अंतरराष्ट्रीय: 'गरीबों के बैंक' से नोबेल पुरस्कार तक गरीबों के मसीहा मोहम्मद यूनुस की कहानी

गरीबों के बैंक से नोबेल पुरस्कार तक  गरीबों के मसीहा मोहम्मद यूनुस की कहानी
जब इतिहास लिखा जाता है, तो उसमें सिर्फ उपलब्धियां नहीं, बल्कि विवाद भी दर्ज होते हैं। जब किसी शख्सियत ने गरीबी मिटाने की वैश्विक मुहिम से लेकर राजनीतिक सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय किया हो, तो उसकी कहानी और भी रोचक, जटिल और विचारोत्तेजक हो जाती है। यह कहानी है मोहम्मद यूनुस की- गरीबों का बैंकर, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख।

नई दिल्ली, 27 जून (आईएएनएस)। जब इतिहास लिखा जाता है, तो उसमें सिर्फ उपलब्धियां नहीं, बल्कि विवाद भी दर्ज होते हैं। जब किसी शख्सियत ने गरीबी मिटाने की वैश्विक मुहिम से लेकर राजनीतिक सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय किया हो, तो उसकी कहानी और भी रोचक, जटिल और विचारोत्तेजक हो जाती है। यह कहानी है मोहम्मद यूनुस की- गरीबों का बैंकर, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख।

हाल के दिनों में मोहम्मद यूनुस एक अलग कारण से सुर्खियों में हैं। बांग्लादेश में हुए हालिया तख्तापलट और देश में एक विशेष धर्म समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा को लेकर उन्हें कई स्तरों पर जिम्मेदार ठहराया गया है। उनके विरोधी उन्हें सत्ता में आने के लिए संवैधानिक प्रक्रियाओं को कुचलने वाला मानते हैं, जबकि समर्थक उन्हें बांग्लादेश में एक वैकल्पिक और निर्णायक नेतृत्व की ज़रूरत के तौर पर देख रहे हैं। लेकिन, सत्ता की इस जटिल पहेली तक उनकी यात्रा सिर्फ राजनीतिक नहीं रही, यह एक सामाजिक क्रांति की राह से होकर निकली है।

28 जून 1940 को बांग्लादेश के चटगांव जिले के एक छोटे से गांव बथुआ में जन्मे मोहम्मद यूनुस ने जीवन के आरंभिक वर्षों में ही गरीबी को देखा, समझा और महसूस किया। उन्होंने इससे मुंह नहीं मोड़ा, बल्कि गरीबों की सहायता के लिए एक ऐसा मॉडल खड़ा किया, जिसने उन्हें नोबेल पुरस्कार दिलाया और उन्हें गरीबों का बैंकर बना दिया। उनकी जिंदगी का मकसद गरीबों को सशक्त बनाना रहा और इस मकसद ने उन्हें गरीबों के बैंकर से लेकर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता तक का सफर तय कराया।

मोहम्मद यूनुस की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि उन्होंने आर्थिक न्याय को महज भाषणों और घोषणाओं तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने माइक्रो क्रेडिट, यानि छोटे ऋण की अवधारणा के जरिए ग्रामीण महिलाओं, छोटे व्यापारियों और भूमिहीन किसानों के जीवन में बदलाव लाया। उन्होंने ग्रामीण बैंक की नींव रखी, जिसका मकसद उन लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था जो बैंकिंग व्यवस्था से बाहर थे। जहां बड़े बैंक करोड़ों का लोन अमीरों को देने में लगे थे, वहीं यूनुस ने 100 डॉलर से भी कम की राशि देकर हजारों जिंदगियों में रोशनी भर दी।

1976 में यूनुस की जिंदगी में एक ऐसा पल आया, जिसने उनकी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। चटगांव के पास जोबरा गांव में, उन्होंने देखा कि गरीब महिलाएं बांस की टोकरियां बनाकर अपनी आजीविका चलाती थीं। लेकिन, इन महिलाओं को कच्चा माल खरीदने के लिए साहूकारों से भारी ब्याज पर कर्ज लेना पड़ता था। एक दिन यूनुस ने 42 ऐसी महिलाओं से बात की और पाया कि उन्हें कुल मिलाकर 27 डॉलर (लगभग 856 टका) की जरूरत थी, ताकि वे साहूकारों के चंगुल से मुक्त हो सकें। यह राशि इतनी छोटी थी कि यूनुस हैरान रह गए।

उन्होंने अपनी जेब से 27 डॉलर दिए और इन महिलाओं को कर्ज के जाल से आजाद कर दिया। लेकिन, यह छोटा सा कदम उनके लिए एक बड़े सवाल का जवाब बन गया कि अगर इतनी छोटी राशि इतने लोगों की जिंदगी बदल सकती है, तो क्या इसे बड़े पैमाने पर लागू नहीं किया जा सकता? यहीं से माइक्रोफाइनेंस की अवधारणा का जन्म हुआ। यूनुस ने इस विचार को और आगे बढ़ाया और उन्होंने ग्रामीण बैंक की स्थापना की, जो बिना जमानत के छोटे-छोटे कर्ज देता था। यह कर्ज, जिसे माइक्रो क्रेडिट कहा गया, न केवल व्यवसाय शुरू करने के लिए था, बल्कि यह गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने का एक जरिया था। माइक्रोफाइनेंस ने न केवल आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया, बल्कि सामाजिक बदलाव भी लाया। महिलाएं, जो पहले घर की चारदीवारी तक सीमित थीं, अब उद्यमी बन रही थीं।

2006 में उन्हें और ग्रामीण बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि उस सोच को मिला जो यह मानती है कि गरीबी का इलाज केवल आर्थिक मदद नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और स्वावलंबन है। नोबेल पुरस्कार के बाद यूनुस का जीवन केवल प्रशंसा और पुरस्कारों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने जब 2007 में राजनीति में उतरने की कोशिश की और अपनी पार्टी बनानी चाही, तो बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ उनके रिश्ते तल्ख हो गए।

शेख हसीना की सरकार ने 2011 में उन्हें ग्रामीण बैंक के प्रबंध निदेशक पद से हटा दिया। इसके बाद यूनुस के खिलाफ एक के बाद एक जांचें, मुकदमे और आरोपों की बौछार शुरू हुई। हसीना ने उन्हें खून चूसने वाला कहा और ग्रामीण महिलाओं से ऋण वसूली में अत्याचार का आरोप लगाया। 2024 में यूनुस को श्रम कानून के उल्लंघन में छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई, लेकिन उन्हें जेल नहीं भेजा गया। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े 100 से अधिक मामले लंबित हैं। हालांकि यूनुस इन सभी मामलों को सत्ताधारी सरकार की राजनीतिक प्रतिशोध की संज्ञा देते हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोहम्मद यूनुस को अब भी एक सोशल बिजनेस मॉडल के जनक और माइक्रोफाइनेंस क्रांति के अग्रदूत के रूप में सम्मान दिया जाता है। 2012 से 2018 तक वे स्कॉटलैंड की ग्लासगो कैलेडोनियन यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रहे। आज जब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर है, मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के मुखिया हैं। उनके जन्मदिवस के मौके पर उन्हें केवल उनके पुरस्कारों से नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की मुस्कान से याद किया जाना चाहिए, जिनकी ज़िंदगी उन्होंने बदली।

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Created On :   27 Jun 2025 8:41 PM IST

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