आईएएनएस स्पेशल: जयंती विशेष फिजिक्स पढ़ना चाहती थीं, बनीं 'वेदर वुमन ऑफ इंडिया', अन्ना मणि की प्रेरक वैज्ञानिक यात्रा

जयंती विशेष  फिजिक्स पढ़ना चाहती थीं, बनीं वेदर वुमन ऑफ इंडिया, अन्ना मणि की प्रेरक वैज्ञानिक यात्रा
आज का भारत मौसम से जुड़ी जानकारी देने के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है। हवा की दिशा में बदलाव हो या तापमान में उतार-चढ़ाव, हर मौसम संबंधी अपडेट कुछ ही पलों में जनता तक पहुंच जाता है। यह सब इतनी सहजता से संभव हो पाया है तो उसके पीछे दशकों की मेहनत और वैज्ञानिक शोध हैं। इस क्रांति की एक प्रमुख वैज्ञानिक थीं अन्ना मणि, जिन्हें 'वेदर वुमन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और वैज्ञानिक योगदान के कारण ही भारत में सटीक मौसम पूर्वानुमान संभव हो पाया।

नई दिल्ली, 22 अगस्त (आईएएनएस)। आज का भारत मौसम से जुड़ी जानकारी देने के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है। हवा की दिशा में बदलाव हो या तापमान में उतार-चढ़ाव, हर मौसम संबंधी अपडेट कुछ ही पलों में जनता तक पहुंच जाता है। यह सब इतनी सहजता से संभव हो पाया है तो उसके पीछे दशकों की मेहनत और वैज्ञानिक शोध हैं। इस क्रांति की एक प्रमुख वैज्ञानिक थीं अन्ना मणि, जिन्हें 'वेदर वुमन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और वैज्ञानिक योगदान के कारण ही भारत में सटीक मौसम पूर्वानुमान संभव हो पाया।

23 अगस्त 1918 में जन्मी मणि पूर्व त्रावणकोर (वर्तमान केरल) राज्य में पली-बढ़ीं। उन्होंने अपने बचपन के दिन किताबों में डूब कर बिताए। 12 साल की उम्र तक, मणि ने अपने सार्वजनिक पुस्तकालय की लगभग हर किताब पढ़ ली थी। वह जीवनभर एक उत्साही पाठक रहीं। हाई स्कूल के बाद, उन्होंने विमेंस क्रिश्चियन कॉलेज से इंटरमीडिएट साइंस की पढ़ाई की और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से भौतिकी और रसायन विज्ञान में ऑनर्स के साथ विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

लेखक मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की विज्ञान इतिहासकार आभा सूर 'एन अप्रिशिएशन ऑफ अन्ना मणि' में लिखती हैं, "अन्ना मणि चिकित्सा की पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन जब यह संभव नहीं हुआ, तो उन्होंने भौतिकी का विकल्प चुना क्योंकि संयोग से वह इस विषय में अच्छी थीं।"

अन्ना मणि ने मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिकी में ऑनर्स प्रोग्राम में दाखिला लिया। 1940 में, कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के एक साल बाद, अन्ना मणि को भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी में शोध करने के लिए स्कॉलरशिप मिली। मौसम विज्ञानी सी.आर. श्रीधरन ने मणि पर अपने एक निबंध में लिखा था, "मणि ने इस अवसर का लाभ उठाया और एक सैन्य जहाज पर सवार होकर ब्रिटेन की यात्रा की।"

विदेश में अध्ययन करने के लिए सरकारी छात्रवृत्ति प्राप्त करने से पहले अगले पांच साल भारतीय विज्ञान संस्थान में नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन की प्रयोगशाला में हीरे के गुणों का अध्ययन करने में बिताए थे। आभा सूर 'एन अप्रिशिएशन ऑफ अन्ना मणि' में लिखती हैं, "अन्ना मणि प्रयोगशाला में लंबे समय तक काम करती थीं, कभी-कभी रात भर भी काम करती थीं।"

आभा सूर लिखती हैं, "अन्ना मणि को वह पीएचडी उपाधि कभी नहीं दी गई जिसकी वह हकदार थीं। मद्रास विश्वविद्यालय, जो उस समय भारतीय विज्ञान संस्थान में किए गए कार्यों के लिए औपचारिक रूप से उपाधियां प्रदान करता था, ने दावा किया कि अन्ना मणि के पास एमएससी की डिग्री नहीं है और इसलिए उन्हें पीएचडी प्रदान नहीं की जा सकती। उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि अन्ना मणि ने भौतिकी और रसायन विज्ञान में सम्मान के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी और अपनी स्नातक उपाधि के आधार पर भारतीय विज्ञान संस्थान में स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की थी।"

'एन अप्रिशिएशन ऑफ अन्ना मणि' में इस बात का जिक्र है कि "अन्ना मणि को इस अन्यायपूर्ण घटना से कोई शिकायत नहीं थी और उन्होंने जोर देकर कहा कि पीएचडी की डिग्री न होने से उनके जीवन में कोई खास फर्क नहीं पड़ा।"

इसके बाद उन्होंने इंपीरियल कॉलेज, लंदन में फिजिक्स की पढ़ाई के लिए राह पकड़ी, लेकिन यहां उनके साथ एक ऐसी घटना हुई जिसने मौसम विभाग की ओर उनके रुख को बदल दिया। असल में यह स्कॉलरशिप भौतिकी के अध्ययन के लिए नहीं, बल्कि मौसम संबंधी उपकरणों के अध्ययन के लिए थी। जब वह लंदन पहुंची थीं, तो वहां एकमात्र उपलब्ध इंटर्नशिप मेट्रोलॉजिकल इंस्ट्रूमेंटेशन में थी।

अन्ना मणि ने इसे भी एक अवसर की तरह लिया और आगे चलकर मौसम विज्ञान के इसी क्षेत्र में खुद की पहचान बनाई। अन्ना मणि 1948 में स्वतंत्र भारत लौट आईं और पुणे स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में शामिल हो गईं। विभाग में, अन्ना मणि विकिरण उपकरणों के निर्माण की प्रभारी थीं। लगभग 30 साल के अपने करियर में, उन्होंने वायुमंडलीय ओजोन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय उपकरण तुलनाओं की जरूरत और मौसम संबंधी उपकरणों के राष्ट्रीय मानकीकरण जैसे विषयों पर कई शोधपत्र प्रकाशित किए।

ओजोन को लेकर रिसर्च क्षेत्र में उनकी उपलब्धि बड़ी थी। उन्होंने एक उपकरण बनाया, जिसे ओजोनसॉन्ड कहते हैं। 1976 में वे भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की उप महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुईं। इसके बाद, वे तीन साल के लिए रमन अनुसंधान संस्थान में अतिथि प्राध्यापक के रूप में लौटीं।

अन्ना मणि का योगदान भारतीय मौसम विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने देश को तकनीकी रूप से सशक्त बनाया। अन्ना मणि की सफलता की कहानी एक ऐसी कहानी है, जिसकी बहुत कम महिलाएं (या पुरुष) आकांक्षा कर सकते हैं। मणि का 2001 में केरल के तिरुवनंतपुरम शहर में निधन हो गया।

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Created On :   22 Aug 2025 3:57 PM IST

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