बॉलीवुड: सिनेमा के ‘गुरु दत्त’ मौत के बाद भी फिल्मों ने दिलाई प्रशंसा, दर्दनाक था अंत

नई दिल्ली, 8 जुलाई (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा की चमक-दमक, स्टारडम, शान-ओ-शौकत और धन-दौलत की चकाचौंध बाहरी दुनिया को भले ही मंत्रमुग्ध कर दे, लेकिन इसके भीतर एक ऐसी गहराई छिपी है, जो सवालों, संवेदनाओं और मानवीय संघर्षों से भरी पड़ी है। गुरु दत्त, भारतीय सिनेमा के एक ऐसे सितारे थे, जिन्होंने इस चमकती दुनिया के पीछे छिपे दर्द, प्रेम और सामाजिक सच्चाइयों को अपनी फिल्मों के माध्यम से उजागर किया।
गुरु दत्त की फिल्में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, और ‘चौदहवीं का चांद’ न केवल सिनेमा थीं, बल्कि एक आईना थीं, जो समाज और इंसानी रूह को बयां करती थीं। गुरु दत्त का सिनेमा उस सतह को भी पार कर जाता है, जहां स्टारडम की चमक फीकी पड़ती है और जीवन के अनगिनत सवाल प्रेम, बलिदान और असफलता के रूप में सच्चाई बनकर सामने आते हैं।
गुरु दत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। वे भारतीय सिनेमा के एक ऐसे रत्न थे, जिन्होंने अपनी संवेदनशीलता और तकनीकी कौशल से हिंदी सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी। 9 जुलाई 1925 को जन्मे और 10 अक्टूबर 1964 को दुनिया को अलविदा कहने वाले इस महान फिल्मकार ने अपने छोटे से करियर में ऐसी फिल्में दीं, जो आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में बसी हैं।
कर्नाटक के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए गुरु दत्त के पिता, शिवशंकर राव पादुकोण, एक हेडमास्टर और बैंकर थे, जबकि उनकी मां, वसंती पादुकोण, एक शिक्षिका और लेखिका थीं। बचपन में एक दुर्घटना के बाद उनका नाम वसंत कुमार से बदलकर गुरुदत्त पादुकोण कर दिया गया, क्योंकि इसे शुभ माना गया।
1942 में गुरु दत्त ने उदय शंकर के नृत्य और कोरियोग्राफी स्कूल, अल्मोड़ा में दाखिला लिया, लेकिन 1944 में निजी कारणों से इसे छोड़ दिया। इसके बाद, उन्होंने कोलकाता में एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम किया और फिर पुणे में प्रभात फिल्म कंपनी में सहायक निर्देशक के रूप में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की। यहीं उनकी मुलाकात अभिनेता देव आनंद से हुई। गुरु दत्त ने अपने करियर की शुरुआत 1951 में बाजी के निर्देशन से की, जो एक सफल फिल्म साबित हुई।
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात गायिका गीता रॉय से हुई, जिनसे उन्होंने 1953 में शादी की। गुरु दत्त ने कुल 8 हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें बाजी (1951), जाल (1952), बाज (1953), आर-पार (1954), मिस्टर एंड मिसेज '55 (1955), सीआईडी (1956), प्यासा (1957), और कागज के फूल (1959) शामिल हैं। उनकी फिल्म प्यासा को टाइम मैगजीन की 20वीं सदी की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की लिस्ट में शामिल किया गया, जबकि ‘कागज के फूल’ भारत की पहली सिनेमास्कोप तकनीक से तैयार फिल्म थी। वह एक्टर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, कोरियोग्राफर और राइटर तक की जिम्मेदारी खुद ही निभाया करते थे।
गुरु दत्त ने अपने निर्देशन में कई इनोवेशन किए। उन्होंने क्लोज-अप शॉट्स को एक नया आयाम दिया, जिसे 'गुरु दत्त शॉट' के नाम से जाना जाता है। उनकी फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को भी विशेष महत्व दिया गया, जैसे ‘प्यासा’ की गुलाबो और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ की छोटी बहू, जो समाज की रूढ़ियों को चुनौती देती थीं। गुरु दत्त ने वहीदा रहमान, जॉनी वॉकर और वी.के. मूर्ति जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों को मौका दिया।
हालांकि, गुरु दत्त का निजी जीवन उनकी फिल्मों की तरह जटिल था। उनकी शादी गीता दत्त से हुई, लेकिन वहीदा रहमान के साथ उनके कथित प्रेम संबंध ने वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा किया। इस बीच, ‘कागज के फूल’ की असफलता और निजी जीवन की उथल-पुथल ने उन्हें शराब की ओर धकेल दिया। 10 अक्टूबर 1964 को महज 39 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। हालांकि, कुछ लोग उनकी मौत को दुर्घटना तो कुछ आत्महत्या मानते हैं।
गुरु दत्त एक ऐसे सितारे थे जो मौत के बाद भी लोगों के बीच लोकप्रिय रहे। खासकर ‘कागज के फूल’ को प्रशंसा मिली। यह फिल्म 1970 और 1980 के दशक में 13 देशों में रिलीज हुई और आज के समय में यह एक कल्ट क्लासिक फिल्म है। साल 2004 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया। गुरु दत्त ने दुख, प्रेम के साथ अपनी रचनात्मकता को फिल्मों में पिरोकर अमर कर दिया।
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Created On :   8 July 2025 12:24 PM IST