राजनीति: रक्सौल विधानसभा सीट भारत-नेपाल सीमा पर बसा क्षेत्र, जहां एनडीए का दबदबा बरकरार

रक्सौल विधानसभा सीट  भारत-नेपाल सीमा पर बसा क्षेत्र, जहां एनडीए का दबदबा बरकरार
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की रक्सौल विधानसभा क्षेत्र राज्य की 243 सीटों में से एक है। यह पूर्वी चंपारण जिले के अंतर्गत आता है, लेकिन संसदीय स्तर पर यह पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। ऐतिहासिक, भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टि से यह सीट न सिर्फ बिहार बल्कि भारत-नेपाल संबंधों में भी बेहद अहम भूमिका निभाती है।

पूर्वी चंपारण, 21 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की रक्सौल विधानसभा क्षेत्र राज्य की 243 सीटों में से एक है। यह पूर्वी चंपारण जिले के अंतर्गत आता है, लेकिन संसदीय स्तर पर यह पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। ऐतिहासिक, भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टि से यह सीट न सिर्फ बिहार बल्कि भारत-नेपाल संबंधों में भी बेहद अहम भूमिका निभाती है।

रक्सौल, नेपाल के बीरगंज शहर से सटा हुआ है। दोनों शहरों की जीवनशैली और आवाजाही इतनी घुल-मिल चुकी है कि बाहरी व्यक्ति के लिए यह महज एक चेकपोस्ट जैसा प्रतीत होता है। यहां भारतीय और नेपाली नागरिक बिना रोक-टोक आते-जाते हैं। रिक्शे और ऑटो रक्सौल स्टेशन से यात्रियों को बीरगंज तक ले जाते हैं, मानो यह एक ही शहर का हिस्सा हों।

इतिहास में झांकें तो रक्सौल और बीरगंज एक संयुक्त नगर की शक्ल में विकसित हो सकते थे, अगर 1814-16 का एंग्लो-नेपाल युद्ध न हुआ होता। ब्रिटिश साम्राज्य ने इस युद्ध के बाद 1816 में सुगौली संधि की, जिसने भारत और नेपाल के बीच की सीमा तय कर दी। रक्सौल भारत में शामिल हुआ और तब से यह दोनों देशों के बीच व्यापार और यातायात का प्रमुख द्वार बन गया। पहले इस कस्बे को फलेजरगंज कहा जाता था, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इसका नाम कब और कैसे बदलकर रक्सौल पड़ा।

1951 में जब यह विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया, तो 1952 के पहले आम चुनाव से ही यहां मतदान शुरू हुआ। शुरुआती दशकों में यह कांग्रेस का गढ़ रहा। 1952 से 1985 तक हुए नौ चुनावों में से आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। केवल 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को मात दी थी।

90 के दशक में समीकरण बदले और जनता दल ने 1990 तथा 1995 में यहां कब्जा जमाया। 2000 के बाद से रक्सौल लगातार भाजपा का गढ़ बन गया। खास बात यह रही कि 2000 से 2015 तक अजय कुमार सिंह ने पांच बार भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। 2020 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और जनता दल (यू) से आए प्रमोद कुमार सिन्हा को उम्मीदवार बनाया। स्थानीय स्तर पर इसका विरोध हुआ, लेकिन सिन्हा ने 36 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल कर ली। इस जीत से साबित हुआ कि यहां भाजपा की जीत किसी व्यक्ति पर निर्भर नहीं, बल्कि संगठन और पार्टी की गहरी जड़ें इसकी वजह हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में रक्सौल सीट पर 2,78,018 मतदाता पंजीकृत थे और मतदान प्रतिशत 64.03 रहा। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी क्षेत्र में मतदान 64.48 प्रतिशत और 2015 के विधानसभा चुनाव में 63.09 प्रतिशत दर्ज किया गया था।

2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,87,287 हो गई, हालांकि मतदान केंद्रों की संख्या घटकर 289 रह गई, जो 2020 में 390 थी।

दिलचस्प बात यह है कि रक्सौल को सामान्यतः ग्रामीण सीट माना जाता है। यहां 87 प्रतिशत से अधिक मतदाता ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जबकि शहरी वोटरों की हिस्सेदारी करीब 13 प्रतिशत है। इसके बावजूद भाजपा ने यहां लगातार जीत दर्ज कर यह धारणा तोड़ दी है, जिसे अक्सर शहरी और मध्यम वर्ग की पार्टी कहा जाता है।

2008 में हुए परिसीमन के बाद रक्सौल पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बना। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस संसदीय क्षेत्र की सभी छह विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई। ऐसे में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी पार्टी के पास इस सीट को बचाए रखने के पूरे मौके हैं।

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Created On :   21 Aug 2025 6:17 PM IST

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