बॉलीवुड: लव लेटर से लेकर लिरिक्स तक... इरशाद कामिल ने कलम के दम पर बनाई बॉलीवुड में खास जगह

लव लेटर से लेकर लिरिक्स तक... इरशाद कामिल ने कलम के दम पर बनाई बॉलीवुड में खास जगह
हिंदी सिनेमा के गानों में जब भी जज्बात और शायरी की बात होती है, तो इरशाद कामिल का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। उनकी कलम से निकले बोल सिर्फ गाने नहीं, बल्कि दिल की आवाज लगते हैं। 'अगर तुम साथ हो', 'नादान परिंदे', 'सफर', 'मनवा लागे', 'तुम ही हो' जैसे कई गाने आज भी लोगों के दिल को छू लेते हैं।

मुंबई, 4 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी सिनेमा के गानों में जब भी जज्बात और शायरी की बात होती है, तो इरशाद कामिल का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। उनकी कलम से निकले बोल सिर्फ गाने नहीं, बल्कि दिल की आवाज लगते हैं। 'अगर तुम साथ हो', 'नादान परिंदे', 'सफर', 'मनवा लागे', 'तुम ही हो' जैसे कई गाने आज भी लोगों के दिल को छू लेते हैं।

लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि उनकी इस सफर की शुरुआत मोहब्बत भरे लव लेटर्स से हुई थी।

इरशाद कामिल का जन्म 5 सितंबर 1971 को पंजाब के मलेरकोटला शहर में हुआ था। उनका बचपन एक ऐसे मोहल्ले में बीता, जहां ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूरी करते थे। शिक्षा की सुविधा बेहद सीमित थी और ऐसे में पढ़ाई जारी रखना किसी चुनौती से कम नहीं था। उनके घरवाले चाहते थे कि वो डॉक्टर बनें और इसी चाहत को पूरा करने के लिए इरशाद ने पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से हिंदी में एमए किया, फिर पत्रकारिता पढ़ी और अंत में पीएचडी की डिग्री भी हासिल की। लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था।

कॉलेज के दिनों में इरशाद अपने दोस्तों के लिए लव लेटर्स लिखने का काम करते थे। उनके लिखे लव लेटर इतने असरदार होते कि पढ़ने वाले पूरी तरह भावनाओं में डूब जाते थे। दोस्तों के लिए लव लेटर्स लिखने का शौक उनकी लेखनी में सुधार लाने लगा और वह कॉलेज के साहित्यिक आयोजनों में हिस्सा लेने लगे। यहां से धीरे-धीरे उनकी पहचान बनने लगी।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इरशाद ने पत्रकारिता में करियर शुरू किया। उन्होंने कई नामी अखबारों में काम किया, लेकिन बाद में नौकरी छोड़ दी और सपनों की नगरी मुंबई का रुख किया। यहां उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा। शुरुआत में वह एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो तक चक्कर काटते... एक बार तो एक आदमी ने उन्हें झांसा देकर दिल्ली बुलाया और फिर वहां मिला ही नहीं। इरशाद तीन दिन तक दिल्ली की गलियों में भटके और आखिर में खुद ही मुंबई का टिकट कटवाकर लौटे।

एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि जेब में पैसों की कमी के चलते उन्होंने ईद पर घर आने से मना कर दिया था। उन्हें मां से झूठ बोलना पड़ा कि काम बहुत है, आ नहीं पाएंगे। तब उनके बैंक अकाउंट में सिर्फ 430 रुपये थे, जबकि टिकट 470 रुपये का था। वह उस समय किसी से उधार नहीं मांगना चाहते थे।

संघर्ष के इन्हीं दिनों में उनकी मुलाकात संगीतकार संदेश शांडिल्य से हुई, जिनके जरिए उन्हें 2004 में फिल्म 'चमेली' में पहला ब्रेक मिला। इसके बाद इरशाद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 'जब वी मेट', 'लव आजकल', 'रॉकस्टार', 'तमाशा', 'हाईवे', 'रांझणा', 'आशिकी 2', 'जब हैरी मेट सेजल' जैसी कई फिल्मों के लिए गाने लिखे। उनके गानों को काफी पसंद किया गया।

इरशाद कामिल को उनके योगदान के लिए कई बड़े पुरस्कार मिले। फिल्मफेयर, मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड, स्क्रीन, आईफा, और जी सिने जैसे सभी प्रमुख मंचों पर उन्हें सम्मानित किया गया। 'नादान परिंदे', 'आज दिन चढ़ेया', और 'अगर तुम साथ हो' जैसे गानों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का खिताब मिला। उन्हें उर्दू साहित्य के क्षेत्र में 'कैफ़ी आजमी पुरस्कार' भी मिल चुका है।

इसके अलावा, इरशाद एक लेखक भी हैं। उन्होंने 'बोलती दीवारें' और 'समकालीन हिंदी कविता: समय और समाज' जैसी चर्चित किताबें भी लिखी।

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Created On :   4 Sept 2025 6:02 PM IST

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