपर हार्मोन है जो मूड को नियंत्रित करता है। अंधेरा और ठंड बढ़ने पर शरीर अधिक मेलाटोनिन बनाता है, जिससे नींद ज्यादा आती है और एनर्जी घट जाती है। सर्केडियन रिद्म बिगड़ जाता है। ये अचानक बदलते मौसम से प्रभावित होता है, तो नींद और जागने का पैटर्न बिगड़ जाता है।

प्रश्न उठता है कि आखिर किस पर इसका असर ज्यादा होता है? अध्ययन बताते हैं कि उत्तरी या पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों को सैड का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि वहां धूप का समय कम होता है। इनमें भी महिलाएं और युवाओं (18–30 वर्ष) पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता है। 2022 की जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर्स की एक स्टडी में पाया गया कि अर्बन इंडिया में करीब 12-15 प्रतिशत लोग हल्के या गंभीर सीजनल डिप्रेशन यानि मौसमी तनाव से जूझते हैं।

तो फिर पहचानें कैसे कि आप सैड से गुजर रहे हैं? साधारण सा तरीका है। जब कोई लगातार थकान महसूस करे, उसे खूब नींद आए, उदास रहे और छोटी-छोटी बात पर चिढ़ जाए, काम में रुचि कम दिखाए, ज्यादा मीठा और कार्बोहाइड्रेट खाने की इच्छा जताए और खुद को सामाजिक तौर पर अलग-थलग महसूस करे तो जान ले ये सैड के लक्षण हैं।

कारण पता चल गया, लक्षण से रूबरू हो गए तो फिर इससे बचने के उपाय क्या हों? बहुत साधारण और प्रभावी है। सबसे पहले तो रोजाना कम से कम 20-30 मिनट धूप में रहें। विदेशों में तो लाइट थेरेपी का चलन है। खास लाइट बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो प्राकृतिक धूप जैसा असर देता है। इसके अलावा संतुलित आहार और व्यायाम भी समस्याओं पर अंकुश लगा सकता है। ताजे फल-सब्जियां, ओमेगा-3 और नियमित व्यायाम से मूड बेहतर होता है। फिर भी मन अच्छा न लगे तो मेडिकल मदद लें। लगातार लक्षण रहने पर मनोचिकित्सक से परामर्श जरूर लें।

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Created On :   24 Sept 2025 2:44 PM IST

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