फीचर्स: असद भोपाली 'वो जब याद आए' से 'कबूतर जा-जा' तक, एक ऐसी शख्सियत, जो बेहतरीन गीतकार के साथ मशहूर शायर भी थे

असद भोपाली  वो जब याद आए से कबूतर जा-जा तक, एक ऐसी शख्सियत, जो बेहतरीन गीतकार के साथ मशहूर शायर भी थे
'वो जब याद आए, बहुत याद आए' और 'कबूतर जा जा जा' जैसे गीतों के जरिए हिंदी सिनेमा के पर्दे पर अपनी कलम के जादू से सबको चकित कर देने वाले शायर और गीतकार असद भोपाली की 10 जुलाई को जयंती है। उर्दू की नज्मों में गहरी संवेदनाएं और फिल्मी गीतों में रोमांस व हल्की-फुल्की मस्ती बिखेरने वाले असद भोपाली का नाम भले ही कई लोगों को तुरंत याद न आए, लेकिन उनके गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।

नई दिल्ली, 9 जुलाई (आईएएनएस)। 'वो जब याद आए, बहुत याद आए' और 'कबूतर जा जा जा' जैसे गीतों के जरिए हिंदी सिनेमा के पर्दे पर अपनी कलम के जादू से सबको चकित कर देने वाले शायर और गीतकार असद भोपाली की 10 जुलाई को जयंती है। उर्दू की नज्मों में गहरी संवेदनाएं और फिल्मी गीतों में रोमांस व हल्की-फुल्की मस्ती बिखेरने वाले असद भोपाली का नाम भले ही कई लोगों को तुरंत याद न आए, लेकिन उनके गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।

असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई 1921 को भोपाल में हुआ था। उनका असली नाम असदुल्लाह खान था और वह मुंशी अहमद खान के सबसे बड़े बेटे थे, जो अरबी और फारसी के शिक्षक थे। भोपाल की सांस्कृतिक मिट्टी में पले-बढ़े असद को बचपन से ही शायरी का शौक था। वह कॉलेज में अपनी शायरी और कविताएं सुनाया करते थे। उनकी प्रतिभा साल 1949 में तब सामने आई, जब फिल्म निर्माता फजली ब्रदर्स ने उन्हें भोपाल के एक मुशायरे में देखा। उस समय उनकी फिल्म ‘दुनिया’ के गीतकार आरजू लखनवी विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे। भोपाल के सिनेमा थिएटर के मालिक सुगम कपाड़िया की सलाह पर फजली ब्रदर्स ने असद को अपनी फिल्म के लिए चुना और इस तरह 28 साल की उम्र में असद भोपाली ने मुंबई में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।

असद भोपाली ने साल 1949 से 1990 तक 100 से ज्यादा फिल्मों के लिए कई गीत लिखे। उनकी कलम ने रोमांस से लेकर हल्के-फुल्के और मजेदार गीतों तक हर रंग को छुआ। उनकी पहली बड़ी सफलता साल 1963 की फिल्म ‘पारसमणी’ थी, इस फिल्म के गीत 'वो जब याद आए, बहुत याद आए' (लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी) और 'हंसता हुआ नूरानी चेहरा' (लता मंगेशकर, कमल बारोट) सुपरहिट हुए। ये गीत आज भी रेडियो और म्यूजिक लवर्स की प्लेलिस्ट में शामिल हैं। उन्होंने अपने शानदार काम से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

असद ने उषा खन्ना, श्याम सुंदर, हुस्नलाल-भगतराम, सी. रामचंद्र और कल्याणजी-आनंदजी जैसे संगीतकारों के साथ काम किया। उनकी कुछ उल्लेखनीय गीतों पर नजर डालें तो उनमें 'उस्तादों के उस्ताद’ का 'सौ बार जनम लेंगे', ‘एक नारी दो रूप’ का 'दिल का सूना साज तराना ढूंढेगा' जैसे गीत हैं। साल 1989 में आई सलमान खान- भाग्यश्री स्टारर फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ उनकी बड़ी उपलब्धियों में रही, जिसमें 'दिल दीवाना बिन सजना के माने ना', 'मेरे रंग में रंगने वाली' और 'कबूतर जा जा जा' जैसे गीत सुपरहिट उनकी कलम की उपज थी। इन गीतों ने न केवल फिल्म को सफल बनाने में बल्कि सलमान खान को स्टार बनाने में अहम भूमिका निभाई।

‘मैंने प्यार किया’ के गीत 'दिल दीवाना' के लिए असद भोपाली को 1990 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। लेकिन, पैरालिसिस की वजह से वह अवॉर्ड फंक्शन में शामिल नहीं हो सके। 9 जून 1990 को उनका निधन हो गया।

शानदार गीतों की रचना करने वाले असद भोपाली का जीवन संघर्षों से भरा रहा। बड़े बजट की फिल्मों में उन्हें कम मौके मिले। समकालीन गीतकारों की तुलना में उनकी प्रसिद्धि सीमित रही। अभिनेत्री तबस्सुम ने अपने शो में बताया था कि असद अक्सर कहते थे कि उनकी जिंदगी भर की सबसे वफादार साथी “गुर्बत” (गरीबी) रही।

असद ने दो शादियां कीं। पहली पत्नी आयशा से उनके दो बेटे (ताज और ताबिश) और छह बेटियां थीं। जबकि, दूसरी पत्नी से बेटे गालिब असद भोपाली हुए।

उर्दू शायरी में असद की रचनाएं गहरी संवेदनाओं से भरी हैं। उनके 1952 में आई 'मोती महल’ के गीत 'जाएगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा, दो गज कफन का टुकड़ा तेरा लिबास होगा' भी उनकी शायरी और गीतों में सादगी और गहराई का अनोखा मेल दिखाता है, उनकी शायरी और गीत के बोल उन्हें हिंदी सिनेमा और उर्दू साहित्य में एक खास मुकाम देता है।

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Created On :   9 July 2025 3:12 PM IST

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