बॉलीवुड: विधु विनोद चोपड़ा बर्थडे स्पेशल बॉलीवुड के वो निर्देशक जो मनोरंजन के साथ फिल्मों के जरिए समाज को देते हैं बड़ा संदेश

विधु विनोद चोपड़ा बर्थडे स्पेशल बॉलीवुड के वो निर्देशक जो मनोरंजन के साथ फिल्मों के जरिए समाज को देते हैं बड़ा संदेश
बॉलीवुड में कुछ फिल्मकार ऐसे होते हैं जो सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने के लिए भी फिल्में बनाते हैं। ये फिल्में न सिर्फ दर्शकों का दिल जीतती हैं, बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर करती हैं। जब ऐसी फिल्मों की बात हो और विधु विनोद चोपड़ा के नाम का जिक्र न हो, तो चर्चा अधूरी सी लगती है।

मुंबई, 4 सितंबर (आईएएनएस)। बॉलीवुड में कुछ फिल्मकार ऐसे होते हैं जो सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने के लिए भी फिल्में बनाते हैं। ये फिल्में न सिर्फ दर्शकों का दिल जीतती हैं, बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर करती हैं। जब ऐसी फिल्मों की बात हो और विधु विनोद चोपड़ा के नाम का जिक्र न हो, तो चर्चा अधूरी सी लगती है।

विधु विनोद चोपड़ा ने अपने फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दी हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी खासियत यही रही है कि उन्होंने हर फिल्म में लोगों को कोई न कोई संदेश दिया, फिर चाहे वो शिक्षा व्यवस्था को लेकर हो या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज हो।

5 सितंबर 1952 को श्रीनगर में जन्मे विधु विनोद चोपड़ा को बचपन से ही फिल्मों का शौक था। उनका पालन-पोषण एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ। उन्होंने पुणे में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से निर्देशन की पढ़ाई की, जहां उन्होंने अपनी पहली शॉर्ट फिल्म 'मर्डर ऐट मंकी हिल' बनाई। ये फिल्म न सिर्फ छात्रों के बीच सराही गई, बल्कि इसने राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता।

उनकी दूसरी शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री 'एन एनकाउंटर विद फेसेस' थी, जो भारत में बेसहारा बच्चों की दुर्दशा पर आधारित थी। इस फिल्म ने उन्हें इंटरनेशनल पहचान दिलाई और इसे 1979 में ऑस्कर के लिए भी नामांकित किया गया। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड को 'परिंदा', 'मिशन कश्मीर', '1942: अ लव स्टोरी', 'करीब', 'एकलव्य', 'शिकारा', और '12वीं फेल' जैसी यादगार फिल्में दीं।

विधु विनोद चोपड़ा की सबसे खास बात यह रही है कि उन्होंने कभी सिर्फ कमाई के लिए फिल्में नहीं बनाईं। वह मानते हैं कि अगर फिल्म दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर नहीं करती, तो उसका असर अधूरा है। यही वजह है कि उन्होंने 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' जैसी कॉमेडी फिल्म में भी 'जादू की झप्पी' जैसे सादगी भरे शब्द से गहरे संदेश दिए। 'लगे रहो मुन्ना भाई' में उन्होंने गांधीगिरी का कांसेप्ट लोगों के सामने रखा, जिसने नई पीढ़ी को अहिंसा और नैतिकता की अहमियत से जोड़ा।

'3 इडियट्स' ने देशभर के युवाओं को शिक्षा व्यवस्था पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। यह फिल्म आज भी स्कूल-कॉलेजों में उदाहरण के तौर पर दिखाई जाती है। इसी तरह 'पीके' ने धर्म और आस्था पर सवाल उठाते हुए दर्शकों को सोचने का मौका दिया। वहीं फिल्म '12वीं फेल' ने बताया कि कैसे मेहनत, ईमानदारी और जज्बा किसी भी इंसान को परीक्षा में पास करवा सकता है। ये फिल्म लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बनी और बॉक्स ऑफिस पर भी शानदार सफलता पाई।

विधु विनोद चोपड़ा को पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं। 'मुन्ना भाई एमबीबीएस', 'लगे रहो मुन्ना भाई', और '3 इडियट्स' को सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। वहीं 'लगे रहो मुन्ना भाई' को सर्वश्रेष्ठ पटकथा का पुरस्कार भी मिला। इनके अलावा, '12वीं फेल' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, पटकथा, संपादन, और सर्वश्रेष्ठ फिल्म जैसे बड़े फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से नवाजा गया।

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Created On :   4 Sept 2025 6:25 PM IST

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