राजनीति: मनसे के गुंडे सस्ती राजनीति कर रहे तहसीन पूनावाला

पुणे, 8 जुलाई (आईएएनएस)। भाषा विवाद और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से जुड़े नेता के पुत्र के महिला के साथ दुर्व्यवहार पर राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने मंगलवार को अपनी बातें रखीं।
राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "जिस हालत में एमएनएस नेता का बेटा पाया गया, बिना कपड़े के, उसी हालत में मुंबई पुलिस को उसे गले में पट्टा बांधकर सड़क पर घुमाना चाहिए था। चाहे महिला मराठी हो या कोई और, किसी भी महिला के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। महिलाओं के साथ छेड़खानी करना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। वे कभी बुजुर्गों को धमकाते हैं, कभी महिलाओं को छेड़ते हैं, कभी व्यवसायों पर हमला करते हैं। उनके पीछे की असली ताकत है राज ठाकरे के जहरीले भाषण। जब तक राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ताओं पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती, तब तक ऐसे नशेड़ी और बिगड़ैल लोग इस तरह की करतूत करते रहेंगे। असली रोग है राज साहब की जुबान का जहर।"
बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर पूनावाला ने कहा, "इस वक्त बिहार में स्पेशल रिवीजन की क्या जरूरत है? जब पिछली बार ऐसा किया गया था वो साल 2003 था, यानी लोकसभा चुनाव से 1 साल पहले और बिहार विधानसभा चुनाव से 2 साल पहले।"
उन्होंने कहा, "मान लीजिए कोई कर्नाटक में नौकरी करता है, तो क्या सिर्फ डॉक्यूमेंट देने के लिए वह बिहार आएगा? जब मेरा वोटर कार्ड पुणे में बना था तब मैंने सिर्फ आधार कार्ड दिया था। तेजस्वी यादव की पत्नी का भी आधार कार्ड स्वीकार किया गया था। अब अचानक आधार को एक्सक्लूड क्यों कर रहे हैं?"
उन्होंने कहा, "अगर आधार कार्ड को बैंक से, राशन कार्ड से और पेंशन से जोड़ा जा सकता है तो वोटर आईडी से क्यों नहीं? जब सुप्रीम कोर्ट में सरकार कहती है कि आधार कार्ड जरूरी है, तो फिर चुनाव आयोग इसे वोटर पहचान के लिए क्यों नहीं स्वीकारता? गवर्नमेंट रूल का कोई नोटिस सामने नहीं है। सिर्फ अखबारों में विज्ञापन देकर बिहार के लोगों को बताया जा रहा है कि क्या करना है। क्या सरकार और चुनाव आयोग अब सिर्फ विज्ञापन के जरिए चलेंगे? जब भी विपक्ष चुनाव आयोग से सवाल पूछता है, भाजपा उसका बचाव करने आ जाती है। पहले के चुनाव आयुक्त तो ट्रक की शायरी जैसे जवाब देते थे।"
उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग प्रमुख का पद संवैधानिक है, इसे संवैधानिक कर्तव्य निभाने चाहिए। अगर 2003 में ही बिहार में ऐसा किया गया था, तो अब अचानक क्या बदल गया है? जहां भाजपा के उम्मीदवार जीतते हैं, वहां वोट बढ़ जाते हैं। जहां विपक्ष हारता है, वहां वोट कम हो जाते हैं, ये आंकड़े कैसे तय होते हैं? चुनाव आयोग इसका जवाब दे।"
उन्होंने 'अल्पसंख्यक' मुद्दे पर जारी बयानबाजी को लेकर कहा, ''हिंदी में एक मुहावरा है ‘नूरा कुश्ती’, और अंग्रेजी में इसे 'मैच फिक्सिंग' कहते हैं। यह पूरा मुद्दा भाजपा और ओवैसी साहब के बीच मैच फिक्सिंग जैसा लग रहा है। इसका मकसद सिर्फ बिहार चुनावों में ध्रुवीकरण करना है। अचानक से किरण रिजिजू को याद आता है कि माइनॉरिटी को ज्यादा अधिकार मिल रहे हैं। पिछले 11 सालों से सत्ता में कौन है? प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृहमंत्री, अधिकतर मुख्यमंत्री, सब हिंदू हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी हिंदू हैं। फिर अगर हिंदू समाज को कम अधिकार मिल रहे हैं, तो इसका जिम्मेदार कौन है?''
उन्होंने आगे कहा, "ओवैसी साहब बिहार क्यों जा रहे हैं? जितना ज्यादा ध्रुवीकरण होगा, उतना भाजपा को फायदा होगा। ओवैसी साहब के बच्चे विदेश में पढ़ेंगे, भाजपा नेता दुबई में घर खरीदेंगे, लेकिन आम हिंदू-मुसलमान धर्म के नाम पर आपस में लड़ते रहेंगे। न शिक्षा की बात हो रही है, न स्वास्थ्य की, न रोजगार की। सिर्फ हिंदू-मुस्लिम की राजनीति चल रही है। अगर हिंदू धर्म खतरे में है, तो भाजपा नेताओं के बच्चे सड़क पर क्यों नहीं आते? अगर मुसलमान खतरे में हैं, तो ओवैसी साहब के बच्चे क्यों नहीं आते?''
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Created On :   8 July 2025 10:31 PM IST